भारत सरकार ने कोयला उत्खनन से संबंधित एक महत्वपूर्ण निर्णय के तहत कोयला खदानों के लिए आवेदन हेतु एक सिंगल विंडो सिस्टम लागू किया है।सोमवार को सिंगल विंडो सिस्टम की शुरुआत गृहमंत्री अमित शाह ने की। इस प्रणाली को शुरू करते हुए, शाह ने यह भी कहा कि यह कदम भारत के कोयला क्षेत्र में पारदर्शिता और परिवर्तन लाने में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की एक पहल थी।
उन्होंने कहा “कोयला क्षेत्र हमारी अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, कोयला क्षेत्र में वृद्धि सीधे भारत की अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देगी। यह मंच भारी निवेश लाकर और रोजगार पैदा करके हमारे प्रयासों को आगे बढ़ाएगा”
मोदी सरकार की 2025 तक 5 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बनने की महत्वाकांक्षी योजना में कोयला क्षेत्र सबसे महत्वपूर्ण घटकों में एक है।भारतीय स्टील उद्योग, सीमेंट उद्योग, बिजली उत्पादन केंद्रों आदि का आधार कोयला उद्योग है।भारत के पास विश्व का पाँचवा सबसे बड़ा कोयला भंडार है।भारत की खदानों में उच्च क्वालिटी का कोकिंग कोल काफी मात्र में उपलब्ध है।
किंतु बेहतर तकनीक के अभाव में भारत अपने कोयला क्षेत्र का उपयोग उसकी पूरी क्षमता में नहीं कर पा रहा।वर्ष 2018 में भारत का कोयला उत्पादन 728. 72 मिलियन टन था जबकि 2019-20 में यह 729.10 मिलियन टन था।अर्थात भारत ने केवल 0.5 प्रतिशत की उत्पादन बढ़ौतरी की जो भारत की जरूरतों तथा तीव्र आर्थिक विकास के लिए पर्याप्त नहीं है।
वर्ष 2016 में भारत का कोयला उपभोग 966.288 मिलियन टन है, जिसके चलते उस वर्ष भारत को अनुमानतः 204 मिलियन टन कोयला विदेशों से आयात करने की आवश्यकता पड़ी।इस आयात में विदेशी मुद्रा भंडार खर्च होता है।
ऐसे में कोयला सेक्टर को देशी-विदेशी निवेशकों के लिए खोलने के बाद सरकार को निवेश से बड़ी मात्रा में विदेशी मुद्रा भंडार मिलेगा, साथ ही प्राइवेट कंपनियों द्वारा उच्च तकनीक उपलब्ध करवाई जा सकेगी।
ऐसा नहीं है कि प्राइवेट कंपनियों को कोल सेक्टर में उतारने का फैसला मोदी सरकार का ही है और मनमोहन सरकार में यह क्षेत्र सरकारी कंपनियों के ही वश में था।वास्तव में उस वक्त बिड़ला, टाटा, जिंदल जैसे उद्योगपतियों को कोयला खदान का आवंटन हुआ करता था किंतु यह प्रक्रिया अत्यंत जटिल थी।इसके लिए निजी उद्यमों को अपने उत्पादन और वितरण की सारी सूचना, अर्थात अपनी सप्लाई योजना की जानकारी सरकार को आवंटन के पहले ही देनी होती थी।
आवंटन में नीलामी प्रक्रिया नहीं थी, केवल सरकारी अनुमति सबसे आवश्यक थी। इसी का फायदा उठाकर UPA सरकार में 1.86 लाख करोड़ का कोयला घोटाला हुआ, जिसमें सरकारी मंत्रियों ने अपने पद का दुरुपयोग करते हुए, धन के लोभ में कोयला खदान का आवंटन किया।खुली नीलामी प्रक्रिया न होने के कारण सरकार के कृपापात्र बड़ी कंपनियों को ही आवंटन हुआ।
अब जब मोदी सरकार कोयला क्षेत्र को निजी निवेश के लिए पूर्णतः खोल रही है तो यह आवश्यक था कि इसमें पूरी पारदर्शिता बरती जाए।इसी कारण सिंगल विंडो सिस्टम आवश्यक था जो निवेश की प्रक्रिया में अफसरशाही और सरकारी हस्तक्षेप को खत्म करेगा।
एक अनुमान के मुताबिक भारत 2050 तक लोहा एवं सीमेंट उत्पादन में विश्व में सबसे बड़ी शक्ति होगा।भारत में इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास तेजी से हो रहा है।प्रधानमंत्री मोदी की महत्वाकांक्षी प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत ग्रामीण इलाकों में आर्थिक मदद द्वारा आवास बन रहे हैं।इन्हीं कारणों से लोहा एवं सीमेंट उद्योग का विकास हो रहा है जिसकी जरूरतों को पूरा करने के लिए कोयला सेक्टर की क्षमता को बढ़ाना जरूरी है अन्यथा भारत को विदेशों से आयात पर निर्भर होना पड़ेगा।
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