भारत UK के लिए, UK भारत के लिए खड़ा है, दोनों EU को रिजेक्ट कर चुके हैं

 


भारत ने एक रणनीतिक कदम उठाते हुए यूके के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन को गणतंत्र दिवस के मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया है जिसे जॉनसन ने स्वीकार भी कर लिया। पीएम मोदी ने 27 नवंबर को अपने फोन पर बातचीत के दौरान बोरिस जॉनसन को निमंत्रण दिया था। भारत ने यह कदम ऐसे समय पर लिया है जब ब्रेक्जिट बेहद पास है और EU तथा यूके के बीच विवाद बढ़ता ही जा रहा है। इसका अर्थ यह हुआ कि भारत EU और UK में से किसे प्रथिमिकता देगा यह अभी से ही स्पष्ट हो रहा है। ऐसा लगता है कि भारत अब UK के लिए और UK भारत के लिए खड़ा है और EU को दोनों रिजेक्ट कर चुके हैं।

दरअसल, भारत के विशाल व्यापार बाजार को देखते हुए, EU और UK दोनों भविष्य में अपने रिश्तों को सुधारना चाहते हैं लेकिन भारत ने EU की चीन के साथ बढ़ती नज़दीकियों के कारण अब UK को प्रथिमिकता देने का संदेश दिया है।

ब्रेक्जिट होना तय है इसमें कोई दो राय नहीं है लेकिन यह हार्ड ब्रेक्जिट होगा या सॉफ्ट ब्रेक्जिट होगा यह अभी तय नहीं है। परंतु जैसा विवाद EU और ब्रिटेन के बीच चल रहा है उससे सॉफ्ट ब्रेक्जिट होना मुश्किल लगता है। ब्रिटेन और यूरोपीय संघ ने कहा है कि ब्रेक्जिट के बाद के ट्रेड डील पर गंभीर मतभेद बने हुए हैं। ब्रिटेन के वार्ताकार लॉर्ड डेविड फ्रॉस्ट ने कहा कि प्रगति के बावजूद कुछ क्षेत्रों में “व्यापक मतभेद” बने हुए हैं। यही नहीं जल क्षेत्र के बंटवारे पर भी इन दोनों का मतभेद है और यह मुद्दा बना हुआ है कि अगले वर्ष कितनी यूरोपिय नौका ब्रिटिश जल क्षेत्र में मछ्ली पकड़ने जा सकेंगी। साथ ही भविष्यों के मतभेदों पर निपटारे के एक तंत्र की आवश्यकता पर भी मामला अटका हुआ है।

हार्ड ब्रेक्जिट का अर्थ हुआ कि ऐसा ब्रेक्जिट जिसमें UK EU की single मार्केट की सदस्यता छोड़ देगा और अपने कानून बनाएगा और immigration पर पूर्ण नियंत्रण प्राप्त कर लेगा। “हार्ड ब्रेक्जिट” होने की स्थिति में UK की करेंसी पाउंड अपने निम्न स्तर पर चली जाएगी और UK को अपने एक्सपोर्ट खपाने के लिए एक मार्केट की आवश्यकता होगी। वर्तमान में ब्रिटेन 44 प्रतिशत से अधिक का एक्सपोर्ट EU के ही देशों में करता है। Brexit के बाद U.K को व्यापारिक साझेदारों की आवश्यकता होगी। यही नहीं EU के Single Market को छोड़ने से लंदन अन्य बाजारों, विशेष रूप से राष्ट्रमंडल देशों में विस्तार करने के लिए मजबूर हो जायेगा। ऐसे में उसके लिए भारत सबसे प्रमुख विकल्प है।

यही हाल EU का भी होगा, UK के अलग होने की स्थिति में उसकी भरपाई के लिए एक ऐसे देश की आवश्यकता होगी जो उसकी भूमिका में फिट हो सके। इन दोनों ही कारणों से EU और UK के लिए भारत सबसे अच्छा विकल्प दिखाई दे रहा है।

परंतु भारत EU के साथ सम्बन्धों को नई ऊंचाई देने में किसी प्रकार से रुचि नहीं दिखा रहा है। हाल में हुए 15वें  India-European Union Summit के दौरान भी किसी प्रकार के Free Trade Deal की बात नहीं हुई। एक Free Trade Deal तो भारत और यूरोपीय संघ के बीच 2007 से लंबित है। इस बार के वर्चुअल शिखर सम्मेलन के बाद भी इस मुक्त व्यापार समझौते के लिए कोई आधिकारिक समय सीमा घोषित नहीं की गई थी। स्पष्ट है भारत EU के साथ व्यापार सीमित ही रखना चाहता है। इसके भी तीन कारण हैं। पहला EU का चीन के साथ गहरा व्यापार संबंध। दूसरा EU के de facto लीडर एंजेला मार्केल का लगातार चीन को समर्थन देना और तीसरा 17+1 के माध्यम से EU में चीन का बढ़ता प्रभाव। चीन ने 17+1 के जरीये अपने BRI को पूरे यूरोप में फैला दिया है जिसका भारत समर्थन नहीं करता।

कुल मिला कर देखा जाए तो एक तरफ EU के साथ व्यापार सम्बन्धों को और अधिक बढ़ाने में रुचि न दिखाना और दूसरी तरफ UK के साथ सम्बन्धों को लगातार बढ़ाने के साथ साथ वहाँ के प्रधानमंत्री को अपने राष्ट्रीय अतिथि के रूप में बुलाना दिखाता है कि भारत और UK दोनों ही देश EU को नकार आपसी सहयोग को बढ़ाना चाहते हैं।

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