चीन की GDP और Recovery से प्रभावित हैं? तो यह है वो कहानी जो CCP आपको जानने नहीं देना चाहती


विवादित आंकड़ों और झूठे दावों के बल पर चीन अपने आप को दुनिया की सबसे तेजी से उभरती बड़ी अर्थव्यवस्था बताता है। वर्ष 2020 में जब पूरी दुनिया के कारोबार में गिरावट देखने को मिल रही थी, ऐसे समय में भी चीन ने अपनी विकास दर को सकारात्मक बताने का दावा किया है। दिसंबर क्वार्टर के लिए तो चीन ने अपनी विकास दर के अनुमान को 6.5 प्रतिशत बताया है। यह आंकड़े बेशक किसी को भी प्रभावित कर सकते हैं और चीनी आर्थिक तंत्र की प्रशंसा करने को बाध्य कर सकते हैं। हालांकि, चीन के इन आंकड़ों के झूठ के पीछे की सच्ची कहानी अब जाकर दुनिया के सामने आने लगी है।

यह बात सर्वविदित है कि चीन ने अपनी अर्थव्यवस्था को बेहतर दिखाने के लिए ही कोरोना महामारी से जुड़े आंकड़ों को दुनिया से छिपाया! जानकारों के मुताबिक नवंबर-दिसंबर 2019 से ही चीन में कोरोना के आंकड़े सामने आने लगे थे, लेकिन चीन ने तब अमेरिका के साथ होने वाली एक ट्रेड डील को बचाने के लिए अपने यहाँ फैलती महामारी को सार्वजनिक होने ही नहीं दिया! यहाँ तक कि चीन ने विश्व स्वास्थ्य संगठन पर अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए कोरोना को शुरुआत में दबाने की भरपूर कोशिश की! WHO ने जनवरी 2020 में यह दावा किया था कि कोरोना छुआ-छूत की बीमारी नहीं है।

हालांकि, ऐसा चीन ने किया क्यों? दरअसल, 2019 में चीन और अमेरिका के बीच में Phase-1 की ट्रेड डील को लेकर बातचीत चल रही थी, जिसे दिसंबर 2019 तक final किया जाना था, और फिर 15 जनवरी 2020 तक phase 1 का समझौता किया जाना था। अगर दिसंबर-जनवरी में ही China अपने यहाँ किसी महामारी के फैलने की बात को सार्वजनिक कर देता तो अमेरिका यह डील कभी नहीं करता। ऐसे में चीन के अनुमान के मुताबिक डील के ना होने से चीन को करीब 1 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान उठाना पड़ता!

यह चीन की दूरदर्शिता का अभाव ही था कि उसने अपने 1 ट्रिलियन डॉलर बचाने की मंशा से पूरी दुनिया को कोरोना की आग में धकेल दिया। हालांकि, चीन के आयातक देशों में कोरोना बेकाबू होने से चीन की अर्थव्यवस्था को कितना नुकसान हुआ, इसका आंकड़ा अभी तक सामने नहीं आ पाया है, लेकिन इतना तय है कि चीन अब अपने उस फैसले को सही साबित करने के लिए अपने आर्थिक आंकड़ों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर रहा है।

पिछले कुछ सालों में पेपर ड्रैगन की आर्थिक सेहत में बड़ी कमी देखने को मिली है। Nikkei Asia की रिपोर्ट के मुताबिक Global financial crisis के बाद से चीन पर 20% की सालाना दर से कर्ज बढ़ रहा है। Bank for International Settlement के अनुमान के मुताबिक चीन का debt per GDP ratio 2010 के पहले क्वार्टर में 178% था जो 2020 के पहले क्वार्टर में 275% हो चुका है। चीन की सरकारी कंपनियों की हालत बेहद खस्ता हो चुकी है और वे अपने Bonds को default करने पर मजबूर हो रही हैं।

हाल ही में कई बड़ी सरकारी चीनी कंपनियों ने Bonds का principal amount या ब्याज देने में अपनी असमर्थता जताई है। इनमें Yongcheng Coal & Electricity Holding Group और Huachen Auto Group Holdings Co जैसी बड़ी सरकारी कंपनियाँ भी शामिल हैं। इसका अर्थ यह है कि ये चीनी कंपनी अपने खर्चे चलाने के लिए लोगों से पैसा तो मांग रही हैं लेकिन ये कंपनियाँ उस पैसे को वापस देने या उसपर ब्याज देने के योग्य नहीं रही हैं।

चीन की आर्थिक हालत उसकी ये कंपनियाँ और उसका कर्ज़-संकट बयां कर रहे हैं। ऐसे में अगर आप चीन के शानदार आर्थिक प्रदर्शन से प्रभावित हैं, तो आपको चीनी अर्थव्यवस्था के इन आंकड़ों पर भी गौर करना चाहिए! चीनी अर्थव्यसथा में चमक कम है और पर्दा ज़्यादा, ऐसे में मुख्यधारा मीडिया की headlines को देखकर चीनी अर्थव्यवस्था का सही आंकलन करना अप्रासंगिक होगा!

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