अगर किसान नेता, PM मोदी के प्रस्ताव को अस्वीकार करते हैं, तो PM मोदी के पास उनके खिलाफ जाने के लिए स्पष्ट कारण होगा


अभी हाल ही में मोदी सरकार ने सभी को चौंकाते हुए एक बेहद अजीब निर्णय लिया। किसान आंदोलन के नेताओं से बातचीत के 10वें चरण में उन्होंने आश्चर्यजनक रूप से कृषि कानूनों को 1 से 1.5 वर्ष के लिए रोक लगाने का प्रस्ताव रखा। ये प्रस्ताव कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने रखा, और उन्हें आशा है कि 22 जनवरी तक कुछ समाधान निकल आएगा।

अब इस निर्णय से जहां सोशल मीडिया पर कई भाजपा समर्थक आक्रोशित हैं, तो विपक्षी दलों ने चुप्पी साध रखी है। लेकिन जो दिखता है, जरूरी नहीं कि वही हो। यदि इस प्रस्ताव को भी किसान आंदोलन के नाम पर अराजकतावादियों ने ठुकरा दिया, तो इससे न सिर्फ ये सिद्ध होगा कि वे कभी भी किसानों के हितों के लिए नहीं लड़ रहे थे, सिर्फ अराजकता फैलाना चाहते थे, बल्कि केंद्र सरकार को भी इन अराजकतावादियों के विरुद्ध पूरी ताकत के साथ कुटाई करने का अवसर भी मिलेगा।

लेकिन ये संभव कैसे है? इसके लिए दो उदाहरण ही काफी है। जब इस विषय पर अराजकतावादियों की अगुवाई कर रहे कुछ नेताओं से पूछा गया कि क्या वे इस विषय पर क्या कहना चाहते हैं, तो एक किसान नेता ने स्पष्ट कहा, “कानूनों पर रोक लगाने से कोई फायदा नहीं। आज नहीं तो कल फिर आ जाएंगे। इन कानूनों को निरस्त करना चाहिए”

लेकिन ये बात केवल किसानों तक सीमित नहीं है। यदि ये अराजकतावादी इतने दिनों में सरकार द्वारा हर प्रकार की गारंटी के बाद भी नहीं माने, तो सरकार के इस दांव पे कैसे मान जाएंगे? ये वही अराजकतावादी हैं, जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट द्वारा कृषि कानूनों पर रोक लगाने और ‘किसानों’ की मांगों को सुनने वाली कमेटी के स्थापित होने के बाद भी अपना आंदोलन जारी रखा। इसके अलावा यूपी दिल्ली के सीमा पर अराजकता फैला रहे राकेश टिकैत ने स्पष्ट भी कर दिया है, कि वे 26 जनवरी को ट्रैक्टर परेड करके ही दम लेंगे। अब ऐसे में यदि वे वाकई मान गए, तो क्या उन लोगों की नाक नहीं कटेगी?

इसके अलावा यदि ये अराजकतावादी एक बार को मान भी जाए, तो राष्ट्रीय राजधानी को दंगों की आग में झोंकने के लिए लालायित विपक्षियों का क्या होगा? इसलिए कई विपक्षी नेता तो उलटे अराजकता फैला रहे ‘किसान आंदोलन’ के नेताओं को उल्टा और भड़काने में लगे हुए हैं। उदाहरण के लिए सपा नेता अखिलेश यादव के ट्वीट को ही देख लीजिए। जनाब ट्वीट करते हैं, “ भाजपा सरकार ने डेढ़ दो साल के लिए कृषि कानूनों को स्थगित करने का प्रस्ताव दिया है, जो तर्कहीन है, क्योंकि जो कानून आज सही नहीं है, वो 2023 में कैसे सही हो जाएगा?”

ऐसे में एक बात स्पष्ट है – मोदी सरकार ने कृषि कानून स्थगित करने का प्रस्ताव देकर एक बहुत बड़ा जोखिम लिया है। यदि यह असफल रहता है, तो यह निर्णय मोदी सरकार की छवि के लिए उतना ही हानिकारक होगा, जितनी 1999 के कंधार कांड में बुद्धिजीवियों के दबाव में वाजपेयी सरकार द्वारा आतंकियों को छोड़ना था। लेकिन अगर अराजकतावादियों ने इस प्रस्ताव को सिरे से नकारा, जिसके आसार ज्यादा दिख रहे हैं, तो यह मोदी सरकार को इन अराजकतावादियों के विरुद्ध ताबड़तोड़ कार्रवाई करने के लिए पूरी स्वतंत्रता भी देगा। ऐसे में 22 जनवरी एक अहम दिन होगा, जिस दिन यह तय होगा कि अराजकतावादियों की विजय होगी या देशवासियों की।

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