Restaurants को अब बताना पड़ेगा, वो ग्राहक को झटका परोस रहें है या हलाल

 


नॉन वेज खाने को लेकर लोगों में हमेंशा ही उहापोह की स्थिति रहती है, क्योंकि कुछ धर्मों में हलाल खाना वाजिब है जबकि कुछ में नहीं। इसके चलते बाहर रेस्टोरेंट में खाना खाने को लेकर हमेशा लोगों में इस मुद्दे से जुड़ी शंका बनी रहती है।

ऐसे में अब दक्षिणी दिल्ली नगर निगम ने एक आदेश देते हुए साफ कहा कि रेस्टोरेंट्स को ये बताना होगा कि वो अपने यहां लोगों को जो मांस परोस रहे हैं वो हलाल है या झटका। ऐसा होने से लोगों में इस मसले पर असमंजस की स्थिति खत्म होगी। इसलिए इस मुद्दे पर लोग एसएमसीडी की तारीफ कर रहे हैं।

एसएमसीडी के अंतर्गत 4 जोन्स हैं जिसमे करीब 104 वार्डों में बड़ी मात्रा में रेस्टोरेट्स हैं। ऐसे में ये लोग अपने यहां नॉन वेज का सेवन करने वाले लोगों को मांस से जुड़ी कोई जानकारी साझा नहीं करते हैं। ऐसे मे लोग अनजाने में कभी-कभी उन नॉन वेज डिशिज़ का सेवन कर लेते हैं जो कि उनके लिए धर्मसंगत नहीं हैं। खास बात ये है कि एसएमसीडी के लगभग 90 प्रतिशत इलाकों में 90 नॉन वेज खाना सर्व किया जाता है। इस मामले में अब एसएमसीडी ने साफ कर दिया है कि इस पूरे नियम को अब बदला जाएगा।

इस पूरे मामले में एसएमसीडी की तरफ से प्रस्ताव जारी कर दिया है। वहीं साउथ एमसीडी के नरेंद्र चावला ने बताया, “अगर कोई नगर निगम के इस प्रस्ताव का उल्लंघन करता है, तो अधिकारी उसके खिलाफ कार्रवाई करेंगे। हर किसी को ये जानने का अधिकार है कि वह क्या खा रहे हैं। हिंदू और सिख धर्म में खान-पान का लेकर कुछ निश्चित नियम और परंपराएं हैं।”

रेस्टोरेंट्स के अलावा छोटी जगहों पर भी इस तरह की गतिविधियां काफी बड़ी मात्रा में होती हैं जिसके चलते लोगों की आस्थाओं को जाने अनजाने ही सही, चोट पहुंचती है। मुस्लिम धर्म में हलाल मांस को खाने योग्य माना जाता है। यही कारण है कि मुस्लिम समाज प्रत्येक वस्तु में हलाल का मुद्दा सबसे पहले उठाता है। इसी तरह सिख और हिन्दू धर्म में हलाल मांस को वर्जित माना गया है। उन्हें उनका धर्म ये खाने की इजाजत नहीं देता हैं।

हांलांकि इस मुद्दे पर कुछ लोग राजनीति भी कर रहे हैं, लेकिन अपनी आस्थाओं के कारण लोग जहां तक हो सकता है, वहां तक हलाल और झटका दोनों का ही बचाव करते हैं लेकिन बाहर रेस्टोरेंट्स में इस तरह की कोई जानकारी नहीं दी जाती हैं जो कि इन लोगों के लिए निराशाजनक होता है। इन परिस्थितियों में दक्षिणी दिल्ली नगर निगम का ये फैसला न केवल हिन्दू और सिख धर्म के लिए सकारात्मक है, बल्कि मुस्लिम लोगों को भी इसका फायदा मिलेगा।

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