18 महीनों के लिए कृषि कानून पर रोक लगाना असली किसानों को प्रभावित करेगा


प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार को लेकर ये कहा जाता है कि वो जनता के हित में जो भी फैसले लेती है उसे किसी भी तरह की राजनीति से प्रभावित होकर नहीं बदलती। पिछले 6 सालों के कार्यकाल में इसके प्रमाण देखने को भी मिले हैं, लेकिन कृषि कानूनों के मुद्दे पर राजनीतिक पार्टियों द्वारा प्रायोजित किसान आंदोलन के दबाव में आकर पहली बार कानूनों को 18 महीने के लिए टालने के फैसले से मोदी सरकार बैकफुट पर दिखने लगी है, जो कि एक बेहद खराब उदाहरण स्थापित करेगा। ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि इस एक कदम के बाद सरकार के प्रत्येक फैसले के खिलाफ ऐसे ही दबाव की राजनीति की संभावनायें बढ़ जायेंगी, साथ ही कानूनों को रद्द करने के कारण जिन किसानों को इसका लाभ हो रहा था, वो अब उस कानून से मिलने वाले लाभ से वंचित रह जाएंगे। और हो सकता है उनके मन में भी सरकार के खिलाफ गुस्सा देखने को मिले।

केन्द्र सरकार ने अपने ही फैसले को पलटते हुए दो महीनों से दिल्ली की सीमाओं पर चल रहे किसानों के अराजक आंदोलन को सार्थक कर दिया है। अब अगले लगभग 18 महीने के लिए संसद द्वारा पारित कृषि कानून ठंडे बस्ते में जा चुका है। सरकार ने इस मामले में एक संयुक्त समिति बनाने की बात कही है, जिसमें किसानों की सभी समस्याओं को सुलझाया जाएगा और इस कृषि कानून को फिर से लागू किया जाएगा। केन्द्र सरकार का ये फैसला अपने आप में अभूत पूर्व है। कुछ वामपंथियों का कहना है कि केन्द्र सरकार किसानों के इस मुद्दे पर बैकफुट पर चली गई है, इसलिए वो भी अब सोशल मीडिया से लेकर हर प्लेटफॉर्म पर खुशी जाहिर कर रहे हैं।

गौर करें तो मोदी सरकार ने अपने कार्यकाल में जितने भी फैसले लिए जिसमें मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति देखने को मिली है, इसके चलते सरकार की तारीफ भी होती है। नोटबंदी से लेकर जीएसटी जैसे आर्थिक फैसले और फिर सीएए और अनुच्छेद 370 जैसे फैसलों ने जनता का ध्यान अपनी तरफ खींचा है। साथ ही इन मुद्दों पर आलोचनाओं के बावजूद मोदी सरकार ने अपने कदम पीछे नहीं खींचे थे। इन फैसलों के कारण मोदी सरकार की छवि एक सशक्त सरकार की बन गई है। ऐसे में कृषि कानूनों को टालने का फैसला बेहद ही अजीबोगरीब है, जिसके चलते मोदी सरकार के समर्थक भी इस कदम की आलोचना करने लगे हैं जो मोदी सरकार की फैसले लेने की छवि पर भी प्रभाव डालेगा। इससे शाहीन बाग गैंग फिर से सक्रिय हो सकती है, कश्मीर में अनुच्छेद 370 को फिर से बहाल करने के लिए साजिश को अंजाम देने की कोशिश हो सकती है जो देश हित के खिलाफ भी है।

TFI अपनी रिपोर्ट्स में बता चुका है कि कृषि के लागू होने पर किसानों को खूब लाभ हुआ है। हिमाचल के सेब के किसानों से लेकर कर्नाटक के धान बोने वाले किसानों ने इस कृषि कानूनों के लागू होने के बाद खूब लाभ कमाया है। देश के अनेकों किसान संगठनों और लगभग-लगभग सभी छोटे-बड़े किसानों ने कृषि बिलों का समर्थन किया था। ऐसे में इन किसानों में सरकार के फैसले के प्रति रोष देखने को मिल सकता है।

इसके इतर कुछ खालिस्तानी समर्थकों और पंजाब हरियाणा के किसानों ने इन कृषि कानूनों का राजनीतिक पार्टियों के भ्रम में आकर विरोध किया और उनकी इसी अराजकता के कारण मोदी सरकार ने कृषि कानूनों को अब 18 महीनों के लिए टाल दिया है। इस एक फैसले ने ये संदेश दिया है कि अराजकता से मोदी सरकार को झुकाया जा सकता है, औऱ अब अन्य मुद्दों पर विपक्ष ऐसे ही अराजकता फैलाने का प्रयास करता है तो किसी को हैरानी नहीं होगी।

हो सकता है कि आगे जाकर अनुच्छेद 370 से लेकर सीएए के मुद्दों पर भी सरकार को झुकाने का प्रयास किया जाये , जो देश के हित के लिए हितकारी नहीं होगा। ऐसे में मोदी सरकार को कृषि कानूनों के मुद्दे पर अपनी नीतियों में बदलाव करने की सख्त आवश्यकता है, अन्यथा आगे जाकर ये फैसला अन्य मुद्दों पर काफी नुकसानदायक साबित हो सकता है।

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