कुछ खालिस्तानी समर्थकों और विपक्षी एजेंडे के बहकावे में संसद द्वारा पारित कृषि कानूनों के खिलाफ तथाकथित अराजक किसान आंदोलन जारी है। इसके चलते सुप्रीम कोर्ट और केन्द्र सरकार के बीच कुछ ऐसी बातचीत हो गई है जो कि संवैधानिक संकटों की ओर ले जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट के जज का कहना है कि अगर सरकार कानून पर जल्द कोई निर्णय नहीं ले सकती तो कोर्ट ही अराजकता के कारण स्टे लगा सकता है और इसे रोक सकता है। अब केंद्र सरकार के तीनों कृषि कानूनों पर सुप्रीम कोर्ट ने आगले आदेश तक रोक लगा दी है। इसके अलावा कोर्ट ने बातचीत के लिए एक 4 सदस्यीय समिति का गठन भी किया है जिसमें भूपिंदर सिंह मान, अशोक गुलाटी, अनिल घनवट और प्रमोद जोशी शामिल हैं।
सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई में किसान आंदोलन को लेकर सीजेआई बोबड़े, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी रामसुब्रमण्यम की पीठ का आक्रमक रुख देखने को मिला है। सुप्रीम कोर्ट केंद्र सरकार पर ही बरस पड़ा है और जज एस ए बोबड़े ने कहा था कि, “पूरी बात महीनों से चल रही है और कुछ नहीं हो रहा है। हम आपसे बहुत निराश हैं। आपने कहा कि हम बात कर रहे हैं। क्या बात कर रहे हैं? किस तरह का नेगोसिएशन कर रहे हैं?”
केंद्र सरकार और किसानों के बीच बातचीत को लेकर चीफ जस्टिस की तरफ से कहा गया कि कमेटी के तहत ये मामला हल किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, “अगर कानूनों को होल्ड पर नहीं रखा जाता है, तो हम इस पर रोक लगाएंगे।” इसके इतर कोर्ट अराजकतावादी किसानों को लेकर कोई भी बयानबाजी नहीं कर रही है, और उन्हें आंदोलन का हक होने की बात कहकर सारी सरकारी दलीलें नजरंदाज कर रहा है।
हालांकि, कोर्ट ने कहा कि वो कानून रद्द करने की बात नहीं कर रहा। कोर्ट ने कहा, “हम ये नहीं कह रहे हैं कि आप कानून को रद्द करे। हम बहुत बेतुकी बातें सुन रहे है कि कोर्ट को दखल देना चाहिए या नहीं। हमारा उद्देश्य सीधा है कि समस्या का समाधान निकले। हमने आपसे पूछा था कि आप कानून को होल्ड पर क्यों नही रख देते?”
कृषि कानूनों को चुनी हुई सरकार द्वारा संसद के दोनों सदनों में पारित किया गया गया है। इसमें संख्याओं का ध्यान रखा गया है जिसके बाद राष्ट्रपति ने इसे पारित भी कर दिया है। इस कानून में ऐसा कुछ भी नहीं है जो कि इसे असंवैधानिक करार दिया जा सके। न ये किसी के मूल अधिकारों का हनन कर रहा है, न ही इसके जरिए किसी दूसरे कानून के साथ टकराव की स्थिति बन रही है। ऐसे में इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट अपने सुझाव देने के अलावा ज्यादा कुछ नहीं कर सकता।
इसके बावजूद यदि अराजकता को देखते हुए खींझ में देश की सर्वोच्च अदालत इस मुद्दे पर कोई रोक लगाने या रद्द करवाने का फ़ैसला करती है तो वो असंवैधानिक होगा। जिससे देश में संविधान के दो स्तंभों न्यायपलिका और विधायिका के बीच टकराव की स्थिति बन सकती है जो कि लोकतंत्र के लिए और देश की प्रतिष्ठा के लिए बेहद ही आपत्तिजनक होगी।
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