चीन 2020 में पूरी दुनिया में अपना प्रभाव जमाना चाहता था, हुआ ठीक उल्टा

 


2020 कहने को एक अच्छा वर्ष बिल्कुल नहीं था। लेकिन जब रात के सबसे अंधेरे भाग के बाद ही सवेरे की किरण दिखाई देती है, ठीक वैसे ही इस वर्ष में भी कई ऐसी चीजें हुई, जिससे इस वर्ष से भी लोगों के लिए कुछ अच्छी यादें अवश्य होंगी। यदि देखा जाए तो 2020 इसलिए भी एक अच्छा वर्ष सिद्ध हो सकता है, क्योंकि जिस महामारी को फैलाकर चीन (China) विश्व विजय का सेहरा अपने सिर बांधना चाहता था, उसी के कारण आज पूरी दुनिया उससे मुंह मोड़ चुकी है।

आज चीन की हालत ऐसी है, कि अमेरिका और यूरोप तो छोड़िए, चीन के कई मित्र देश तक चीन को भाव देने को तैयार नहीं। स्थिति इतनी बुरी हो चुकी है कि चीन (China) को अपने वफादार पाकिस्तान से भी अपना निवेश वापिस खींचना पड़ सकता है। इन सब घटनाओं के पीछे एक प्रमुख कारण – चीन में उत्पन्न वुहान वायरस।

2019 के दिसंबर माह में जब वुहान वायरस फैलने लगा, तो इसकी तरफ एक डॉक्टर ली वेनलियांग ने इशारा भी किया था। लेकिन जिस प्रकार से चीन ने उनके साथ बदसलूकी की, और उनपर आपराधिक कार्रवाई भी की, उससे स्पष्ट पता चलता है कि चीन किस प्रकार से इस महामारी की खबर बाहर फैलने से रोकना चाहता थी। जब दुनिया को इस महामारी की भयावहता के बारे में आभास होने लगा, तो यह चीन (China) ही था जिसने दुनिया से न सिर्फ आवश्यक जानकारी छुपाई, बल्कि डबल्यूएचओ जैसे अंतर्राष्ट्रीय संगठन को भी अपनी उंगलियों पे नचाया।

चीन धूम धाम से कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा चीन (China) विजय के 70 वर्षों को धूमधाम से मनाना चाहता था, जिसके लिए उसने लंबी चौड़ी तैयारी की थी। लेकिन वुहान वायरस ने उलटे उसके सपनों पर ही जबरदस्त पानी फेर दिया।

वुहान वायरस के कारण सबसे पहला असर पड़ा उन देशों पर पड़ा, जो किसी न किसी तरह चीन के BRI परियोजना से जुड़े हुए थे, जैसे ईरान, इटली, जर्मनी, देश। इन देशों में ही वुहान वायरस की भयावहता का असर सबसे स्पष्ट भी दिखाई दिया, और इन्हीं देशों में चीनियों ने भर-भर के निवेश भी किया था। इसके कारण न सिर्फ दूसरे देशों का चीन (China) और उसकी BRI पर से विश्वास उठने लगा, अपितु ईरान, इटली और जर्मनी भी दबी जुबान में ही सही, पर चीन की हेकड़ी की आलोचना भी करने लगे और धीरे-धीरे ये देश चीन से दूरी भी बनाने लगे।

चीन की कर्ज जाल में फँसाने की नीति की इस साल ऐसी पोल खुली कि जो देश इस मायाजाल में फंसे थे, वो भी, और जिन्हें चीन फंसाना चाहता था, वो भी चीन को दुलत्ती देने लगे। अफ्रीकी महाद्वीप ने तो एक सुर में चीन को ठेंगा दिखा दिया, और तो और अब चीन के सबसे करीब माने जाने वाले देश, नेपाल और पाकिस्तान भी चीन (China) से कन्नी काटने लगे हैं। जहां नेपाली प्रशासन को अपनी जनता के दबाव में झुकना पड़ा है, तो वहीं पाकिस्तान के वर्तमान स्वभाव के पीछे कई और कारण है, जिन्हें लिखने के लिए एक पूरा उपन्यास लिखना पड़ेगा।

लेकिन चीन की अकल ठिकाने तो बिल्कुल नहीं आई थी, इसलिए उसने अप्रैल से लेकर जून माह के बीच कई पड़ोसी देशों के क्षेत्रों पर कब्जा जमाने का प्रयास किया, चाहे वह ताइवान हो, जापान का सेंकाकु द्वीप समूह, या फिर भारत का पूर्वी लद्दाख क्षेत्र ही क्यों न हो। लेकिन चीन की गुंडागर्दी से तंग आ चुके इन देशों ने हर मोर्चे पर चीन को मुंहतोड़ जवाब दिया।

जहां ताइवान ने चीन द्वारा वुहान वायरस फैलाने में भूमिका की पोल खोलने का मोर्चा संभाला, तो वहीं रणनीतिक और आर्थिक मोर्चे पर भारत ने चीन की धज्जियां उड़ाईं। जब चीन ने गलवान घाटी में घात लगाकर हमला किया, तो भारत के 20 सैनिक हुतात्मा हुए, लेकिन जवाबी कार्रवाई में जिस प्रकार से भारतीयों ने चीन (China) को उनकी औकात बताई, उसका अंजाम ये हुआ कि आज भी चीन अपने मृतक सैनिकों की वास्तविक संख्या बताने से कतराता है।

इसके अलावा भारत ने जिस प्रकार से एक के बाद एक कई एप्प प्रतिबंधित किए, और अपने देश में स्वदेशी निर्माण को बढ़ावा दिया है, उससे धीरे-धीरे कई देशों को चीन के विरुद्ध कड़े कदम उठाने की प्रेरणा भी मिली। इसके अलावा भारत ने इसी वर्ष ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स’ नीति की धज्जियां उड़ा के रख दी, जिससे चीन (China) की वैश्विक छवि को मिट्टी में मिला देने में कोई कसर नहीं छोड़ी गई। चीन को घेरने के लिए भारत समेत कई बड़े देशों ने ‘क्‍वॉड’ को मजबूत करने पर जोर दिया। अब चीन की हालत धोबी के कुत्ते जैसी हो चुकी है, जो न घर का रहा, और न ही घाट का।

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