ओबामा ने चीन को दक्षिण चीन सागर दिया, अब बाइडन चीन को हिन्द महासागर देना चाहेंगे, पर कामयाब नहीं होंगे


कल यानि 20 जनवरी को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के पहले कार्यकाल का आखिरी दिन है, और आज 21 जनवरी की सुबह अमेरिका को उसका 46वां राष्ट्रपति मिल जाएगा, जिनका नाम है जो बाइडन! इसी के साथ यह सवाल खड़ा हो रहा है कि बाइडन हिन्द महासागर को लेकर क्या नीति अपनाएँगे? ऐसा इसलिए, क्योंकि ओबामा प्रशासन के समय उप-राष्ट्रपति रहे बाइडन के कार्यकाल के दौरान चीन ने बड़े ही आराम से दक्षिण चीन सागर पर अपना प्रभुत्व बढ़ा लिया था। दक्षिण चीन सागर के मुद्दे पर चीन के खिलाफ कोई ठोस एक्शन ना लेने के लिए वर्ष 2018 में ट्रम्प ने ओबामा प्रशासन को “impotent” करार दिया था। अब जब जो बाइडन अमेरिका के राष्ट्रपति पद को ग्रहण करने जा रहे हैं, ऐसे में इस बात की पूरी-पूरी संभावना है कि चीन उनके ढीले रवैये का फायदा उठाकर हिन्द महासागर में भी अपनी पैठ बढ़ाने पर ज़ोर देगा! हालांकि, यहाँ भारत शायद ही चीन के इन सपनों को पूरा होने देगा, क्योंकि भारत सरकार हिन्द महासागर की इकलौती और सबसे बड़ी सैन्य शक्ति है। ऐसे में बाइडन के सुस्त रवैये के बाद भी यहाँ शायद ही चीन की दाल गले!

आपको बता दें कि वर्ष 2009 से लेकर वर्ष 2017 तक अमेरिका के राष्ट्रपति रहे ओबामा के कार्यकाल में ही चीन ने दक्षिण चीन सागर को लगभग अपनी मुट्ठी में कर लिया था। जिनपिंग प्रशासन ने ना सिर्फ दक्षिण चीन सागर के कई द्वीपों को अपने कब्जे में कर लिया, बल्कि अपने विवादित 9 डैश लाइन के दावों के तहत दक्षिण चीन सागर में कई मानव-निर्मित द्वीप भी बना डाले। यहाँ तक कि अब तो ऐसे कई द्वीपों पर PLA ने अपने military bases भी स्थापित कर लिए हैं। वर्ष 2013 में फिलीपींस के Scarborough Shoal द्वीप को लेकर चीन और फिलीपींस में बड़ा विवाद भी पैदा हो गया था और उसे लेकर फिलीपींस ने UN का दरवाज़ा भी खटखटाया था। UN ने इसके बाद चीन को ही फटकार लगाई थी लेकिन चीन ने UN की सुनने से इंकार कर दिया था। तब अमेरिका हाथ पर हाथ धरकर बैठा रहा और पूरे दक्षिण चीन सागर पर चीन ने अपना वर्चस्व जमा लिया!

अब जब बाइडन सत्ता में आ रहे हैं, तो चीन को दक्षिण चीन सागर के बाद हिन्द महासागर में अपना वर्चस्व बढ़ाने का बढ़िया मौका मिल गया है। ट्रम्प प्रशासन के समय तो चीन के लिए दक्षिण चीन सागर में स्थिति मुश्किल होने लगी थी, लेकिन अब बाइडन के आने के बाद चीन समुद्र में अपनी विस्तारवादी नीति को दोबारा पंख दे सकता है। हिन्द महासागर के लिए अमेरिका के पास अभी कोई ठोस नीति नहीं दिखाई देती। अमेरिका और उसके अन्य साझेदारों के बीच हिन्द महासागर की नीति पर अभी तक सहमति नहीं बन पाई है। ऐसे में चीन यहाँ बाइडन के नर्म रुख का फायदा उठाकर हिन्द महासागर में घुसपैठ करने की योजना बनाना चाहेगा।

हालांकि, चीन के लिए दक्षिण चीन सागर की तरह ही हिन्द महासागर में अपनी पैठ बढ़ाना इतना आसान नहीं रहने वाला! भारत इंडोनेशिया, फिलीपींस और वियतनाम की तरह कोई छोटी-मोटी नेवल शक्ति नहीं है, बल्कि हिन्द महासागर की सबसे बड़ी और प्रभावशाली शक्ति है। भारत हिन्द महासागर में जापान, फ्रांस और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के साथ मिलकर अपना प्रभाव बढ़ाने और चीन के प्रभाव को खत्म करने की योजना पर लगातार काम कर रहा है। हाल ही में भारत ने फ्रांस और जापान के साथ मिलकर Quad के समानांतर एक अन्य त्रिपक्षीय फोरम को लॉन्च करने की घोषणा की है। ऐसे में हिन्द महासागर में भारत की मर्ज़ी के बिना चीन के लिए तो छोड़िए, किसी परिंदे के लिए भी पर मारना बेहद मुश्किल रहने वाला है। बाइडन की सुस्त नीति का फायदा उठाकर चीन बेशक हिन्द महासागर में अपनी किस्मत आजमाने का विचार कर सकता है, लेकिन यहाँ उसे निराशा के अलावा कुछ और हाथ नहीं लगने वाला!

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