दुनिया से नकारे गए चीनी वैक्सीन को मिला हलाल सर्टिफिकेट, उलेमाओं की गोद में जिनपिंग


चीन दुनिया में अपनी वैक्सीन की विश्वसनीयता हासिल करने के लिए भरसक कोशिश कर रहा है। इसके बाद भी उसकी वैक्सीन को स्वीकार्यता नहीं मिल रही। स्वयं चीन में भी इसे लेकर संदेह व्यक्त किया जा रहा है, वहाँ के बड़े वैक्सीन एक्सपर्ट चीन की वैक्सीन को दुनिया की सबसे खराब वैक्सीन मानते हैं।

ऐसे में अपनी वैक्सीन की दुनिया में स्वीकार्यता बढ़ाने के लिए चीन अब मौलानाओं पर निर्भर है। हाल ही में इंडोनेशिया की उलेमा परिषद ने चीन की वैक्सीन को हलाल सर्टिफिकेट देकर इसे पवित्र और इस्लामी मान्यताओं पर खरा बताया है। गौरतलब है कि जैसे जैसे दुनिया में वैक्सीनेशन की प्रक्रिया शुरू हो रही है, मुस्लिम समुदाय के कुछ तबकों द्वारा वैक्सीन को लेकर हलाल और हराम जैसा विवाद उठाया गया है।

वैक्सीन बनाने में जिलेटिन का इस्तेमाल होता है। जिलेटिन का प्रयोग वैक्सीन निर्माण में इसलिए किया जाता है कि वह वैक्सीन में मौजूद वायरस को प्रतिकूल परिस्थितियों से बचाता है। जिलेटिन सुअर के चर्बी से प्राप्त होता है इसलिए यह इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार हराम है। हालांकि, दुनियाभर में बड़े पैमाने पर इन्हीं जिलेटिन का इस्तेमाल विस्फोटक बनाने में भी होता है। किंतु विस्फोटक में जिलेटिन का इस्तेमाल किसी भी उलेमा द्वारा, कभी हलाल-हराम विमर्श का हिस्सा नहीं बनाया गया।

यही कारण है कि दुनियाभर में बन रही वैक्सीन को लेकर उलेमावर्ग अपनी शंकाएं व्यक्त कर रहा है। किंतु इसी बीच चीन की वैक्सीन को हलाल सर्टिफिकेट मिलना, थोड़ी आश्चर्यजनक घटना है। जो भी हो ब्राजील, बांग्लादेश जैसे देशों द्वारा चीन की वैक्सीन को अस्वीकार करने के बाद चीन को जो नुकसान हुआ था वह इंडोनेशिया के हलाल सर्टिफिकेट से जरूर कम होगा।

वैसे भी चीन का मुस्लिम देशों से बहुत अच्छा सम्बंध है। चीन में उइगर मुसलमानों पर हो रहे अत्याचारों पर उम्मा हमेशा आंखे बंद रखता है, चीन अपने देश के बाहर, कट्टरपंथी इस्लाम को रोकने के लिए, कभी मुखर विरोध करता नहीं देखा गया। ऐसे में उलेमावर्ग और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का गठजोड़ जगजाहिर बात है तथा यह सर्टिफिकेट भी इसी का प्रमाण है।

बता दें कि इंडोनेशिया के उलेमा परिषद के सदस्य हलाल ऑडिट के लिए पिछले वर्ष चीन में SINOVAC की लैब का निरीक्षण करने चीन गए थे। इसके बाद उन्होंने सिनोवैक की वैक्सीन को हरी झंडी दी।

मुस्लिम देशों की ओर से वैक्सीन निर्माताओं से यह कहा गया था कि वे अपनी वैक्सीन निर्माण प्रक्रिया के सभी अवयवों की जानकारी उपलब्ध करवाएं। ऐसे में चीन पहला देश है जिसने बाकायदा हलाल ऑडिट करवाया है। चीन, जो कोरोना के कारणों की जांच के लिए उठने वाले सवालों को अपनी बेइज्जती के रूप में ले रहा था, तथा जो किसी भी अंतरराष्ट्रीय संस्था को, अपने देश में किसी भी प्रकार का ऑडिट करने की अनुमति नहीं देता, वह वैक्सीन बेचने के लिए, इंडोनेशिया के उलेमाओं को अपने देश की लैब घूमने की अनुमति दे रहा है।

बहरहाल इस सर्टिफिकेट के मिलने के बाद चीन को मुस्लिम देशों में अपनी वैक्सीन बेचने में आसानी होगी, क्योंकि सऊदी से लेकर इंडोनेशिया तक हलाल और हराम का संदेह एक बड़ी समस्या थी।

लेकिन इसका एक गंभीर दुष्परिणाम यह है कि चीन और इंडोनेशिया का यह कदम अन्य निर्माताओं को भी हलाल सर्टिफिकेट लेने के लिए मजबूर करेगा, अन्यथा मुस्लिम सुमदाय के एक बड़े हिस्से तक उनकी पहुंच सीमित हो जाएगी। साथ ही यह अन्य लोकतांत्रिक देशों में वैक्सीनेशन की प्रक्रिया को धीमा करेगा, क्योंकि अब कट्टरपंथी इस्लामिक तबकों द्वारा उनपर भी यह दबाव बनाया जाएगा कि वे भी हलाल सर्टिफिकेट प्राप्त वैक्सीन को ही मास-वैक्सीनेशन के लिए प्रयोग करें।

गौरतलब है कि UAE में एक फतवा जारी करके मुसलमानों को यह आदेश दिया गया था कि वह बिना इसकी चिंता किये बिना, वैक्सीन हलाल है या नहीं, इसे लगवाएं। इसके बाद यह उम्मीद की जा सकती थी कि कट्टरपंथियों को उनकी हलाल-हराम की बेवजह की बहस का जवाब मिल गया होगा। लेकिन अब इंडोनेशिया के उलेमाओं द्वारा इस बहस को और आगे बढ़ाने का काम किया गया है।

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