यूरोप-एक ऐसा महाद्वीप जिसने दुनिया को अपना गुलाम बनाया, आज है दाने-दाने को मोहताज

 


चीन से निकले वुहान वायरस का नया स्ट्रेन आने से यूरोप में एक बार फिर से खौफ का माहौल बन चुका है। कोरोना के पहले दौर में भुखमरी के कगार पर पहुंचने वाला यूरोप एक बार फिर से भयंकर खाद्य संकट से जूझ रहा है। यूरोप, एक ऐसा महाद्वीप जिसने सदियों पहले एशिया, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया को कब्जे में कर शासन किया और इन महाद्वीपों को लूट कर इतना समृद्ध हो गया कि कई यूरोपीय देशों में मानव विकास सूचकांक यानि HDI में सबसे आगे आ गए, लेकिन आज कोरोनवायरस वायरस के करण यह दाने-दाने के लिए तरसने पर मजबूर हो रहा है। लाखों यूरोपीय लोग अब खाने के लिए खाद्य बैंकों पर निर्भर हैं क्योंकि वे दो वक्त का भोजन नहीं जुटा पा रहे हैं।

कोरोना के पहले दौर के बाद 2020 में यूनाइटेड किंगडम, जर्मनी, फ्रांस, स्पेन और इटली सहित अधिकांश यूरोपीय देशों की जीडीपी में दोहरे अंकों की गिरावट आई है। अब यूरोप में कोरोनवायरस के नए स्ट्रेन के कारण 2021 में अर्थव्यवस्था के और घटने की उम्मीद है तथा लाखों लोग बेरोजगार होने वाले हैं।

2020 में यूरोपीय लोगों को बेरोजगारी, गरीबी, भुखमरी, अकेलापन, मानसिक बीमारी जैसे मुद्दों से जूझते हुए देखा गया है। CNN की एक रिपोर्ट के अनुसार खाद्य बैंकों में 90 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि देखी गई है जो मुफ्त भोजन के पैकेट प्रदान करते हैं और गरीब परिवारों को अन्य प्रकार की सामाजिक और कानूनी सहायता प्रदान करते हैं।

ब्रिटेन, जो दुनिया के सबसे अमीर देशों में से है, सबसे गंभीर खाद्य संकट का सामना कर रहा है। एक रिपोर्ट की माने तो एक दिन में 1.5 मिलियन यानि 15 लाख ब्रिटिश लोग भूखे सोते हैं। वहीं 3 मिलियन लोग ऐसे हैं, जो एक वक्त का भोजन नहीं कर पाते। YouGov पोल की निदेशक एना टेलर ने कहा कि, “सरकार द्वारा तत्काल उन परिवारों को पैसा पहुंचाने की जरूरत है जो अपने भोजन का खर्च नहीं उठा सकते।”

पूरे यूरोप में खाद्य संकट की स्थिति अब नियंत्रण से बाहर हो चुकी है परंतु फिर भी उस महाद्वीप के देशों की सरकारें बेहद धीमी प्रतिक्रिया दे रही हैं। जर्मनी में 1.6 मिलियन से अधिक लोगों के खाने का भार उठाने वाले फूड बैंक Tafel Deutschland के चेयरमैन Jochen Brühl ने कहना है कि, “हम कई वर्षों से राजनेताओं और समाज को यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि Tafel का काम गरीबी को खत्म करना नहीं है, बल्कि हम सभी का यह काम है।”

यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने के बावजूद जर्मनी खाद्य संकट की समस्या को नियंत्रित नहीं कर पा रहा है। इसके अलावा, कहा जाता है कि इस देश में एक बहुत मजबूत सामाजिक सुरक्षा है, लेकिन सड़कों पर बहुत से बेरोजगार लोग दिखाई दे रहे हैं जिन्हें भोजन नहीं मिल रहा। इससे मर्केल सरकार पूरी तरह से एक्सपोज हो चुकी है।

जैसे-जैसे महामारी महाद्वीप में फैलती गई, अधिक से अधिक लोग बेरोजगार होते गए, तथा फूड बैंकों की मांग तेजी से बढ़ी। यूरोस्टेट के आंकड़ों के अनुसार, बड़े यूरोपीय शहरों के 20 प्रतिशत से अधिक लोग अब दिन के दो वक्त के भोजन के लिए फूड बैंकों पर ही निर्भर हैं।

यूरोपीय जनता त्रस्त दिखाई दे रही है क्योंकि उनके पास न रोजगार है, न भोजन है और न सरकार का समर्थन। यूरोप से कम विकसित माने जाने वाले भारत जैसे देशों ने महामारी का बेहतर ढंग से सामना किया है और सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) और प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (DBT) के माध्यम से गरीबों को बुनियादी जरूरतों के लिए भोजन और पैसा देने में सक्रियता दिखाई है। यूरोपीय देशों में सरकारों को महामारी के बीच लोगों के कल्याण का प्रबंधन भारत सरकार से सीखना चाहिए।

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