चीनी प्रशासन की सनक का कोई जवाब नहीं। अपने आप को विश्वविजेता सिद्ध करने के लिए वे किसी भी हद तक जा सकते हैं, चाहे इसके लिए चीनियों की बलि क्यों न चढ़ा दे। अभी हाल ही में चीनी सेना में भर्ती होने से मना करने वाले कुछ चीनियों के साथ प्रशासन ने जो व्यवहार किया है, उससे स्पष्ट पता चलता है कि चीन क्या संदेश देना चाहता है।
हाल ही में गूआंगझी जुआँग प्रांत के दो युवकों को ‘देशद्रोही’ घोषित किया गया है। इन्हें अनिश्चितकाल तक कोई नौकरी नहीं दी जाएगी, चाहे वो सरकारी हो या फिर निजी। एक पे 33006 युआन का जुर्माना लगाया गया, और दूसरे पर 32376 युआन का जुर्माना लगाया गया ।
जिस प्रकार से भारत चीन के बीच हुए युद्ध की खबरें जनता के समक्ष आ रही है, और जिस प्रकार से चीन को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर फजीहत झेलनी पड़ रही है, उससे स्पष्ट पता चलता है कि किस प्रकार से सेना की लोकप्रियता चीन में इस समय रसातल में है।
अभी हाल ही में चीनी सेना को एक विशाल रिक्रूटमेंट अभियान रद्द करना पड़ा है। यूं तो इसके पीछे चीनी प्रशासन के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने कारण दिया है कि ये सब वुहान वायरस के कारण हुआ है, परंतु चीन की वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए यह बहाना किसी को भी शायद ही हज़म होगा।
सच्चाई तो यह है कि चीन को ढूँढे से भी चीनी सेना के लिए इच्छुक युवा नहीं मिल रहे। नवंबर में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार चीन को PLA के लिए सैनिक ढूँढने से भी नहीं मिल रहे हैं। चीन के युवा अब सेना की बजाय अन्य आकर्षक नौकरियों में जाना पसंद कर रहे हैं जिससे PLA के लिए बड़ी मुश्किल खड़ी हो गई है।
चीन की सेना अब पढ़े लिखे युवाओं को आकर्षित करने में असफल साबित हो रही है और इसका सबसे बड़ा कारण चीनी युवाओं की मानसिक स्थिती है। न तो उनके मन में राष्ट्रवाद की भावना है और न ही उन्हें उस प्रकार की सुविधा मिल रही है जैसी अन्य देश अपने सैनिकों को देते हैं। यही नहीं इन युवाओं के पास अब पूर्व की पीढ़ी के मुकाबले और ज्यादा कैरियर विकल्प भी मौजूद हैं।
इसके अलावा एक और कारण भी है जिससे चीन को अपनी सेना के लिए कुशल सैनिक नहीं मिल पा रहे हैं, और वह है ‘वन चाइल्ड नीति’। कई सारी मीडिया रिपोर्ट्स और शोध इस बात का दावा करते हैं कि चीनी सेना “one child policy” के तहत जन्में इकलौते बच्चों से भरी पड़ी है, जिन्हें बड़े ही लाड़-प्यार से पाला गया होता है, और उनमें लड़ने का ज़रा भी हौसला नहीं होता। इसका एक उदाहरण कई महीनों पहले देखने को मिला था, जब भारत तिब्बत बॉर्डर पर तैनाती के लिए जा रहे नए चीनी सैनिकों में से कुछ फूट फूट के रो रहे थे, मानो उन्हे जबरदस्ती भेजा जा रहा हो।
Quartz की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 1979 के बाद से चीनी सेना के पास किसी बड़ी मुठभेड़ का कोई अनुभव ही नहीं है, और चीन के सैनिक अपनी training का 40 प्रतिशत हिस्सा “राजनीतिक ट्रेनिंग” में बिताते हैं। वर्ष 1979-80 में ही चीन में “one child policy” लागू की गयी थी, जिसे शुरू-शुरू में चीनी सेना के लिए वरदान समझा गया, क्योंकि चीन को लगा था कि इससे सिर्फ पढे-लिखे, समझदार नौजवान ही चीनी सेना में भर्ती होंगे, लेकिन बाद में चीनी प्रशासन ने पाया कि ये बच्चे तो बड़े ही बुझदिल, लाड़-प्यार से पाले हुए, और “बिगड़ैल” थे।
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