छत्रपति शिवाजी महाराज नहीं केवल ‘शिवाजी’ और ‘जनाब बालासाहेब ठाकरे’, शिवसेना ने हिंदुत्व को पूरी तरह छोड़ दिया है


शिवसेना एक बार फिर से विवादों के घेरे में है, और इस बार अपने कैलेन्डर को लेकर। हाल ही में नववर्ष में शिवसेना के युवा मोर्चा ने एक कैलेन्डर जारी किया और इस कैलेंडर ने एक बार फिर सिद्ध किया कि सत्ता के लिए यह पार्टी किस हद तक गिर सकती है। कभी जिस हिन्दुत्व के लिए शिवसेना भाजपा से अधिक आक्रामक होने का दावा करती थी, आज वही शिवसेना न सिर्फ उर्दू में छपे कैलेंडर बँटवा रही है, बल्कि छत्रपति शिवाजी महाराज की विरासत से भी दूरी बना रही है।

हाल ही में शिवसेना की युवा सेना ने 2021 के लिए नया कलेन्डर जारी किया। लेकिन अब इस ‘शिवशाही कलेन्डर’ में न तो छत्रपति शिवाजी महाराज का कहीं उल्लेख था, और न पहले की भांति सनातन संस्कृति का। इस बार कैलेंडर में शिवसेना ने अपनी नई नवेली सेक्युलरिज्म का प्रदर्शन करते हुए कैलेंडर को उर्दू में छपवाया, और बालासाहेब ठाकरे को ‘जनाब बालासाहेब ठाकरे’ कहकर संबोधित किया। जो शिवसेना कभी राम मंदिर के निर्माण में विलंब पर मोदी सरकार को जी भर के कोसती थी, आज वही शिवसेना बड़े चाव से उर्दू लिपि में कलेंडर छपवाती है, और साथ ही साथ बालासाहेब ठाकरे को ‘जनाब’ कहके संबोधित भी करती है।

हालांकि, यह कोई हैरानी की बात नहीं है, क्योंकि शिव सेना का नैतिक पतन तो तभी शुरू हो गया जब 2 वर्ष पहले 2019 में राहुल गांधी द्वारा वीर सावरकर पर बेबुनियाद आरोप लगाने के बाद भी उनके मुंह से उफ़ तक नहीं निकली। रही सही कसर तो पिछले वर्ष अज़ान के लिए मुस्लिम बच्चों में प्रतिस्पर्धा करवाने के प्रस्ताव ने पूरी कर दी, जिसे बाद में वापिस ले लिया गया था।

अब भाजपा ने भी शिवसेना को उसके विश्वासघात के लिए खरी खोटी सुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। भाजपा के विधायक और पार्टी प्रवक्ता अतुल भातखलकर के अनुसार, “शिवसेना जो अब तक औरंगाबाद को संभाजीनगर में परिवर्तित नहीं कर पाई है, ‘हिन्दू हृदय सम्राट बालासाहेब ठाकरे’ को ‘जनाब बालासाहेब ठाकरे’ के रूप में खड़ा करने में कामयाब रही हैं। यह सब कुछ शिवसेना मुसलमानों को खुश करने के लिए कर रही है। उर्दू कलेन्डर में मुस्लिम त्योहारों, इस्लामिक रीति के अनुसार सूर्योदय और सूर्यास्त का उल्लेख है, परंतु छत्रपति शिवाजी महाराज की जयंती को केवल शिवाजी जयंती के तौर पर लिखा गया है। हम इसकी कड़ी नींदा करते हैं”।

ऐसा लगता है कि शिवसेना पार्टी अल्पसंख्यक तुष्टीकरण में कांग्रेस को भी काफी पीछे छोड़ने की कवायद में जुट गयी है। अजान प्रतियोगिता भी इसी का हिस्सा था परन्तु आलोचनाओं के बाद इस पार्टी को अपना फैसला वापस लेना पड़ा था। अपनी स्थापना के साथ ही हिंदुत्व की झंडाबरदार रही शिव सेना ने महाराष्ट्र में मुस्लिमों को सरकारी स्कूल-कॉलेजों 5 प्रतिशत आरक्षण देने का प्रस्ताव तक रखा था। हद तो तब हो गयी जब मुंबई में मीट बैन के मुद्दे पर शिव सेना मुस्लिमों की पैरवी करती नजर आयी।

ऐसे में शिवसेना के उर्दू कलेन्डर और छत्रपति शिवाजी महाराज के प्रति पार्टी के बदलते स्वभाव को लेकर किसी को कोई हैरानी नहीं होनी चाहिए, क्योंकि शिव सेना पहले ही अपना हिन्दुत्व पर एकाधिकार खो चुकी है, और अब ऐसी घटनाएँ केवल महाराष्ट्र में उसके प्रभाव को और कम करने की दिशा में काम करेंगी।

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