किसान आंदोलन को लेकर बोले राहुल, मोदी जी, पूंजीपति को छोड़, अन्नदाता का साथ दो


लखनऊ।
 दिल्ली की सीमाओं पर किसान एक तरफ जहां नए कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग को लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं, वहीं विपक्षी दल इस प्रदर्शन को और हवा देने में लगे हुए हैं। शायद इसी का नतीजा भी है कि सरकार और किसान संगठनों के बीच आठवें स्तर की वार्ता होने के बावजूद भी कोई समाधान नहीं निकल पाया है। सरकार जहां किसानों की हर शंका को दूर करने का प्रयास कर रही है। नए कृषि कानूनों में किसानों की राय के अनुसार संशोधन करने को तैयार है वहीं किसान कानूनों को पूरी तरह वापस लेने की मांग पर अड़े हुए हैं। वहीं कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने किसानों का पक्ष लेते हुए ट्वीट किया है- अब भी वक्त है मोदी जी, अन्नदाता का साथ दो, पूंजीपति का साथ छोड़ो! साथ ही राहुल गांधी ने अप्रैल, 2015 में लोकसभा में दिए गए अपने भाषण का एक वीडियो भी साझा किया है।

राहुल की तरफ से साझा किए गए वीडियो में वह कहते नजर आ रहे हैं कि हिंदुस्तान में किसानों की जमीन की जा कीमत है वो तेजी से बढ़ रही है। मोदी के जो कारपोरेट दोस्त हैं वह जमीन को चाहते हैं। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार किसानों को कमजोर करने की कोशिश कर रही है। इस वीडियो में वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सुझाव देते हुए बोल रहे हैं कि आपकी बड़े लोगों की सरकार है। लेकिन देश में 60 फीसदी किसान है, उनको राजनीतिक फायदा होगा, अगर वह अपनी साइड बदल दें। साथ ही वह सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि आपने पूंजीपतियों से जो वादा किया है उससे हमें नुकसान है। आप समझते हैं कि पूंजीपतियों से देश चलता है तो यह गलत है, देश गरीब किसानों से चलता है। आप किसानों को चोट पहुंचा रहे हैं और आने वाले समय में किसान आपको चोट पहुंचाएंगे।

गौरतलब है राहुल ने इस वीडियो को ऐसे समय में शेयर किया है जब दिल्ली की सीमाओं पर देश के विभिन्न हिस्सों से आए किसान कृषि कानूनों के विरोध में सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं। इस प्रदर्शन का कितना राजनीतिकरण किया जा रहा है इसका अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि कानून बनते ही कांग्रेस पूरी तरह से सड़क पर गा गई। किसानों को भड़काने के लिए पंजाब में मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और राहुल गांधी के नेतृत्व में किसान ट्रैक्टर रैली निकाली गई। पंजाब में करीब दो महीने तक ट्रेनों का संचालन रोका गया। कोर्ट की फटकार के बाद पंजाब से शुरू हुए इस आंदोलन को दिल्ली की तरफ मोड़ दिया गया। यहां जमे किसानों का इस तरह राजनीतिकरण किया जा चुका है कि वह कानून में किसी तरह के संशोधन को मानने की जगह इसे पूरी तरह से वापस लेने की मांग पर अड़े हुए हैं।

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