आर्कटिक में चीन, रूस और अमेरिका के वर्चस्व की जंग के बीच अब भारत ने भी एंट्री ले ली है


दुनिया के उत्तरी ध्रुव यानि North Pole पर लगातार बर्फ़ पिघलती जा रही है, जिसके कारण अब यह क्षेत्र पहले जितना दुर्गम नहीं रहा है। Climate Change के कारण अब प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर इस द्वीप तक पहुँच बनाना आसान हो गया है और यही कारण है कि यह क्षेत्र भविष्य के भू-राजनीतिक विवादों के एक नए केंद्र के रूप में उभरकर सामने आ रहा है। रूस, अमेरिका और चीन जैसे देश इस द्वीप पर प्रभाव जमाने के लिए लगातार कोशिश कर रहे हैं। Arctic से करीब 900 मील की दूरी पर स्थित चीन अपनी इन्हीं कोशिशों के तहत अपने आप को “Near Arctic” देश घोषित भी कर चुका है। इसी क्रम में अब भारत ने बड़ा कदम उठाते हुए अपनी Arctic Policy का एक ड्राफ्ट तैयार कर लिया है।

इस ड्राफ्ट के अनुसार भारत की Arctic Policy के पाँच सबसे अहम बिन्दु होंगे:

  1. वैज्ञानिक शोध
  2. अर्थशास्त्र एवं मानव विकास
  3. कनेक्टिविटी
  4. वैश्विक प्रशासन एवं अंतर्राष्ट्रीय सहयोग
  5. भारतीय मानव संसाधन की क्षमता का विकास

भारत ने इस नीति के माध्यम से दुनिया को बताया है कि दुनिया के तीसरे पोल के रूप में जाने जाने वाले हिमालय क्षेत्र में शोध और Antarctica में पूर्व के अनुभवों के बल पर Arctic में भारत की हिस्सेदारी बड़ी भूमिका निभा सकती है। बता दें कि भारत Arctic मामलों की देखरेख करने वाली अंतर्राष्ट्रीय संस्था Arctic Council का वर्ष 2013 में ही सदस्य बन गया था और भारत की सदस्यता को वर्ष 2018 में रिन्यू किया गया था। इसके अलावा भारत वर्ष 2007 के बाद से ही Arctic में एक शोध केंद्र और दो observatories के ज़रिये अपनी मौजूदगी बनाए हुए है। यानि Arctic से हजारों मीलों दूर होने के बावजूद भारत Arctic मामलों में अपनी दिलचस्पी दिखाता आया है और इसका भू-राजनीति से बड़ा संबंध है।

बता दें कि आज से करीब तीन साल पहले यानि जनवरी 2018 में चीन ने भी अपनी Arctic नीति को जारी किया था, जिसमें उसने Arctic के Northern Sea Route के जरिये अपने BRI प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाने की मंशा को दर्शाया था। इसके साथ ही चीन ने अपने आप को Near Arctic देश भी घोषित कर दिया था। उसी के बाद से रूस और अमेरिका लगातार Arctic क्षेत्र में चीन के प्रभाव को बढ़ने से रोकने के लिए सख्त रुख अपना चुके हैं। रूस Northern Sea Route और क्षेत्र के संसाधनों पर अपना पहला अधिकार समझता है, जिसके कारण वह क्षेत्र में चीन को एक प्रतिद्वंधी के तौर पर देखता है।

ऐसे में भारत द्वारा Arctic नीति का ड्राफ्ट तैयार करने से यह साफ हो गया है कि अब जल्द ही भारत भी अपने मित्र देशों के साथ सहयोग के बल पर Arctic क्षेत्र में अपनी मौजूदगी और प्रभाव को बढ़ा सकता है। बता दें कि पिछले वर्ष जनवरी में ही भारत सरकार ने यह साफ़ कर दिया था कि वह Arctic में प्राकृतिक संसाधनों के अन्वेषण को लेकर रूसी सरकार के साथ मिलकर काम करने के लिए तैयार है। बता दें कि Arctic में रूस की सरकारी कंपनी Rosneft अपने एक महत्वाकांक्षी Vostok Oil Project को आगे बढ़ा रही है, जिसमें भारत की भी हिस्सेदारी है।

भारत ने अपनी Arctic नीति के ड्राफ्ट में साफ़ लिखा है “Arctic क्षेत्र में कोई भी मानव क्रिया अंतर्राष्ट्रीय नियमों के तहत पारदर्शिता और जवाबदेही के साथ की जानी चाहिए। भारत इस क्षेत्र में UNCLOS के नियमों को लागू करने का समर्थन करता है और सभी साझेदारों के साथ एक जिम्मेदार सहयोगी होने के नाते वार्ता करने को लेकर इच्छुक है।” ऐसे में यहाँ भारत ने स्पष्ट तौर पर अपने विरोधी चीन को एक कड़ा संदेश भेजने की कोशिश की है कि आर्कटिक में चीन की विस्तारवादी नीतियों को लेकर भारत एक सख्त रुख अपनाना जारी रखेगा।

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