चीन को घाटा, भारत को फायदा, भारत चीन के फार्मा उद्योग को खा गया


विश्व को कोरोनावायरस जैसी महामारी देकर चीन ने अपने लिए एक ऐसा आर्थिक पंगा लिया है जिसका सीधा फायदा अब ‘चाइना प्लस वन पॉलिसी’ के अंतर्गत भारत को मिल रहा है। इस पॉलिसी के चलते भारत में फार्मास्युटिकल प्रोडक्ट्स का निर्यात पहली बार 18 प्रतिशत पर पहुंच गया है। अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और इटली जैसे देश चीन के घटिया प्रोडक्ट्स से मुंह फेर कर भारतीय उच्च गुणवत्ता वाले फार्मास्युटिकल प्रोडक्ट्स और ड्रग्स का आयात कर रहे हैं। इसके चलते थोक दवाओं के निर्यात में भी 9 प्रतिशत की भारी वृद्धि दर्ज की गई है। दुनिया ने देख लिया है कि चीन केवल मुसीबत में डाल सकता है जबकि भारत मुसीबत से निकालने में अग्रणी रहा है।

कोरोना महामारी के दौरान विश्व ने चीन को पूर्णतः नजरंदाज किया है। अमेरिका समेत यूरोप के लगभग सभी देशों ने अब चाइना प्लस वन पॉलिसी का निर्वहन करना शुरू कर दिया है। जिसके तहत चीन के अलावा ये देश अन्य देशों से भी आयात को बढ़ावा देंगे, और चीन पर पूर्णतः निर्भर नहीं रहेंगे। इस नई नीति का फायदा भारत को हुआ है। क्रिसिल की एक रिपोर्ट के मुताबिक चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही के दौरान भारत के फार्मास्युटिकल प्रोडक्ट्स के निर्यात में 18 प्रतिशत और थोक दवाओं के निर्यात में 9 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई हैजो कि पूरे वित्त वर्ष की तुलना में क्रमशः 11 प्रतिशत और 1 प्रतिशत है। इससे भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी एक सकारात्मक असर पड़ा है।

इस निर्यात के बढ़ने की एक अन्य वजह भारत से  API (Active Pharmaceutical Ingredients) की बढ़ती मांग भी है। जिन देशों को चीन से धोखा मिला उनका रूख भारत की बढ़ा है। अमेरिका और यूरोप जैसे बड़े बाजारों में दवाओं की मांग बढ़ने के कारण निर्यात में वृद्धि हुई है। दिलचस्प ये भी है कि भारत ने अपनी खपत को पूरा करते हुए अपना फार्मास्युटिकल एक्सपोर्ट नहीं रोका था। इसके अलावा कई भारतीय कंपनियों ने Gilead साइंसेज जैसी वैश्विक कंपनियों के साथ Remdesivir के निर्माण और निर्यात के लिए बड़े कॉन्ट्रैक्ट भी किया, और भारत की इस क्षेत्र में सकारात्मक सक्रियता बनी रही।

कुल मिलाकर कहें तो कोरोनावायरस के कारण लॉकडाउन के दौरान चीन की गलतियां भारत के लिए अवसर के रूप में उभरी हैं जिसके चलते आज भारत का फार्मा सेक्टर तेजी से बढ़ रहा है । जहां एक तरफ फार्मास्युटिकल प्रोडक्ट्स  और थोक दवाओं के निर्यात और घरेलू खपत में वृद्धि हुई जिससे भारत का रिवेन्यू बढ़ी। दूसरी तरफ चीन को इस दौर में केवल आलोचनाओं का ही सामना करना पड़ा है। कोरोनावायरस के खौफ के दौरान भी चीन अपनी खराब पीपीई किट और टेस्टिंग किट देकर लोगों की जिंदगियों के साथ खिलवाड़ कर रहा था, जिससे उसकी आलोचना हुई। यही नहीं चीन की वैक्सीन पर भी किसी देश को कोई भरोसा नहीं रहा।

बता दें कि आस्ट्रेलिया से लेकर पाकिस्तान, नेपाल, अफ्रीका समेत यूरोप के कई बड़े देशों में चीन ने घटिया क्वालिटी के मास्क, पीपीई किट, कोरोना टेस्टिंग किट सप्लाई किए थे जिसके बाद उन्हें इन सभी देशों ने वापस भी किया। इसको लेकर चीन की काफी लानत-मलामत हुई थी। ऐसे वक्त में खुद कोरोनावायरस से जूझने के बावजूद भारत दुनिया को हाइड्रोक्लोरोक्विन जैसी दवाओं का सुगमता से निर्यात कर रहा था जिसके चलते दुनिया के देशों में भारत के प्रति सकारात्मकता आई और उस सकारात्मकता ने ‘चाइना प्लस वन पॉलिसी’ के अंतर्गत भारत की साख को बढ़ाने के साथ ही फार्मा सेक्टर को बड़ा बूस्ट भी दिया ।

कोरोनावायरस के कारण चीन को जहां प्रत्येक क्षेत्र में घाटा होता चला गया, तो उसका वही घाटा भारत के लिए अवसर बनकर सामने आया है। विश्व के कई देश तो ये भी मानने लगे हैं कि चीन को उसकी हद में रखने के लिए भारत का समर्थन करना आवश्यक है।

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