ईरान, तुर्की, क़तर और पाक का गठबंधन बनने से पहले ही India, Saudi और US ने उसे ध्वस्त करना शुरू कर दिया है


 पश्चिमी एशिया में बीते कुछ महीनों में एक नए गठबंधन के उभरकर आने की बातें की जा रही थीं। इस नए गठबंधन में पाकिस्तान, तुर्की, ईरान जैसे देश शामिल थे। यहाँ तक कि क़तर को भी इसी गठबंधन के समर्थक के रूप में देखा जा रहा था। इन सब देशों में एक बड़ी समानता यह थी कि इन सब के अरब देशों के साथ संबंध बेहद तनावपूर्ण रहे हैं। ईरान और सऊदी अरब के बीच तो कई बार युद्ध जैसे हालात पैदा हो चुके हैं। इन सब देशों में एक और समानता यह भी है कि इनका अरब देशों के नेतृत्व वाले Organization of Islamic Cooperation यानि OIC पर से विश्वास अब उठ चुका है। इसीलिए ये सब देश मिलकर अपना अलग इस्लामिक ब्लॉक बनाने की कोशिशों में जुटे थे। हालांकि, अब लगता है कि अमेरिका और उसके साथियों ने मिलकर चुन-चुन कर इस गठबंधन के टुकड़े करना शुरू कर दिया है, एक ऐसा गठबंधन जो अभी सही से स्थापित भी नहीं हो पाया था।

उदाहरण के लिए पश्चिमी एशिया से आ रही सबसे बड़ी खबर को ही ले लीजिये! मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक क़तर और सऊदी अरब के बीच में जल्द ही एक ऐसा समझौता हो सकता है जिसके बाद क़तर पर थोपा गया तीन साल पुराना Economic और Diplomatic blockade अब समाप्त हो सकता है। वर्ष 2017 में अरब देशों ने क़तर पर ईरान के साथ दोस्ती करने और आतंकवाद में लिप्त होने के आरोप लगाकर क़तर के सभी trading और aerial रूट्स को बंद कर दिया था। अमेरिकी राष्ट्रपति के सलाहकार Jared Kushner हाल ही में रियाध और दोहा के दौरे पर थे, और उसी के बाद यह समझौता सामने आने का अनुमान हैं। अगर क़तर और अरब देशों के साथ संबंध सामान्य हो जाते हैं, तो यह बेशक तुर्की और ईरान जैसे देशों के लिए एक बड़ा कूटनीतिक झटका होगा।

इसी प्रकार ईरान पर भी अमेरिका और इज़रायल जैसे देशों का खासा ध्यान केंदित है। ईरान के टॉप न्यूक्लियर वैज्ञानिक का मारा जाना हो, या फिर भारत द्वारा ईरान की बजाय अरब देशों को अपना कूटनीतिक समर्थन ज़ाहिर करना हो, अमेरिका और उसके साथी ईरान की बाजू मरोड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। भारत शुरू से ही ईरान और अरब देशों के बीच में एक संतुलन बनाए रखने की कोशिश करता रहा है, लेकिन जिस प्रकार अरब देशों के साथ बढ़ती नज़दीकियों के बीच भारत ने अब तक ईरान के वैज्ञानिक मारे जाने पर एक बयान तक जारी नहीं किया है, उससे भारत ने संकेत दे दिये हैं कि वह ईरान से अपना कूटनीतिक समर्थन वापस ले सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि पिछले कुछ समय में ईरान, चीन और तुर्की जैसे भारत-विरोधियों के साथ नज़दीकियाँ बढ़ा रहा है। इस प्रकार ईरान पर कूटनीतिक दबाव बनाकर भारत तुर्की और पाकिस्तान के लिए क्षेत्र में चुनौती खड़ी करने की कोशिश कर रहा है।

इस गठबंधन के एक और सदस्य तुर्की के खिलाफ तो फ्रांस और खुद अरब देशों ने ही मोर्चा खोला हुआ है। फ्रांस लीबिया, सीरिया के साथ-साथ Nagorno-Karabakh में तुर्की का सरदर्द बना हुआ है और अरब देश पहले ही तुर्की पर आर्थिक प्रतिबंध लगा चुके हैं। तुर्की की आर्थिक हालत बेहद खस्ता हो चुकी है और जल्द ही इसका प्रभाव तुर्की की सुरक्षा और विदेश नीति पर दिखना शुरू भी हो जाएगा। ऐसे में बढ़ती घरेलू परेशानियों के बीच तुर्की के लिए इस गठबंधन में एक सक्रिय भूमिका निभाना इतना आसान तो नहीं रहने वाला!

अंतिम में पाकिस्तान पर आज अरब देशों का आर्थिक दबाव इतना ज़्यादा है कि वह खुद ही इस तथाकथित गठबंधन की धज्जियां उड़ाकर कुछ दिनों में इज़रायल को आधिकारिक तौर पर मान्यता प्रदान कर सकता है। पाकिस्तान को प्रभावित करना अरब देशों के लिए कोई मुश्किल काम नहीं है और इसे इस गठबंधन की सबसे कमज़ोर कड़ी कहा जा सकता है। ऐसे में पाकिस्तान की विदेश नीति को प्रभावित कर अरब देश भी इस गठबंधन के टुकड़े-टुकड़े करने में अपनी सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं।

कुल मिलाकर तुर्की, पाकिस्तान, ईरान और क़तर जैसे देशों को “Carrot and Stick” नीति के तहत एक दूसरे से अलग-थलग करने की योजना पर काम ज़ोर-शोर से चल रहा है। यह तथाकथित गठबंधन इससे पहले एक शक्ल ले पाता, इसपर अभी से अमेरिका और उसके साथी बुलडोज़र चलाना शुरू कर चुके हैं।

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