अभी बेशक भारत के पास कोई Permanent Seat नहीं है, लेकिन अपनी मौजूदा हैसियत के साथ भी भारत इन दो सालों में ऐसा काफी कुछ कर सकता है, जिससे चीन को काफी तकलीफ़ का सामना करना पड़ सकता है।
बता दें कि सुरक्षा परिषद के कुल 15 देश हिस्सा होते हैं। इनमें से पाँच के पास Permanent Seat है, जबकि बाकी 10 देशों को चुनावों के माध्यम से 2 साल के लिए अस्थायी सीट दी जाती है। दो सालों के दौरान सभी देशों को बारी-बारी से एक महीने के लिए सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता करने का मौका भी दिया जाता है, और यही वो समय होगा जहां भारत अपनी मर्ज़ी से अपनी सहूलियत के अनुसार अहम मुद्दों को UNSC में उठा सकेगा।
इस दौरान भारत दक्षिण-चीन सागर और Indo-Pacific में चीन की आक्रामकता, और UN में reforms करने जैसे मुद्दों को हवा दे सकता है। ये दोनों ही मुद्दे ऐसे हैं, जिन्हें उठाने में चीन और उसके साथी देश आनाकानी कर सकते हैं।
UNSC के पाँच में से चार permanent members यानि अमेरिका, फ्रांस, UK और रूस खुलकर भारत का समर्थन करते रहे हैं और वे भारत को सुरक्षा परिषद की स्थायी सीट देने के भी पक्षधर रहे हैं। हालांकि, पिछले वर्ष चीन ने इशारों ही इशारों में यह साफ कर दिया था कि वह अभी UN में reforms लाने के समर्थन में नहीं है। चीन और पाकिस्तान जैसे देशों को डर है कि अगर भारत को UNSC में वीटो पावर मिल जाएगी तो यह चीन के लिए रणनीतिक तौर पर बहुत बड़ा झटका होगा।
चीन अभी UNSC में बैठकर पाकिस्तान और उसके आतंक के नेटवर्क की पूरी हिफाज़त करता आया है। यहाँ तक कि वह अब पाकिस्तान के साथ मिलकर भारत के कश्मीर तक में आतंक को फैलाने की कोशिशों में जुट गया है। चीन अफगानिस्तान में भी शांति वार्ता को प्रभावित करने के लिए तालिबान के साथ हाथ मिला चुका है। ऐसे में भारत जैसे देश का यूएनएससी का हिस्सा बनना चीन के लिए सबसे ज़्यादा खतरनाक साबित होने जा रहा है।
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