पश्चिम बंगाल की राजनीति में विधानसभा चुनाव के पहले हुई उथल-पुथल के बीच मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के दाहिने हाथ कहे जाने वाले शुभेंदु अधिकारी का बीजेपी में शामिल होना ममता के लिए एक बड़ा झटका है। ममता ने शुभेंदु की ऐसी अनदेखी की; कि एक जमीनी नेता को नाराज़गी के कारण पार्टी छोड़ने पर मजबूर हो गया। असल में ये ममता बनर्जी के लिए उसी भूल की तरह साबित होगा जैसे कांग्रेस के लिए हिमंता बिस्वा सरमा का बीजेपी में जाना। बीजेपी के लिए जैसे हिमंता ने असम में माहौल बनाया वैसा ही माहौल शुभेंदु ने भी बनाना शुरू कर दिया है और ये ममता के लिए एक उनकी राजनीतिक जीवन की सबसे बड़ी गलती साबित होने वाला है।
हम सभी को याद है कि किस तरह से कांग्रेस नेता हिमंता बिस्वा सरमा से मिलने के बजाए शीर्षस्थ नेता राहुल गांधी ने अपने कुत्ते पिड्डी को ज्यादा तवज्जो दी थी। नतीजा ये हुआ कि कांग्रेस पार्टी से हिमंता बिस्वा सरमा ने किनारा कर लिया और आज वो असम की राजनीति में बीजेपी के लिए ट्रंप कार्ड साबित हो चुके हैं। कुछ ऐसा ही हाल बंगाल की राजनीति में शुभेंदु अधिकारी का भी है जिन्होंने एक वक्त सोचा था कि वो ममता बनर्जी के बाद पार्टी में नंबर दो की हैसियत रखते हैं, जिसके वो काबिल भी थे। जब उन्हें एहसास हुआ कि वो पार्टी के लिए चाहे जितना भी कर लें, पार्टी में नंबर दो की हैसियत तो ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी की ही होगी तो टीएमसी से शुभेंदु का मोह-भंग हो गया।
इस मोह के भंग होते ही उन्होंने बीजेपी का दामन थाम लिया है। इसको लेकर विश्लेषक मान रहे हैं कि शुभेंदु अधिकारी ममता बनर्जी के लिए हिमंता बिस्वा सरमा जैसे साबित होंगे। हिमंता बिस्वा सरमा का कद असम की राजनीति में हमेशा ही ऊंचा रहा है। उन्होंने कांग्रेस के लिए असम में बूथ स्तर तक पर काम किया और मजबूत जमीन तैयार की इसके बावजूद जब खट-पट की स्थिति आई तो पार्टी के शीर्ष नेता राहुल गांधी ने उन्हें तवज्जो नहीं दी। नतीजा ये कि हिमंता ने आत्मसम्मान के लिए कांग्रेस छोड़ बीजेपी का दामन थाम लिया।
बीजेपी पूरे पूर्वोत्तर भारत में अपनी पकड़ को मजबूत करना चाहती थी, और अब उसे हिमंता बिस्वा सरमा जैसा विश्वसनीय चेहरा मिल गया था। उन्होंने बीजेपी के लिए काम किया और पहली बार असम में बीजेपी की सरकार बनी, जिसमें हिमंता की भूमिका सर्वोपरि थी। लव जिहाद से लेकर मदरसों के सरकारी अनुदान को खत्म करने जैसे बीजेपी के कठिन एजेंडों को अमली जामा पहनाने और एनआरसी-सीएए जैसे मुद्दों पर राज्य में सकारात्मकता लाने में हिमंता ने अहम रोल निभाया और बीजेपी के लिए राज्य में स्थितियां मजबूत होती चला गईं और अब बीजेपी यहां दोबारा सत्ता में वापसी की तैयारी कर रही है और यहां तक कहा जा रहा है कि बीजेपी को अब सर्वानंद सोनवाल की जगह हिमंता को ही अपना सीएम बनाना चाहिए।
अब इससे इतर बंगाल के शुभेंदु अधिकारी की स्थिति भी ऐसी ही है। ममता बनर्जी के लिए सबसे अहम शुभेंदु ने सिंगूर के आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के साथ ही मिदनापुर मालदा, मुर्शिदाबाद समेत पूरे जंगलमहल को अपनी देख-रेख में टीएमसी का गढ़ बना दिया है। 2006 में टीएमसी का जो वोट बैंक इस इलाके में 26-27 प्रतिशत का था, वो 2016 के चुनावों में 47-48 प्रतिशत तक पहुंच गया है। शुभेंदु ममता के हर आंदोलन और रैली में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे। उन्हें पार्टी के हर एक नेता और ममता के बीच एक कड़ी के रूप में देखा जाता था। बंगाल की लगभग 1 तिहाई सीटो पर शुभेंदु की मजबूत पकड़ है।
ऐसे में पार्टी के लिए इतना सबकुछ करने के बावजूद जब शुभेंदु को टीएमसी में कोई भविष्य नहीं दिखा तो उन्होंने पार्टी से पल्ला झाड़ते हुए बीजेपी का रूख कर दिया। बीजेपी के लिए शुभेंदु का जुड़ना ऐसा है, जैसे उससे एक बड़ा जनाधार जुड़ गया है। इसके दम पर बीजेपी ममता बनर्जी के शासन को अब अधिक आसानी से चुनौती दे सकती है। जिस तरह से बीजेपी हिंदुत्व के एजेंडे पर चलती है वैसे ही शुभेंदु ने बीजेपी में आने के बाद अपने पहले ही संबोधन में “मां माटी मानुष” के अलावा “जय जय श्रीराम” के नारे लगाए जबकि ममता इस नारे से सबसे ज्यादा चिढ़ती हैं। यह दिखाता है कि शुभेंदु अब बीजेपी का हिंदुत्व एजेंडा बंगाल में चलाकर उसकी जीत सुनिश्चित करेंगे। यह ठीक वैसा ही होगा जैसे असम में हिमंता बिस्वा सरमा लगातार कर रहे हैं।
बीजेपी ने जैसे हिमंता बिस्वा सरमा को बीजेपी में लाकर सम्मान दिया, और असम में अपनी राजनीतिक जमीन मजबूत की; कुछ ऐसा ही दांव बंगाल में भी बीजेपी शुभेंदु अधिकारी के साथ चल चुकी है। शुभेंदु को ममता बनर्जी शुरू में हल्के में लेती रहीं और यही ममता बनर्जी के लिए उनके राजनीतिक जीवन की सबसे बड़ी भूल साबित होगी।
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