म्यांमार, श्रीलंका, इंडोनेशिया जैसे देश जो अब तक चीन विरोधी थे, ट्रम्प के जाते ही चीन की ओर मुड़ गए


अमेरिका में ट्रम्प चुनाव हार गए हैं और बाइडन के आने के बाद वैश्विक समीकरण बदलने की संभावना है। बाइडन ईरान, पश्चिम एशिया और चीन को लेकर ट्रम्प की नीति की आलोचना कर चुके हैं। उन्होंने ईरान के साथ ओबामा प्रशासन में हुए न्यूक्लियर डील पर पुनः वापसी का संकेत दिया है जिसे ट्रम्प ने निरस्त कर दिया था। वहीं बाइडन चीन के साथ चल रहे शीतयुद्ध को रोकने का प्रयास भी कर सकते हैं, क्योंकि उनका मुख्य ध्येय रूस की घेराबंदी करना है, न कि चीन की।

ऐसे में कई ऐसे छोटे देश, विशेष रूप से दक्षिण चीन सागर एवं हिन्द महासागर के देश, जो ट्रम्प सरकार में चीन के पाले से निकलकर अमेरिका की ओर खिसक रहे थे, QUAD ग्रुप से संबंध बढ़ा रहे थे, तथा जिन्हें उम्मीद थी कि चीन के विरुद्ध सक्रिय अमेरिका एक विश्वसनीय सहयोगी होगा, पुनः चीन के साथ दिखने का प्रयास कर रहे हैं। फिलीपींस, श्रीलंका, म्यांमार आदि देश बाइडन के आते ही अपनी नीति में बदलाव करने के संकेत दे रहे हैं।

श्रीलंका का उदाहरण लें तो कुछ समय पूर्व ही श्रीलंका के विदेश सचिव ने कहा था कि सामरिक सुरक्षा की दृष्टि से भारत उनकी प्रथम प्राथमिकता है। इसके बाद अमेरिकी विदेश सचिव माइक पॉम्पियो ने श्रीलंका के दौर किया था, जहाँ उन्होंने कहा था कि चीन, श्रीलंका में किसी ‘प्रीडेटर’ (परजीवभक्षी जानवर) की तरह व्यवहार करता है जबकि अमेरिका एक मित्र की तरह आया है। उनका इशारा चीनी डेब ट्रैप की ओर था। अमेरिका ने श्रीलंका के डेब मार्केट में चीन के बढ़ते प्रभाव पर चिंता जाहिर की थी, एवं सहयोग का आश्वासन दिया था।

किंतु जैसे ही परिणाम आये और ट्रम्प की पराजय हुई, जापान ने अमेरिकी सहयोगी धड़े से दूरी बनानी शुरू कर ली, जिससे चीन नाराज न हो। इसी क्रम में जापान द्वारा फंडेड 2 मिलियन डॉलर के रेल प्रोजेक्ट को श्रीलंका ने खारिज कर दिया। यहाँ तक कि जिस चीनी सरकारी कंपनी को हम्बनटोटा पोर्ट का प्रोजेक्ट मिला था, जिसको लेकर बहुत विवाद हुआ था, उसी कंपनी को पुनः 1 बिलियन डॉलर का प्रोजेक्ट मिल गया।

इसके अलावा इंडोनेशिया ने कुछ समय पूर्व अपने एक रेल प्रोजेक्ट जो पहले चीनी कंपनी को मिला था, उसके निर्माण के लिए पुनः जापान की कंपनी को आमंत्रित किया था। इंडोनेशिया ने अपने अखबारों में चीनी फंडिंग पर रोक लगा दी थी। किंतु अब यही इंडोनेशिया चीनी वैक्सीन को, चीन के बाद मान्यता देने वाला पहला देश बन गया है। यहाँ तक कि इंडोनेशिया से ही चीन की वैक्सीन को हलाल वैक्सीन का सर्टिफिकेट भी जारी किया गया।

म्यांमार की बात करें तो कुछ समय पूर्व यह देश चीन पर अपने देश के अलगाववादियों को समर्थन देने का आरोप लगा रहा था और अब यही देश चीन की वैक्सीन को खरीद रहा है। जबकि यह सर्वविदित है कि चीन की वैक्सीन, असुरक्षित है, एवं इसके परीक्षण से संबंधित डेटा भी उजागर नहीं किया जा रहा।

यही हाल फिलीपींस एवं मलेशिया का भी है। फिलीपींस ने QUAD की बढ़ती सक्रियता के कारण इस ओर अपना रुझान दिखाना शुरू किया था लेकिन अब वह भी चीन के साथ सामंजस्य बनाकर चलने की नीति पर आ रहा है। फिलीपींस अब चीन से 2.5 करोड़ वैक्सीन डोज खरीदने वाला है। मलेशिया ने अपने 5G सेक्टर में हुआवे के एकाधिकार पर रोक लगाई थी किंतु अब वह भी फिलीपींस के समान व्यवहार कर रहा है। जहाँ तक कंबोडिया का प्रश्न है तो वह पहले ही चीन पर बहुत हद तक निर्भर है। ट्रम्प सरकार ने इस स्थिति को समझते हुए कंबोडिया अमेरिका रिश्तों को सुधारने के प्रयास शुरू किए थे, लेकिन अभी इसपर बहुत काम बाकी रह गया है।

यह सभी बदलाव अप्रत्याशित नहीं हैं। अब तक व्हाइट हाउस की कमान ट्रम्प जैसे तेज एवं प्रतिक्रियावादी नेता के पास थी। साथ ही विदेश विभाग माइक पॉम्पियो जैसे कुटिल एवं चालाक व्यक्ति के पास था, जो CCP की चालबाजियों को बेहतर तरीके से संभाल रहे थे। लेकिन अब बाइडन जैसे सुस्त नेता, जो पहले से अपने चीन समर्थक रवैये के कारण जाने जाते हैं, के आने के बाद इन देशों का यह व्यवहार स्वाभाविक है। यदि बाइडन जल्द ही अपने आक्रामक व्यवहार से पुनः इन देशों में विश्वास पैदा नहीं कर पाते, तो चीन को हिन्द प्रशांत क्षेत्र में घेरने की नीति पर इसका विपरीत प्रभाव पड़ेगा। बाइडन के बेटे के चीन से व्यापारिक संबंध जगजाहिर हैं, ऐसे में बाइडन चीन के विरुद्ध कोई कड़ा रुख अपनाएंगे, यह और भी संदेहास्पद है।

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