चीन दुनिया के बड़े मीडिया संस्थानों को पैसे खिलाकर करवाता था CCP का प्रचार


 दुनियाभर में जो भी तानाशाह या तानाशाही प्रवृत्तियां हुई हैं उनमें एक समानता होती है। वे प्रचारतंत्र का बखूबी इस्तेमाल करती हैं। यही चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का भी सबसे बड़ा हथियार बना हुआ है। लोकतंत्र की सबसे बड़ी खूबी यह है कि वे स्वतंत्र लेखन की छूट देते हैं। लेकिन लोकतंत्र की इसी खूबी का फायदा चीन की CCP अपने एजेंडा को पूरा करने के लिए करती है।

The national pulse की हालिया रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि किस तरह चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने अमेरिका के बड़े मीडिया आउटलेट को अपने पक्ष में करने के किये आलीशान पार्टियां दीं एवं उनके पत्रकारों और प्रमुख लोगों को चीन की मुफ्त सैर करवाई। रिपोर्ट के अनुसार चीन द्वारा यह कार्य पिछले एक दशक से किया जा रहा है। इसके लिए चीनी कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा अनुदानित China–United States Exchange Foundation (CUSEF) का इस्तेमाल हो रहा था।

Tung Chee Hwa द्वारा स्थापित CUSEF अमेरिकी विश्वविद्यालयों नीतिगत शोधकार्यों, उच्च स्तरीय चर्चाओं एवं अन्य ऐसे ही शिक्षा-क्षेत्र तथा अमेरिका-चीन संबंध से जुड़ी चर्चाओं एवं कार्यों को धन मुहैया करवाता है। लेकिन अमेरिका सरकार की रिपोर्ट बताती है कि इसका मूल उद्देश्य “चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की नीतियों पर होने वाले संभावित विरोधों को पहले ही समाप्त करना या उनके प्रभाव को कम करना है।” इसका तात्पर्य यह है कि यह संगठन अमेरिका के बौद्धिक व वैचारिक विमर्श में चीन के पक्ष को मजबूत करता है। जिससे कभी भी अमेरिका में चीन की नीतियों का विरोध शुरू न हो सके और कम्युनिस्ट शासन आसानी से अपनी नीतियों को लागू कर सके।

अमेरिकी मीडिया संस्थानों पर वैचारिक कब्जे के लिए CUSEF ने न सिर्फ आलीशान पार्टियां आयोजित की बल्कि अमेरिकी विश्वविद्यालयों में अध्ययनरत पत्रकारिता के छात्र-छात्राओं को भी लक्ष्य करके अपनी योजना लागू की। इसके तहत विभिन्न शैक्षणिक कार्यों द्वारा उनकी विचारधारा में परिवर्तन शामिल था। इसके अलावा BLJ नाम के एक तथाकथित स्वतंत्र मुद्रण प्रेस को भारी मात्रा में धन मुहैया करवाया गया।

इसके बाद BLJ ने Newsweek, the National Journal, the Nation, Congressional Quarterly, U।S। News, World Report, The Chicago Tribune, the Washington Note जैसी पत्रिकाओं में चीन समर्थित लेख छपवाए। इसके लिए BLJ ने तीन लेख प्रति सप्ताह की दर से चीन समर्थित लेख छपवाए।

इसके पहले भी चीनी कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा अमेरिकी मीडिया को प्रभावित करने की खबरें आईं हैं। अमेरिकी न्याय विभाग को सौंपी गई रिपोर्ट के अनुसार चीन ने मीडिया संस्थानों को लगभग 19 मिलियन डॉलर मुहैया करवाए थे।

इसके अलावा जब कोरोना का फैलाव हुआ और राष्ट्रपति ट्रम्प ने इसके लिए चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की नीतियों को जिम्मेदार ठहराया और वायरस को चाइनीज वायरस बोलकर चीन पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने की शुरुआत की। तब भी इन्हीं मीडिया संस्थानों ने ट्रम्प की आलोचना की थी। सच यह है कि ट्रम्प न होते तो अमेरिकी मीडिया चीनी कम्युनिस्ट पार्टी को क्लीनचिट दे चुका होता।

एक वक्त था जब अमेरिका अपने स्वतंत्र मीडिया संस्थानों तथा स्वस्थ लोकतांत्रिक बहसों के लिए जाना जाता था। अमेरिका ही नहीं दुनिया के जिन भी देशों ने स्वतंत्रता और लोकतंत्र को अर्जित किया है वहाँ उस देश के मीडिया संस्थानों की बड़ी भूमिका रही है। लेकिन अब यही मीडिया संस्थान पैसों के लालच में अपनी विश्वसनीयता गवा चुके हैं। यह हाल सिर्फ अमेरिकी मीडिया का ही नहीं है, बल्कि दुनिया भर में मीडिया संस्थान पैसों के लोभ में CCP जैसी तानाशाही सरकारों और प्रवृत्तियों की गुलामी कर रहे हैं।

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