2020 में मॉरिसन बने विजेता, चीन के विरुद्ध ऑस्ट्रेलिया की रणनीति साबित हुई कारगर!


2020 का साल संघर्षों से भरा पड़ा था। एक ओर मानव सभ्यता कोरोना से संघर्ष कर रही है, दूसरी ओर एक संघर्ष स्वतंत्र लोकतांत्रिक देशों और CCP की विचारधारा के बीच भी चल रहा था, जो नए साल में ऐसे ही आगे बढ़ेगा, ऐसी उम्मीद है। इस कूटनीतिक संघर्ष में एक रोचक टकराव ऑस्ट्रेलिया और चीन के बीच भी देखने को मिला।

दोनों पक्षों में यह टकराव तब शुरू हुआ जब ऑस्ट्रेलिया की ओर से वुहान वायरस के स्त्रोत की जांच करने की बात उठाई गई। इसके बाद चीन ने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ आर्थिक युद्ध छेड़ दिया। लेकिन अब साल के अंत में यह स्पष्ट हो रहा है कि चीन को इससे भले कुछ हासिल नहीं हुआ हो, स्कॉट मॉरिसन को जरूर इसका लाभ हुआ है। अब चीन से जुड़े सभी निर्णयों पर मॉरिसन को वीटो की शक्ति मिल गई है।

दिसंबर महीने में ऑस्ट्रेलिया की केंद्रीय सरकार ने यह नियम पारित किया कि प्रधानमंत्री मॉरिसन के पास चीन से संबंधित किसी भी ऐसे समझौते को स्थगित करने की शक्ति है, जिसे वे ऑस्ट्रेलिया के हितों के विरुद्ध समझें।

वैसे कोरोना की रोकथाम में असफलता को लेकर चीन की जवाबदेही तय करने का प्रयास मॉरिसन के लिए मुसीबतें भी खड़ी कर सकता था। ऑस्ट्रेलिया अपने कोयला, मांस और वाइन के निर्यात के लिए चीन पर निर्भर था। द्विपक्षीय व्यापार में ऑस्ट्रेलिया को 57 बिलियन डॉलर का फायदा होता था।ऐसे में चीन की आलोचना ऑस्ट्रेलिया के लिए आर्थिक संकट भी बन सकती थी।

चीन ने ऑस्ट्रेलिया पर दबाव बनाने के लिए उसके निर्यातों पर भारी शुल्क बढ़ोतरी भी की।ऑस्ट्रेलियाई बारले, टिम्बर, कोयला, वाइन आदि पर इसका असर भी पड़ा। इसके बाद ऑस्ट्रेलिया में चीन समर्थित लॉबी द्वारा मॉरिसन की नीतियों पर प्रश्न भी उठाए गए। वामपंथी धड़े के लेबर पार्टी के सांसदों ने ऑस्ट्रेलिया सरकार की नीतियों की आलोचना भी की।

लेबर सांसद Joel Fitzgibbon ने चीन द्वारा दिखाए गए अड़ियल रवैये का बचाव करते हुए कहा “हमें अवश्य ही (कोरोना के कारणों की) जाँच की आवश्यकता है, लेकिन हमारे प्रधानमंत्री जैसे चीन के पीछे पड़े हैं वह चीन के लिए अपमानजनक है। उन्हें ऐसा लगेगा ही कि उन्हें निशाना बनाया जा रहा है।”

लेबर पार्टी द्वारा शासित राज्य विक्टोरिया की सरकार के प्रमुख डेनियल एंड्रू ने भी लगातार जोर दिया कि चीन के बेल्ट एंड रोड प्रोजेक्ट के तहत मिलने वाली 107 बिलियन डॉलर की आर्थिक मदद जारी रखी जाए। ये हाल तब था जब दोनों देशों के बीच तनाव चरम पर था। बता दें कि विक्टोरिया एकमात्र ऑस्ट्रेलियाई राज्य है जिसने केंद्र के विरोध के बाद भी बेल्ट एंड रोड प्रोजेक्ट को मंजूरी दे रखी है।

कोएरसिव डिप्लोमेसी अर्थात अपनी आर्थिक-सैन्य शक्ति द्वारा चीन ऑस्ट्रेलिया को शांत करने की कोशिश में था किंतु ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन न तो चीन के दबाव में आये न विपक्षी नेताओं के। अंततः चीन द्वारा खेला गया आर्थिक घेराबंदी का दांव भी उल्टा पड़ गया है क्योंकि अब चीन में Iron Ore के दामों में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई है, जिसके कारण ऑस्ट्रेलिया के पास अब चीन को बातचीत की मेज पर लाने का एक सुनहरा अवसर है। ऐसे में यह कहा जा सकता है कि चीन को सीधी चुनौती देने का मॉरिसन का दांव उनके पक्ष में रहा और अब उनकी राजनीतिक हैसियत न सिर्फ ऑस्ट्रेलिया में बल्कि वैश्विक मंच पर भी बढ़ गई है।

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