को – वैक्सीन’ को लेकर शुरू हुआ बुद्धिजीवियों का प्रोपेगैंडा, अनिल विज के जरिए साधा भारतीय वैक्सीन पर निशाना

 


भारत में वैश्विक महामारी कोरोना वायरस की वैक्सीन की उपलब्ता को लेकर कई खबरें आ रही हैं, लेकिन इसके साथ ही भारतीय कोरोना वैक्सीन की लानत-मलामत के लिए भारतीय मीडिया को एक मुद्दा भी मिल गया है। अब भारत बायोटेक की वैक्सीन ‘को-वैक्सीन’ का खुद पर ट्रायल कराने वाले हरियाणा के स्वास्थ्य मंत्र कोरोना पॉजिटिव हो गए हैं, जो कि ट्रायल की प्रक्रिया के दौरान होना लाजिमी है। इस मुद्दे के जरिए भारतीय मीडिया ने वैक्सीन के खिलाफ भ्रम का प्रोपेगेंडा छेड़ दिया है जो कि शर्मनाक हैं, और एजेंडा धारी पत्रकारों की नीयत पर सवाल उठाता है।

भारत में कोरोना वैक्सीन का ट्रायल अपने चरम पर है। इसी कड़ी में भारतीय वैक्सीन निर्माता कंपनी भारत बायोटेक द्वारा निर्मित को-वैक्सीन के ट्रायल में हरियाणा के स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज ने वॉलेंटियर किया और अपने शरीर में इसका ट्रायल करवाया, जिसके बाद अब वो कोरोना वायरस से संक्रमित हो गए हैं। इस पूरे घटना क्रम के बाद मीडिया समेत समाज के एक तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग ने भारतीय वैक्सीन पर सवाल खड़े कर दिए हैं कि ये बिल्कुल भी सुरक्षित नहीं है और वैक्सीन को लेकर बस नकारात्मक हवा बनाई जा रही है, जबकि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने इस मुद्दे पर अपना पक्ष रख दिया है।

अनिल विज के को-वैक्सीन लगवाने के बावजूद कोरोना वायरस से संक्रमित होने के चलते वैक्सीन के असर पर सवाल खड़े हो गए हैं। इसको लेकर स्वास्थ मंत्रालय और आईसीएमआर ने साफ किया है कि इस वैक्सीन के दो डोज में असरदार होने की प्रक्रिया है,जबकि अभी अनिज विज को केवल एक ही डोज दिया गया है। इसलिए अभी इस वैक्सिनेशन की प्रक्रिया को किसी भी हाल में संपन्न नहीं माना जा सकता है। अनिल विज ने भी कहा, मुझे बताया गया था कि पहली डोज के 28 दिन बाद दूसरी डोज दी जाती है जिसके 14 दिन बाद एंटीबॉडीज़ बनने लगते हैंऐसे में ये पूरी प्रक्रिया 42 दिन की हैइस प्रक्रिया में कोई सुरक्षा नहीं होती है।”

अनिल विज को खुद ही पता था कि पहली डोज में एंटीबॉडीज़ नहीं बनती हैं, वो ये बात भी कह रहे हैं कि वैक्सीन की इस प्रक्रिया के दौरान कोई सुरक्षा नहीं होती है। आईसीएमआर और भारत बायोटेक भी इस बात पर ही जोर दे रहे है। अनिल विज ने बताया है कि वो हाल मान पानीपत गए थे जहां एक भाजपा नेता से मिले थे। वो भाजपा नेता भी कोरोना संक्रमित हो गए हैं। ऐसे में ये लाज़मी है कि पहली डोज के बाद कोई सुरक्षा न होने की स्थिति में कोरोना हो सकता हैं, क्योंकि उस वायरस से लड़ने के लिए भी शरीर में एक वायरस रूपी दवा ही इंजेक्ट की जाती है, जिसके असर करने की एक निश्चित अवधि होती है; लेकिन भारतीय मीडिया ने इस मुद्दे पर प्रोपगैंडा शुरू कर दिया है।

भारतीय मीडिया ने इसको लेकर हवा बना दी है कि कोरोना की वैक्सीन जब स्वास्थ्य मंत्री को ही असर नहीं कर रही तो आम लोगों को इसका क्या ही फायदा होगा। मीडिया से लेकर तथाकथित बुद्धिजीवियों का एक वर्ग भारतीय कोरोना वायरस वैक्सीन को पूरी तरह अविश्वसनीय बता रहा है। इसको लेकर ये भी कहा जाने लगा है कि वैक्सीन को लेकर जल्दबाजी भारत पर भारी पड़ सकती है। ये लोग ऐसी स्थिति को जन्म देना चाहते हैं जिससे आम जनता में वैक्सीन की विश्वसनीयता खत्म हो जाए और अस्थिरता की स्थिति पैदा हो जाए।

को-वैक्सीन को लेकर केवल अनिल विज ही नहीं बल्कि अनेकों ऐसे मामले सामने आए होंगे जो इस 42 दिन के वैक्सिनेशन की प्रक्रिया के दौरान संक्रमित हुए होंगे और ठीक भी हुए होंगे, लेकिन अनिल विज इन तथाकथित बुद्धिजीवियों के लिए सबसे आसान टारगेट हैं। इस पूरे मुद्दे के पीछे असल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वैक्सीन की उपलब्धता को लेकर सक्रियता है। पीएम पहले वैक्सीन प्रोडक्शन की लैब्स में गए और फिर राज्यों को भरोसा दिया कि कुछ ही हफ्तों में भारत में वैक्सीन उपलब्ध होगी। उनकी ये सक्रियता कुछ लोगों को पच नहीं रही है। इसलिए ये लोग अनिल विज के कोरोना संक्रमित होने को बड़ा मुद्दा बना रहे हैं जिससे वैक्सीन की विश्वसनीयता पर प्रश्न खड़े हो और जनता में भ्रम की स्थितियां पैदा हो जाएं।

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