चीन के आर्कटिक में घुसने के मंसूबों को ध्वस्त करने के लिए एक साथ आ सकते हैं अमेरिका और रूस


दक्षिण चीन सागर पर अमेरिका और चीन के बीच तनाव के दौरान ही अब “Arctic” दोनों देशों के बीच एक नए तनाव का केंद्र बन सकता है। अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने हाल ही में अपने एक ट्वीट में चीन को लताड़ लगाते हुए कहा था कि आखिर Arctic से 900 मील दूर रहकर भी चीन अपने अपने आप को “Near Arctic” देश कैसे कह सकता है, जिसके बाद चीन की तरफ से भी कड़ी प्रतिक्रिया देखने को मिली है। Arctic को लेकर पहले ही रूस और चीन के बीच लगातार तनाव देखने को मिलता रहता है। ऐसे में इस बात की उम्मीद लगाई जा सकती है कि भविष्य में “बाहरी चीन” को Arctic पर अपना प्रभाव जमाने से रोकने के लिए रूस और अमेरिका आपसी समझ के आधार पर एक साझेदारी विकसित कर सकते हैं।

बता दें कि वर्ष 2018 में चीन ने अपनी Arctic Policy को जारी किया था। अपनी इस पॉलिसी के तहत चीन ने अपने आप को एक “Near Arctic” देश घोषित कर दिया था और दुनिया को यह संदेश भेजा था कि Arctic के संसाधनों पर चीन का भी हक़ है। हालांकि, Arctic को लेकर पहले ही रूस, अमेरिका और कनाडा जैसे इसके पड़ोसी देश इस बर्फीले द्वीप पर अपना दावा ठोक चुके हैं।

हालांकि, पिछले कुछ समय में जिस प्रकार चीन आक्रामकता के साथ Arctic क्षेत्र में अपने प्रभाव को बढ़ाने की कोशिश में जुटा है, उसने रूस और अमेरिका जैसे देशों को चिंता में डाल दिया है। 4 जनवरी को पोम्पियो ने ट्वीट किया “मैंने साफ़ कर दिया है कि Arctic से 900 मील दूर होकर भी चीन द्वारा अपने आप को एक “Near Arctic” देश कहना उसकी मात्र एक कल्पना है। चीन यहाँ पिछले काफ़ी समय से अपने खेल खेल रहा था, हमने अब सच्चाई को स्वीकार कर वही कहा है जो सच है।” इसके अलावा पूर्व में रूस भी आर्कटिक पर बढ़ते चीनी प्रभाव पर अपनी चिंता जता चुका है। पिछले वर्ष ही रूस ने Arctic पर शोध कर रहे अपने एक उच्चाधिकारी पर चीन के लिए जासूसी करने के आरोप भी लगाए थे।  चीन द्वारा Arctic पॉलिसी को जारी किए जाने के बाद से ही रूस Arctic पर अपना प्रभाव जमाने के लिए और ज़्यादा आक्रामक हो गया है।

अमेरिकी स्पेस कमांड के मुताबिक बीते 15 दिसंबर को ही रूस ने स्पेस में एक और anti-satellite टेस्ट किया था। रूस ने यह टेस्ट तब किया था जब इस महीने की शुरुआत में चीन ने Arctic में trading routes के बारीकी से अध्ययन के लिए एक नई विशेष satellite लॉन्च करने का ऐलान किया था। इसके अलावा भी दिसंबर और नवंबर में रूस Arctic में एक के बाद Hypersonic और Ballistic मिसाइल्स का टेस्ट करता आया है। रूस इस क्षेत्र में चीन को एक बड़े प्रतिद्वंदी के रूप में देखता है, और ऐसे में हो सकता है कि रूस बार-बार मिसाइल परीक्षण कर चीन को एक कड़ा संदेश देना चाहता है। चीन की नज़र यहाँ Northern Sea Route पर है, जिसपर रूस अपना एकाधिकार चाहता है।

ऐसे में अब Arctic को लेकर चूंकि अमेरिका भी खुलकर चीन के दावों के खिलाफ मोर्चा खोल चुका है, तो इससे चीन के माथे पर अभी से शिकन दिखना भी शुरू हो चुकी हैं। पोम्पियो के ट्वीट के बाद चीनी विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी कर कहा कि “अमेरिका और दक्षिण चीन सागर के बीच की दूरी तो 8300 मील दूर है, ऐसे में अमेरिका किस हैसियत से अपने युद्धपोत और जेट्स इस क्षेत्र में भेजता है?”

स्पष्ट है कि Arctic में रूस और अमेरिका की संभावित साझेदारी से चीन को अपनी परेशानी बढ़ती दिखाई दे रही हैं। रूस और अमेरिका बेशक Arctic क्षेत्र में प्रतिद्वंदी हैं और भविष्य में हमें दोनों देशों के बीच भी तनाव देखने को मिल सकता है। हालांकि, अभी के लिए दोनों देशों की प्राथमिकता है- Arctic पर चीन के हवाई दावों की पोल खोलना और चीन के मंसूबों को धराशायी करना! इसके लिए अब ये दोनों देश एक साथ आ रहे हैं और यह बेशक चीन के लिए अच्छी खबर नहीं है।

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