आखिर क्यों चीन EU के साथ विपरीत परिस्थितियों और अधिनियमों के बाद भी डील करना चाहता है

 


चीन और यूरोपियन यूनियन के बीच 2014 से लटकी इनवेस्टमेंट डील अगले सप्ताह होने की उम्मीद लगाई जा रही है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार इस डील के बाद EU की कंपनियों को चीन के मार्केट में अधिक छूट मिल जाएगी। हालांकि, चीन पहले इस डील के विरोध में था लेकिन आखिर ऐसा क्या हुआ जिससे चीन के रुख में परिवर्तन आया और अब चीनी व्यवहार के विपरीत इस डील के लिए सहमत हुआ है?

दरअसल, यूरोपीय संघ से कोई रियायत नहीं मिलने के बावजूद चीन इस समझौते पर जोर दे रहा है। इससे यही स्पष्ट होता है कि यह सौदा चीन के लिए कितना महत्वपूर्ण है। वह अपने बाजार में पहले से ही अधिक रियायतें देने और यहां तक ​​कि मानवाधिकारों पर यूरोपीय मांगों को मानने को तैयार दिखाई दे रहा है।

इस हफ्ते, EU के अधिकारियों ने कहा कि चीन और यूरोपीय संघ की कंपनियों को चीनी बाजार में अधिक पहुंच प्रदान करने, प्रतिस्पर्धा पर स्थिति को मजबूत करने और चीन में यूरोपीय संघ के निवेश की रक्षा करने के लिए एक समझौते का समापन करेंगे।

यह इनवेस्टमेंट डील पर वार्ता वर्ष 2014 में शुरू हुई थी, लेकिन अब तक अधर में लटकी हुई थी। यूरोपीय संघ के अनुसार इस देरी का कारण कुछ और नहीं बल्कि चीन के यूरोपियन कंपनियों को अपने बाजार में रियायत देने के लिए राज़ी न होना है। अधिकारियों ने Reuters को बताया कि, “वार्ता समाप्त होने वाली है। यह अच्छा लग रहा है। केवल कुछ मामूली विवरण ही बचे हैं, जिनका हल निकालने की जरूरत है।”

अधिकारी ने बताया कि यूरोपीय संघ और चीन के बीच राजनीतिक समझौते को बुधवार को फाइनल कर दिया जाएगा। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता Wang Wenbin ने मंगलवार को बताया कि वार्ता काफी सफल रही थी। उन्होंने प्रेस को यह भी बताया कि चीन समझौते पर समय से पहले ही हस्ताक्षर करेगा।

इस इनवेस्टमेंट डील के बाद चीन में स्थापित यूरोपीय संघ की कंपनियों द्वारा प्रौद्योगिकी के अनिवार्य हस्तांतरण को भी रोक देगा। इससे चीनी बाजार में प्रतिस्पर्धा को बनाने के लिए चीनी सरकार के स्वामित्व वाले उद्यमों को अनुशासित करने के लिए कदम और जवाबदेही के लिए नियम भी शामिल हैं।

सौदे के तहत, चीन अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के मजबूर श्रम कानूनों के अनुपालन के लिए भी प्रतिबद्ध होगा।

ऐसा लगता है कि चीन मजबूरी में आकर इस समझौते के लिए राज़ी हुआ है। यूरोपीय संघ अपने लक्ष्यों को पाने के लिए चीन को झुका रहा है और चीन झुकता भी जा रहा है।

इससे पता चलता है कि यह सौदा चीन के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। अस्थिर अर्थव्यवस्था और BRI के डूबने के कगार पर आने के बाद अब चीन को डर लगने लगा है। यही कारण है कि चीन अपनी अर्थव्यवस्था को पुन: व्यवस्थित करने के लिए EU की शर्तों को मनाने के लिए राज़ी हुआ है। इसके अलावा, पिछले महीने में, शी जिनपिंग ने खुले तौर पर अपनी CPTPP में शामिल होने की मंशा प्रकट की थी जिसे पहले Trans-Pacific Partnership के रूप में जाना जाता था लेकिन उसे वहाँ भी चांस मिलने की संभावना कम है।

बता दें कि चीन पहले TPP का विरोध कर रहा था और फ्री मार्केट तथा मानवाधिकारों के संबंध में जो मानक तय किए गए थे, उसकी आलोचना करते हुए, उसे अमेरिका की चीन के विकास को रोकने की एक चाल के रूप में प्रचारित कर रहा था। परंतु अब चीन ने अचानक से यू-टर्न लिया है और RCEP जैसे महत्वपूर्ण डील का सदस्य होने के बावजूद वो TPP में शामिल होना चाहता है।

RCEP में शामिल नहीं होने के भारत के फैसले ने इस डील के प्रभाव को काफी हद तक कम कर दिया था लेकिन CPTPP में बाइडन के रुख को देख कर लग रहा है कि वे ट्रांस-पैसिफिक डील में शामिल होना चाहते हैं। अब चीन इसी का फायदा उठाते हुए अमेरिका से पहले इस डील का हिस्सा बनना चाहता है। यही नहीं बाइडन का चीन के प्रति नरम रुख देखते हुए ऐसा होने की पूरी संभावना भी है।

हालांकि, जापान ने इस डील में एक छोर को मजबूती के साथ थाम रखा है और पहले ही कह चुका है कि इस डील में शामिल होने के लिए आवश्यक मानकों के संदर्भ में किसी भी देश को रियायत नहीं दी जा सकती है। यह चीन के संदर्भ में ही है जो उसके CPTPP में शामिल होने के सपनों पर पानी फेर देगा।

RCEP पहले से ही कमजोर हो चुका है और अब TPP भी चीन के पहुंच से बाहर दिखाई दे रहा है। यही कारण है कि चीन को यूरोपीय संघ के साथ इस इनवेस्टमेंट डील की सख्त जरूरत है। एक बार कोरोना महामारी के समाप्त होने के बाद अर्थव्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए चीन को एक मजबूत ट्रेडिंग पार्टनर की आवश्यकता होगी और वह EU को इसके लिए राज़ी करना चाहता है। चीन को अपने मुक्त व्यापार बाजार में और अधिक विस्तार तथा विविधता लाने की जरूरत है। ऐसा करने के लिए उसे खुद को अन्य देशों के लिए अधिक खोलना होगा यही कारण है कि चीन EU की शर्तों के लिए तैयार हो गया।

यही नहीं EU के साथ समझौते के अलावा चीन जापान और दक्षिण कोरिया के साथ एक त्रिपक्षीय समझौते के लिए भी जोर दे रहा है।

चीन की आर्थिक चिंताओं को उसकी कूटनीतिक विफलताओं ने जटिल किया है। दुनिया भर के देश चीन की Debt Trap और Wolf Warrior नीतियों से दूर भाग रहे हैं। ऐसे में चीन को इन देशों को अधिक रियायतें देने की आवश्यकता है। कोरोना काल ने चीन को एक अवसर के बजाय एक खतरे और आक्रामक प्रतिद्वंद्वी के रूप में बदल दिया है और अब यूरोपीय संघ ने इसी का पूरा फायदा उठाते हुए चीन के अभेद्य बाजार में प्रवेश करने की शर्तों को मनवाया है।

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