जिनपिंग को लगा झटका, रूस समर्थक और चीन के विरोधी सादिर जापारोव बने किर्गिस्तान के राष्ट्रपति!


चीन के साम्राज्यवादी प्रवृत्ति से कोई भी अनभिज्ञ नहीं है, और उसकी नजर भारत तिब्बत बॉर्डर से लेके दक्षिण पूर्वी एशिया, मध्य एशिया और यहाँ तक कि Far East, यानि रूस के आर्कटिक क्षेत्र पर भी है। लेकिन उसकी साम्राज्यवादी नीतियों को एक करारा झटका लगा, जब एक रूस समर्थक राजनीतिज्ञ को किर्गिस्तान का राष्ट्राध्यक्ष चुना गया, यानि किर्गिस्तान का राष्ट्रपति।

रूस समर्थक और चीन विरोधी नेता सादिर जापारोव का किर्गिस्तान के राष्ट्रपति पर चुना जाना लगभग तय है। किरगिस्तान के केन्द्रीय चुनाव कमीशन के अनुसार जापारोव को लगभग 80 प्रतिशत लोकप्रिय वोट मिले है। वे रूस के बहुत करीब हैं और उनका सत्ता में आने का अर्थ है कि चीन द्वारा किरगिस्तान पर वर्चस्व जमाने के मंसूबों पर जबरदस्त पानी फिर जाएगा ।

परंतु ये होगा कैसे? जापारोव पहले ही किर्गिस्तान के अंतरिम राष्ट्रपति है। पिछले वर्ष हुए चुनावों में काफी तनातनी हुई थी, क्योंकि विपक्ष का आरोप था कि चुनावों में धांधली हुई थी। रूस ने एक सेक्युरिटी ट्रीटी के अंतर्गत अपने पूर्व राज्य में किसी भी प्रकार की अनहोनी होने से रोकने हेतु सहायता की पेशकश की। इसी दौरान सादिर जापारोव जेल से रिहा हुए, और उनकी लोकप्रियता के चलते उन्हे कार्यकारी राष्ट्रपति बनाया गया।

अपने प्रचार अभियान के दौरान जापारोव ने स्पष्ट बताया कि रूस किर्गिस्तान का एक रणनीतिक साझेदार है। ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि सादिर के नेतृत्व में किरगिस्तान रूस के अधिक निकट होगा। इसी देश में रूस का एक अहम सैन्यबेस भी है और किर्गिस्तान के निवासियों के लिए रूस से बधिया रोजगार का कोई स्त्रोत नहीं।

पिछले कई वर्षों से चीन मध्य एशिया में रूस के प्रभुत्व में सेंध लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा था, चाहे वो कर्ज के मायाजाल के जरिए हो, या फिर BRI में निवेश के जरिए हो। स्थिति तो यह थी कि तुर्कमेनिस्तान के कर्ज न चुकाने की स्थिति में चीन उसके भूमि के एक बड़े हिस्से पर कब्जा भी जमा सकता था। इसके अलावा चीन ने अपनी आँखें रूस के आर्कटिक क्षेत्र पर पहले ही गड़ा रखी थी।

लेकिन रूसी कूटनीति व्यर्थ नहीं गई, और मध्य एशिया के अहम देशों में से एक किर्गिस्तान अब चीन के हाथ से फिसलता हुआ दिखाई दे रहा है। नया राष्ट्रपति रूस के प्रति अधिक निष्ठावान है, जिससे रूस का रास्ता अधिक सरल होगा और चीन का अधिक मुश्किल।

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