TMC अपने बागी नेताओं को कभी मनाती नहीं है, पर BJP के कारण अधिकारी का मान-मनौअल कर रही है

 


ममता बनर्जी एक ऐसी नेता हैं जो पार्टी के बागी नेताओं के पार्टी छोड़ने पर उन्हें दुत्कार देती हैं। वो कभी किसी नेता को मनाने पर विश्वास नहीं रखती हैं, लेकिन परिस्थितियों ने ऐसा 360 डिग्री का मोड़ लिया है कि ममता और उनकी पार्टी के कई नेता शुभेंदु अधिकारी को पार्टी में बनाए रखने के लिए मान-मनौव्वल करने पर उतर आए हैं। प्रशांत किशोर से लेकर सौगत रॉय और लोकसभा सांसद अभिषेक बनर्जी सब शुभेंदु के आगे पीछे घूम रहे हैं क्योंकि शुभेंदु का पश्चिम बंगाल के मिदनापुर और उसके आसपास के क्षेत्र में राजनीतिक वर्चस्व है और उनके बागी होने पर ममता की सीएम की कुर्सी का एक पाया कमजोर हो जाएगा, जिसका सीधा फायदा बीजेपी को मिलेगा।

काम करना असंभव

ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी से नाराज चल रहे शुभेंदु अधिकारी को मनाने के लिए टीएमसी ने सारे घोड़े खोल दिए हैं लेकिन शुभेंदु ने सौगत रॉय से टेक्स्ट मैसेज में साफ बोल दिया, अब साथ में काम करना असंभव है।” इससे ठीक एक दिन पहले ही ममता बनर्जी के भतीजे और लोकसभा सांसद अभिषेक बनर्जी, टीएमसी के चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर समेत सांसद सुदीप बंदोपाध्याय, उन्हें मनाने के लिए बैठक कर चुके थे। उत्तरी कोलकाता के एक इलाके में हुई इस मुलाकात में शुभेंदु को मनाने के लिए ममता ने भी उनसे फोन पर बात की और कहा, सब कुछ सुलझा लिया जाएगासाथ मिलकर काम करें।”

इस बैठक के बाद सौगत रॉय ने बताया, बैठक सौहार्दपूर्ण वातावरण में हुई। सभी समस्याओं को सुलझा लिया गया है। मुद्दों को सुलझाने के लिए आमने-सामने बातचीत किए जाने की आवश्यकता थी इसलिए ऐसा किया गया। शुभेंदु को इस बात पर भी आपत्ति थी कि बैठक की बातें बाहर कैसे आईं। इसके बाद ही उन्होंने मैसेज करके सौगत रॉय को कह दिया कि अब साथ में काम करना असंभव है जो कि ममता बनर्जी के लिए एक बड़ा झटका साबित होगा।

ममता का बदला रुख

ममता बनर्जी और उनकी पार्टी इसलिए भी जानी जाती है कि वो अपने बागी नेताओं को कभी मनाती नहीं है। पिछले दो सालों में पार्टी के कई बड़े नेता ममता की आलोचना करते हुए पार्टी छोड़ चुके हैं लेकिन ममता का मन कभी नहीं पसीजा। सभी को ममता ने धोखेबाज बताते हुए दुत्कार दिया। सबसे बड़ा उदाहरण तो मुकुल रॉय ही हैं, जो एक वक्त पार्टी के शीर्ष 5 नेताओं में शामिल थे। मुकुल रॉय के पार्टी छोड़ कर बीजेपी में जाने पर ममता ने उन्हें भी नजरंदाज करते हुए, हमला जारी रखा। उन्होंने कभी पार्टी नेताओं के साथ मान-मनौव्वल नहीं की, लेकिन अब ममता को शुभेंदु के साथ ये मजबूरी में करना पड़ रहा है।

शुभेंदु का दबदबा

पश्चिम बंगाल के नंदीग्राम से टीएमसी विधायक शुभेंदु अधिकारी का मिदनापुर और इसके आस-पास के 6 जिलों की 65-70 विधानसभा सीटों में दबदबा है। जैसा कि हमने बताया शुभेंदु के दम पर टीएमसी का वोट प्रतिशत यहां 2006 के 27 प्रतिशत से बढ़कर 2016 में 48 प्रतिशत तक पहुंच गया था। शुभेंदु ने हाल ही में हुबली कमीशन चेयरमैन पद से इस्तीफा दिया था, जिसके बाद से टीएमसी में अंदरखाने हड़कंप मच गया हैं। शुभेंदु के इस राजनीतिक कद के आगे ममता का घमंड अब डोल गया है और वो खुद शुभेंदु से बातचीत कर मामले को सुलझाने की बात कर रही हैं।

शुभेंदु की असल नाराज़गी ममता बनर्जी से नहीं, बल्कि ममता बनर्जी के भतीजे और लोकसभा सांसद अभिषेक बनर्जी समेत टीएमसी के चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर से है। ये लगातार पार्टी में जरूरत से ज्यादा दखल देने के साथ ही फैसलों को प्रभावित कर रहे हैं जिससे टीएमसी की छवि बिगड़ गई है और पार्टी के ज़मीनी कार्यकर्ताओं के बीच असंतोष व्याप्त हो रहा है और इसीलिए इन दोनों का टीएमसी के पतन में बड़ा योगदान है जो कि शुभेंदु की नाराज़गी में दिख भी रहा है।

ममता बनर्जी शुभेंदु अधिकारी को इसलिए भी मना रहीं हैं क्योंकि शुभेंदु ने भारतीय जनता पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और गृहमंत्री अमित शाह के बंगाल दौरे के ठीक एक दिन बाद ही पार्टी के खिलाफ बगावत करनी शुरू की थी। वो लगातार राष्ट्रवाद की बात कर रहे थे। 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी पहले ही बंगाल में अच्छा प्रदर्शन कर चुकी है और अब विधानसभा जीतने के लिए वह युद्ध स्तर पर तैयारी कर रही है। ऐसे में शुभेंदु का बगावती होना ममता के लिए मुसीबत का सबब है क्योंकि उनकी बातों और संबोधनों में जिन चीजों का जिक्र होता है वह बीजेपी से ही मिलता-जुलता है।

ममता बनर्जी के सबसे विश्वसनीयता नेता शुभेंदु अधिकारी को बीजेपी रास आने लगी है और इसीलिए ममता शुभेंदु को बीजेपी में जाने से रोकने के लिए अब अपने सारे हथकंडे अपना रही हैं क्योंकि शुभेंदु का जाना, ममता के लिए खतरनाक साबित होगा। वहीं बीजेपी के लिए बंगाल विधानसभा चुनाव चुनौतियों के लिहाज से अधिक आसान हो जाएगा।

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