जानिए, कैसे भारतीय किसान यूनियन किसानों के ज्यादा कांग्रेस के लिए काम करती है

 


राजधानी दिल्ली की सीमाओं पर बैठे पंजाब-हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान करीब 40 से ज्यादा किसान संगठनों के बैनर तले आंदोलन पर बैठे हैं। इनमें कांग्रेस, आम आदमी पार्टी समेत सभी विपक्षी दलों के समर्थित किसान संगठन भी शामिल हैं, लेकिन एक नाम भारतीय किसान यूनियन का भी है जो खुद को किसी भी राजनीतिक पार्टी का समर्थक या विरोधी नहीं मानता है।  पर दावों से इतर उसकी असलियत भी दोगलेपन वाली है, जो कि आश्चर्यजनक नहीं है क्योंकि ये यूनियन भी राजनीति से प्रेरित होकर केंद्र सरकार के साथ विवादों को बढ़ा रहा है,जिसके चलते दिल्ली के लोगों और किसानों को मुसीबतों में दिन-ब-दिन इजाफा हो रहा है।

किसानों के आंदोलन में 40 से ज्यादा किसान संगठन शामिल हैं जिसमें एक नाम भारतीय किसान यूनियन का भी है जो खुद को राजनीतिक रूप से तटस्थ बताता है। इसके अध्यक्ष राकेश टिकैत का यही मानना रहता है कि किसानों की मुश्किलें हल हों, चाहें कोई भी पार्टी करे। इसके इतर इस यूनियन का दोगलापन समय-समय पर बाहर आता रहा है क्योंकि इनकी नीतियों में मोदी सरकार के प्रति नफरती ही हैं। इसके ट्विटर हैंडल में किसानों से ज्यादा तवज्जो तो राफेल डील में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चौकीदार चोर बताने में दी जाती है, जो दिखाता है कि कांग्रेस के प्रति इनका प्रेम कितना ज्यादा है और यही संगठन पीएम मोदी की तुलना में पूर्व प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह को ट्विटर पर किसानों का हितकारी बताता है।


भारतीय किसान यूनियन कहता है कि उसे राजनीति से कोई लेना देना नहीं है, लेकिन उसके ट्विटर हैंडल में खुलकर कांग्रेस उम्मीदवारों का समर्थन किया जाता है। इसके साथ ही लोगों से कांग्रेसियों के पक्ष में वोट करने की अपील भी की जाती है जो कि किसी तटस्थ संगठन के लिए काफी आश्चर्यजनक बात है। एक तरफ जहां केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री मोदी आढ़तियों के नियमों को खत्म कर सीधा फायदा किसानों को पहुंचाने की बात करते हैं तो इस भारतीय किसान संगठन के नेता गुरुनाम सिंह चंदौनी रैली निकालकर आढ़तियों को मंडी का हिस्सा बताते हैं, जो कि किसानों की तथाकथित मदद करता है। जबकि किसानों को इन्हीं आढ़तियों के कारण सबसे ज्यादा नुकसान होता है। जबकि एक वक्त इसी किसान संगठन ने आढ़तियों के सिस्टम को खत्म करने की मांग कांग्रेस सरकार से की थी।

किसानों का साथ देने का ढोंग करने वाला ये संगठन असल में किसानों के हितों के मुद्दों पर ही विरोध कर रहा है और मंडी में बिचौलियों के सिस्टम के खात्मे विरोध कर रहा है। ये यूनियन किसानों के हित में उठाए गए कदमों पर भी किसानों को ही बेवजह भड़का रहा है जो कि पूर्णतः आपराधिक श्रेणी में भी आता है।  तटस्थता की बात करने वाला ये किसान संगठन जब एक साधारण से मुद्दे पर भी मोदी सरकार की आलोचना करता है और राहुल गांधी के विवादित नारे “चौकीदार चोर है”  को चुनावी दौर में इस्तेमाल करता है, तो साफ पता चलता है कि ये उतना ही तटस्थ है जितना कांग्रेस के अध्यक्ष पद के लिए  होने वाला चुनाव तटस्थ है, यानी बिल्कुल भी नहीं।

भारतीय किसान यूनियन शुरू से ही कांग्रेस के बचाव में खड़ा रहा है और कांग्रेस की नीतियों पर आंख मूंद कर विश्वास करता है। कांग्रेस के प्रति उसका प्रेम जगजाहिर है। ऐसे में बातचीत और सरकार द्वारा कृषि बिलों में संशोधन के बावजूद ये संगठन अगर आंदोलन को विस्तार देने की बात कर रहा है तो इसका मकसद साफ है कि इसे किसानों से नहीं, कांग्रेस से प्रेम है। इसीलिए भारतीय किसान यूनियन कांग्रेस के राजनीतिक भविष्य को बचाने के  लिए किसान आंदोलन में अपनी पूरी ताकत झोंक रहा है।

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