महाराष्ट्र की राजनीति में कांग्रेस के लिए मुसीबतें बढ़ रही हैं। शिवसेना लगातार महाराष्ट्र की महाविकास अघाड़ी सरकार के सहयोगी दल कांग्रेस को अलग-अलग मुद्दों पर लताड़ रही है। शिवसेना का मुखपत्र सामना एक तरफ एनसीपी प्रमुख शरद पवार का प्रवक्ता बना बैठा है तो दूसरी ओर शिवसेना कांग्रेस पर दबाव बना रही है कि कांग्रेस अब यूपीए अध्यक्ष की कुर्सी सोनिया गांधी के बाद शरद पवार को ही दे। देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी के लिए दिन-ब-दिन महाराष्ट्र के गठबंधन में अहसहजता बढ़ रही है। ऐसे में कुछ ऐसी परिस्थितियां बन रही हैं जिससे लगने लगा है कि बीएमसी चुनाव के पहले ही महाराष्ट्र की उद्धव सरकार से कांग्रेस अपना समर्थन वापस ले सकती है जो शिवसेना के लिए झटके की तरह ही होगा।
कांग्रेस के लिए ये स्थितियां तब ही से बिगड़ना शुरू हो गई थीं जब पहली बार गठबंधन में होने के बावजूद कांग्रेस और उसके नेता राहुल गांधी के राजनीतिक भविष्य पर सामना में सवाल खड़े किए गए थे। इसके बाद से लगातार शिवसेना नेता संजय राउत अपने सामना के प्रत्येक लेख में शरद पवार को यूपीए का अध्यक्ष बनाए जाने की वकालत कर रहे हैं जिससे कांग्रेस के लिए स्थितियां असहज हो गईं हैं। हाल ही उन्होंने कहा था, “राजनीति में कुछ भी संभव है। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष शरद पवार में देश का नेतृत्व करने के सारे गुण हैं। पवार के पास बहुत अनुभव है और उन्हें देश के मुद्दों का ज्ञान है तथा वह जनता की नब्ज जानते हैं और वैसे भी कांग्रेस अब कमजोर पड़ चुकी है। अब पूरे विपक्ष को एकजुट होकर मजबूत होना होगा।”
ऐसा लगता है कि शरद पवार अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए शिवसेना के मुखपत्र के जरिये कांग्रेस पर जोरदार हमले करवा रहे हैं, जो कि कांग्रेस को चुभ रहे हैं। शरद पवार कांग्रेस को कमजोर करने का मौका नहीं छोड़ना चाहते हैं। वो ये चाहते हैं कि गठबंधन में बीएमसी का चुनाव लड़ा जाए लेकिन कांग्रेस को बीएमसी चुनावों में भी गठबंधन की सबसे कमजोर पार्टी करार देते हुए ज्यादा सीटें न मिलें जबकि बीएमसी के इलेक्शन में कांग्रेस का एक बड़ा जनाधार है। वहीं यूपीए अध्यक्ष को लेकर कांग्रेस पर पहले ही शिवसेना और एनसीपी दबाव बना रही हैं। ये कांग्रेस के लिए बड़ी समस्या बनती जा रही है। हाल ही जब सामना में संजय राउत ने शरद पवार का इंटरव्यू लिया था और उसके बाद फिर उन्हें यूपीए अध्यक्ष बनाने का लेख प्रकाशित हुआ तो कांग्रेस की खीझ सामने आ गई।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अशोक चव्हाण ने रविवार को शिवसेना को आड़े हाथों लेते हुए कहा, “शिवसेना को अभी संप्रग (UPA) का हिस्सा बनना बाकी है। महाराष्ट्र में सेना के साथ हमारा गठबंधन न्यूनतम साझा कार्यक्रम पर आधारित है और महाराष्ट्र तक सीमित है।” शरद पवार के लिए बैटिंग कर रही शिवसेना को लेकर उन्होंने कहा, “शरद पवार ने स्वयं उन अटकलों को खारिज किया है कि वह संप्रग (UPA) के अगले अध्यक्ष होंगे। संप्रग के सहयोगी दलों को सोनिया गांधी के नेतृत्व में पूरा भरोसा है। ऐसे में इस विषय पर चर्चा करने की कोई आवश्यकता नहीं है।” इसे पहले भी जब कांग्रेस की प्रासंगिकता पर सवाल खड़े हुए थे तो कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी ने भी अपने पत्र के जरिए आपत्ति जाहिर करते हुए खुद को गठबंधन की एक मजबूत पार्टी बताया था।
हाल ही में राहुल गांधी की विदेश यात्रा और विपक्ष को एकजुट करने में नाकाम रहने को लेकर भी सामना ने कांग्रेस को लताड़ा है, जो कांग्रेस को फिर चुभ गया। कांग्रेस के साथ शिवसेना दबाव की राजनीति कर रही है। इसमें कोई शक नहीं है कि कांग्रेस महाराष्ट्र सरकार का सबसे छोटा और कमजोर घटक दल है। इसलिए शिवसेना हर पल कांग्रेस को ये एहसास कराते हुए दबाव बना रही है उसी का हिस्सा बीएमसी चुनावों का लेकर बनाया गया प्लान भी है जिसके चलते अब विश्लेषक ये कहने लगे हैं कि स्थितियां असहज होती देख कांग्रेस बीएमसी चुनावों के पहले ही महाराष्ट्र की आघाड़ी सरकार से अपना समर्थन वापस ले सकती है, क्योंकि इस गठबंधन में कमजोर होने के कारण शिवसेना और एनसीपी कांग्रेस को अलग-थलग करने पर तुले हैं।
ऐसे में इस गठबंधन की टूट के साथ ही विपक्षी एकता की नौटंकी करने वाले पूरे विपक्ष को एक करारा झटका लगेगा। दूसरी ओर सत्ता लोलुपता में शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे कांग्रेस से बड़ा धोखा खाएंगे और अकेले पड़ जाएंगे। वहीं, कांग्रेस-एनसीपी की रार भी खुलकर सामने आएगी जिसका सीधा फायदा बीजेपी को होगा।
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