प्रशांत क्षेत्र में प्रभाव रखने वाले digicel टेलीकॉम पर चीन की थी नजर, ऑस्ट्रेलिया ने फेरा मंसूबों पर पानी

 


चीनी टेक कंपनियों के वैश्विक बहिष्कार के बाद अब चीन दूसरे देशों की टेलीकॉम कंपनियों को खरीदने के फिराक में है। चीनी कंपनी चाइना मोबाइल प्रशांत क्षेत्र की टेलिकॉम कंपनी डिजिसेल  को खरीदने की कोशिश में लगी है जो ऑस्ट्रेलिया की राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसियों को परेशान कर रहा है। अब इसी के मद्देनजर ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने ने कहा कि वह डिजिसेल को खरीदने वालों को वित्तीय मदद देने पर विचार कर रही है ताकि उसे चीनी कंपनियों के प्रभाव में जाने से रोका जा सके। यह ऑस्ट्रेलिया  की चीन के खिलाफ लड़ाई का ही हिस्सा है जिसे अब वह एक नए स्तर पर पहुंचा रहा है।

बता दें कि पिछले कुछ समय से डिजिसेल आर्थिक रूप से संघर्ष कर रहा है, और वह पपुआ न्यू गिनी, फिजी, टोंगा और समोआ सहित प्रशांत क्षेत्र में अपने मोबाइल फोन नेटवर्क को ऑफलोड करना चाह रहा है।

लेकिन कई चीनी कंपनियाँ उस क्षेत्र में अपने पाँव  जमाने के लिए डिजिसेल में संभावित खरीदार के रूप में सामने आई है जिसमें हुवावे, ZTE और China Mobile शामिल हैं। रिपोर्ट के मुताबिक China Mobile इस होड़ में सबसे आगे चल रहा है।

ऑस्ट्रेलियाई मीडिया ने पहले बताया है कि चीन मोबाइल कंपनी के प्रशांत द्वीप के क्षेत्रों में संचालन के लिए 900 मिलियन डॉलर की पेशकश कर रहा था। ऑस्ट्रेलिया जिसने पिछले कुछ समय में चीन के खिलाफ काफी सख्त रुख अपनाया है, एक प्रमुख चीनी फर्म द्वारा इस तरह की टेलीकॉम कंपनी के खरीद को एक बड़े क्षेत्रीय खतरे के रूप में देखा जा रहा है। इसी के परिणामस्वरूप, ऑस्ट्रेलियाई सरकार इन एसेट को चीनी सरकार के प्रभाव से दूर रखने के प्रयास में गैर-चीनी कंपनियों को वित्तीय रूप मदद करने के लिए आगे आ रही है। यह समर्थन या तो सब्सिडी वाले ऋण या ऋण गारंटी के रूप में दिया जाएगा।

इसमें कोई संदेह नहीं है कि प्रमुख चीनी टेलिकॉम कंपनियां चीनी सरकार से मिले निर्देशों का पालन करते हुए अन्य देशों के खिलाफ प्रोपोगेंडा चलाते हैं और उनके डेटा चीन भेजते हैं। ऐसे में ऑस्ट्रेलिया जैसे लोकतांत्रिक सरकार को चीन के खिलाफ एक्शन लेने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है।

परंतु ऑस्ट्रेलिया के पास अब निजी खिलाड़ियों की मदद करने के अलवा कोई अन्य विकल्प नहीं है। हालांकि, ऑस्ट्रेलिया का यह पहला कदम नहीं जो उसने चीन के खिलाफ लिया है। इससे पहले चीन के ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ आर्थिक युद्ध छेड़ने के बावजूद वह ड्रैगन के खिलाफ मजबूती के साथ खड़ा रहा है। चीन रोज नए तरह की धमकी देता है और ऑस्ट्रेलिया को डराने की कोशिश करता है, परंतु ऑस्ट्रेलिया टस से मस नहीं हुआ है। चीन ने ऑस्ट्रेलिया को घुटनों पर लाने की पूरी कोशिश की थी। बीजिंग ने पहले ऑस्ट्रेलिया से बीफ इम्पोर्ट को निलंबित कर दिया, उसके बाद जौ पर 80 प्रतिशत का इम्पोर्ट बढ़ा दिया था। हालांकि, अब ऑस्ट्रेलिया ने इन सभी का उपाय ढूंढ लिया है और उसे भारत तथा जापान से खूब मदद मिल रही है। पहले तो चीन द्वारा ऑस्ट्रेलियाई कोयले के आयात पर अनाधिकृत रोक लगाने के बाद, ऑस्ट्रेलिया ने भारत और जापान के बाजार को विकल्प बनाया जिससे चीन के बिजली और स्टील क्षेत्रों में कोयले की कमी हो गयी। अब ऑस्ट्रेलिया अपने गेंहू के निर्यात के लिए चीन के स्थान पर दक्षिण पूर्व एशिया के बाज़ारों में निर्यात करने के विकल्प पर काम करना शुरू कर दिया है।

अब ऑस्ट्रेलिया चीन के खिलाफ अपने युद्ध को आगे बढ़ाते हुए चीनी खतरे को दूर रखने के लिए घाटे सहने को भी तैयार दिख रहा है। डिजिसेल में हिस्सेदारी खरीदने वाले निजी खिलाड़ियों को मदद करने के लिए तैयार है। यह मौरिसन सरकार की चीन के खिलाफ प्रतिबद्धता ही है जो कोरोना के खिलाफ जांच से शुरू हुआ और आर्थिक प्रतिबंधों के बावजूद आज तक जारी है। अब सभी देशों को चीन के सच्चाई का खुलासा हो चुका है और कोई भी आसान से चीन के झांसे में नहीं आने वाला है।

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