वालस्ट्रीट ने अपने चीनी आका को खुश करने के लिए दांव चला, फेल होने पर अपना निर्णय वापस लिया


न्यू यॉर्क स्टॉक एक्सचेंज ‘NYSE’ ने आनाकानी के बाद अंततः चीन की तीन टेलीकम्युनिकेशन कंपनियों को डिलिस्ट करने के अपने पूर्व के निर्णय को बरकरार रखा है। इसके पूर्व NYSE ने अपने निर्णय पर पुनर्विचार का फैसला किया था। टेलिकॉम सेक्टर की तीनों चीनी कंपनी राष्ट्रपति ट्रम्प के उस निर्णय के कारण डिलिस्ट की जा रही हैं जिसके तहत उन्होंने ऐसी कंपनियों पर कार्रवाई का निर्णय किया था जिनका स्वामित्व चीनी सेना के पास है।

दरअसल, वॉल स्ट्रीट में प्रभावी व्यक्तियों द्वारा चीनी कंपनियों की वकालत का प्रयास किया गया था। इन्होंने प्रयास किया कि किसी प्रकार राष्ट्रपति ट्रम्प के निर्णय को अप्रभावी किया जा सके, किंतु अपनी कोशिशों में नाकामयाब होने के बाद अंततः NYSE द्वारा अब इन कंपनियों को डिलिस्ट किया जा रहा है। यह प्रकरण बताता है कि चीन, अमेरिका की राजधानी में भी कितना प्रभावी है तथा उसके हितों की रक्षा के लिए वहां कई गैर-सरकारी समूह कार्यरत हैं, जिनका अमेरिकी प्रशासन से चीनी हितों की रक्षा हेतु टकराव होता रहता है।

NYSE ने अपने बयान में बताया है कि उसने अपने पूर्व-निर्णय पर पुनर्विचार का प्रस्ताव तब आगे बढ़ाया था जब अमेरिकी प्रशासन के अंग US Treasury Department’s Office of Foreign Assets Control (OFCA) द्वारा नए निर्देश आये। इसका यही अर्थ है कि चीन ने अपनी तीन कंपनियों को डिलिस्ट होने से बचाने के लिए NYSE पर OFCA द्वारा दबाव बनाने का प्रयास किया, जो यह बताता है कि चीन का अमेरिकी राजनीति एवं प्रशासन में प्रभाव कितना व्यापक हो चुका है।

ये चीनी कंपनियां NYSE में लाभ की स्थिति में आने के लिए धोखाधड़ी के तरीके अपना रही थीं। दरअसल, इन कंपनियां ने अमेरिकी मार्केट से धन उठाने के लिए, अपनी कंपनी के IPO/शेयर न्यू यॉर्क स्टॉक एक्सचेंज में उतारे। इन कंपनियों के नए IPO का लाभ बढ़ाने तथा बाजार में शेयर खरीदारों को आकर्षित करने के लिए, चीनी बैंक और प्रशासन की मदद ली।

अमेरिका की Scrutinies and Exchange Commision ‘SEC’ जो भारत की SEBI के समान ही ऐसी संस्था है, जो स्टॉक एक्सचेंज में कंपनियों पर निगरानी रखती है। इस संस्था द्वारा यह शर्त तय की गई है कि अमेरिकी शेयर बाजार में आने वाली सभी कंपनियों को स्वयं को Public Company Accounting Oversight Board या PCAOB के पास रजिस्टर करवाना पड़ता है। PCAOB सभी रजिस्टर्ड कंपनियों का ऑडिट कर सकती है जिससे यह तय किया जा सके कि कोई कंपनी बाजार से पैसे उठाने के लिए अपने लाभ को बढ़ाकर नहीं दिखा रही। आसान भाषा में समझें तो PCAOB कंपनियों के ऑडिट द्वारा यह सुनिश्चित करती है कि अमेरिकी शेयर बाजार में पंजीकृत कोई भी कंपनी फर्जीवाड़ा न करे।

किंतु चीन को निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा के नियमों को स्वीकार करने में हमेशा ही कठिनाई होती है। यही कारण है कि चीन की 200 कंपनियां SEC की शर्तों को ठीक से पूरा नहीं करती। चीनी प्रशासन PCAOB को अपने देश की कंपनियों के ऑडिट की अनुमति नहीं देता है। उसका तर्क है कि यह उसकी राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा मसला है और वह इसे अन्य देशों के साथ साझा नहीं कर सकता।

अब ट्रम्प प्रशासन द्वारा लिया गया निर्णय कंपनियों को PCAOB द्वारा ऑडिट करवाने के लिए बाध्य करता है। नए कानून के तहत जो कंपनी विदेशी सरकार के नियंत्रण में है वह तो डिलिस्ट होगी ही साथ ही यदि कोई कंपनी अमेरिकी संस्थान को लगातार तीन वर्षों तक, अपने आर्थिक गतिविधियों का ऑडिट करने से रोकती है, वह भी अमेरिकी शेयर मार्केट से डिलिस्ट कर दी जाएगी। इससे चीनी धोखाधड़ी पर रोक लगेगी।

अमेरिका यदि अपने मार्केट में ऐसे ही चीनी कंपनियों को मनमानी करने देता रहेगा, तथा अमेरिकी प्रशासन व गैर सरकारी संस्थानों में व्याप्त चीनी प्रभाव को खत्म नहीं करेगा तो यह उसके लिए बहुत हानिकारक होगा। हाल ही में चीन द्वारा अपनी तीन टेलीकॉम कंपनियों को डिलिस्ट होने से बचाने के लिए, OFCA का जिस प्रकार प्रयोग किया गया है, वह अमेरिका अर्थव्यवस्था एवं उसके आर्थिक प्रभुत्व के लिए खतरे का साफ संकेत है। यह NYSE ही नहीं बल्कि अमेरिकी सुरक्षा एजेंसियों एवं प्रशासन को भी सोचने पर मजबूर करेगा कि वह अपनी चीनी खतरे को हल्के में न लें।

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