‘चीन ने वायरस दिया, हम वैक्सीन देंगे’, वैक्सीन डिप्लोमेसी में चीन को पीछे छोड़ भारत अपनी सॉफ्ट पावर बढ़ाएगा


3 जनवरी का दिन कोरोना के खिलाफ भारत की लड़ाई में अब तक का सबसे सफ़ल दिन साबित हुआ है। रविवार सुबह Drug Controller General of India ने भारत में ही बनी दो वैक्सीन को आपातकालीन इस्तेमाल के लिए अनुमति दे दी है। जिन दो vaccines को यह अनुमति मिली है, उनमें से एक Serum Institute of India ने बनाई है, तो वहीं दूसरी वैक्सीन को भारत बायोटेक नामक कंपनी ने इजाद किया है। Serum Institute ने तो पहले ही अपनी वैक्सीन का बड़ी मात्रा में उत्पादन करना भी शुरू कर दिया था। अब उम्मीद है कि भारत जल्द ही अपने फ्रंटलाइन योद्धाओं के लिए इस वैक्सीन को उपलब्ध करा देगा। घरेलू जरूरतों को पूरा करने के बाद भारत निकट भविष्य में अफ्रीका और एशिया के देशों में भी अपनी वैक्सीन का निर्यात करना शुरू कर सकता है। यह इसलिए भी अहम हो जाता है क्योंकि चीन भी अपनी वैक्सीन का उत्पादन कर अफ्रीका और एशिया के गरीब देशों के बाज़ार को निशाना बनाना चाहता था, लेकिन खराब efficacy rate के कारण दुनियाभर के देशों को चीनी वैक्सीन पर कोई खास भरोसा नहीं रहा है।

बता दें कि Serum Institute of India द्वारा बनाई गयी वैक्सीन की efficacy को 70.42 प्रतिशत आंका गया है, जबकि भारत बायोटेक की Covaxin की efficacy को आने वाले दिनों में जारी किया जा सकता है। दोनों ही कंपनियों ने अभी से अपनी-अपनी vaccines का बड़ी मात्रा में उत्पादन करना भी शुरू कर दिया है। अगर भारत अपनी वैक्सीन को दुनिया के अन्य देशों में एक्सपोर्ट करना शुरू कर देता है, तो इससे भारत की सॉफ्ट पावर में कितनी बढ़ोतरी होगी, इसका सिर्फ अंदाज़ा ही लगाया जा सकता है।

बता दें कि अभी पश्चिमी देशों में Pfizer और Moderna जैसी कंपनियों की Vaccines को अनुमति मिली हुई है। इसके अलावा रूस की Sputnik V वैक्सीन और चीन की Sinovac वैक्सीन भी रेस में है। पश्चिमी देशों की वैक्सीन ना सिर्फ बेहद महंगी है, बल्कि इसे स्टोर करने के लिए भी उन्नत तकनीक वाले cold storage infrastructure की आवश्यकता होगी, जो दुनिया के अधिकतर देशों के पास नहीं है। वहीं, दूसरी ओर Sputnik V और Sinovac से जुड़े डेटा को जारी करने में पारदर्शिता ना बरते जाने के कारण अधिकतर देश इन vaccines पर विश्वास करने से कतरा रहे हैं।

उदाहरण के लिए हाल ही में जब चीन की Sinovac ने ब्राज़ील में trials किए, तो उसकी efficacy मात्र 50 प्रतिशत से थोड़ी ज़्यादा रिकॉर्ड की गयी और ये trials पूरी तरह फेल साबित हुए। हालांकि, इसके बावजूद आनन-फानन में कई गरीब देश और खुद चीन इस वैक्सीन को मंजूरी देने के लिए मजबूर हो रहे हैं, क्योंकि अभी तक उन्हें चीन की खराब वैक्सीन का कोई और विकल्प नहीं दिखाई दे रहा था। हालांकि, अब जब भारत की Biotech और Serum Institute इस रेस में दौड़ने के लिए तैयार हो गए हैं, तो अब भारत भी दुनिया के देशों पर वैक्सीन के जरिये अपना प्रभाव बढ़ा सकता है।

बता दें कि भारत Biotech की वैक्सीन यानि Covaxin के लिए पहले ही करीब 10 देश अपनी रूचि दिखा चुके हैं। अमेरिका में भारत की दिग्गज फार्मा कंपनी भारत बायोटेक ने अमेरिकी कंपनी Ocugen के साथ करार भी कर लिया है, ताकि इस वैक्सीन को अमेरिका में भी वितरित किया जा सके। दक्षिण अमेरिका, एशिया, मध्य एशिया और पूर्वी यूरोप के कई देशो ने इस वैक्सीन में अपनी रूचि दिखाई है। स्पष्ट है कि जिस कोरोना वैक्सीन डिप्लोमेसी के बल पर चीन 2020 में खराब हुई अपनी छवि को दुरुस्त करने और बड़ा आर्थिक फायदा अर्जित करने की उम्मीद कर रहा था, अब उसकी जगह भारत अपनी सॉफ्ट पावर बढ़ाएगा। ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि वैक्सीन डिप्लोमेसी के मामले में आने वाले दिनों में चीन को बड़ा नुकसान होने वाला है, जबकि उसकी जगह भारत को बड़ा फायदा मिलने की उम्मीद है।

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