Farmers protest: फिर मुकर्रर हुई अगली तारीख..बेनतीजा रही आज की वार्ता..अब ऐसा होगा आगे का प्लान

अब एक बार फिर से किसान और सरकार के बीच   हुई वार्ता बेनतीजा साबित हुई। दोनों पक्षों के बीच हुई वार्ता में किसी मसले को लेकर सहमति नहीं बन पाई। नतीजा यह हुआ कि अब वार्ता की अगली तारीख 19 जनवरी की मुकर्रर हुई है।  आज की वार्ता को लेकर केंद्रीय कृषि मंत्री ने बहुत उम्मीदें जताई थी, लेकिन अफसोस सारी उम्मीदों पर पानी फिर गया। एक ओर जहां किसान सरकार से इन  कृषि कानूनों को वापस लेने की जिद्द पर अड़े रहे , तो वहीं सरकार इन कृषि कानूनों को वापस लेने को राजी नहीं है बल्कि सरकार का कहना है कि  अगर इन कानूनों में कुछ प्रावधानों में संशोधऩ करना है, तो वो इसके लिए तैयार है, लेकिन  इन कानूनों को वापस नहीं लिया जा सकता। बस…यहां पर आकर बात नहीं बन पाई है। दोनों ही पक्ष  अपने रूख पर बरकरार हैं। 

बता दें कि इससे पहले की वार्ताओं में पराली  जलाने समेत सब्सिडी को लेकर बात बनी थी, लेकिन अभी-भी मुकम्मल सफलता हाथ नहीं लगी है, जिसका ही नतीजा है  कि लगातार तारीख पर तारीख.. तारीख पर तारीख.. मिलने का सिलसिला जारी है। अब अगली वार्ता 19 जनवरी की मुकर्रर हुई है। अब देखना यह होगा कि अगली वार्ता में किसानों के  समस्याओं का निदान हो पाता है की नहीं। किसान और  सरकार के बीच यह वार्ता विज्ञान भवन में मुकम्मल हुई। जिसमें केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से लेकर केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल तक शिरकत करने पहुंचे थे। कृषि मंंत्री ने तो आज की वार्ता को लेकर बहुत उम्मीदें भी जताई थी, लेकिन अफसोस उनकी यह उम्मीदें पूरी न हो पाई।

इस बीच सरकार ने हाड़़  कंपा देने वाली ठंड में किसानों के आंदोलन पर चिंता व्यक्त की है। सरकार ने कहा कि हम किसानों  को लेकर चिंतित है, मगर किसानों का रूख भी साफ है कि जब तक यह कानून वापस नहीं लिए  जाते हैं, तब तक अन्नदाताओं का यह आंदोलन जारी रहेगा। अब ऐसे में सरकार धर्मसंकट में नजर आ रही है। वहीं,  इस वार्ता के दौरान कृषि मंत्री ने किसानों से लचीला रूख अख्तियार करने की अपील की है। उन्होंने कहा कि अगर किसान चाहते हैं कि किसान और सरकार के बीच यह वार्ता साथर्क साबित हो सके, तो इसके लिए किसानों को भी लचीला रूख अख्तियार करना होगा अन्यथा वार्ता का यह क्रम लंबा खींच  सकता है , जो कि  यकीनन आगामी दिनों में   उन किसानों के लिए  चिंता का सबब है, जो ठंड के मौसम में आंदोलनरत हैं। 


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