हाँग-काँग की हार मुंबई की जीत बन सकती थी, सुस्त ठाकरे सरकार के कारण सिंगापुर मौज ले रहा है

 


जनवरी 2018 में महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री देवेन्द्र फड़नवीस ने मुंबई को लंदन और न्यू यॉर्क के तर्ज पर वैश्विक वित्तीय केंद्र के रूप में स्थापित करने की इच्छा जताई थी। उनके दो वर्षों में उन्होंने कई व्यापक सुधार किये, ताकि मुंबई एक सशक्त वैश्विक वित्तीय केंद्र के रूप में उभर सके। जिस प्रकार से वुहान वायरस की महामारी और चीन के दमनकारी नियमों के कारण हाँग-काँग से वित्तीय संस्थान स्थानांतरित होना चाहत हैं, उसका सर्वाधिक लाभ मुंबई को मिल सकता था, लेकिन अब मुंबई का शासन देवेन्द्र फड़नवीस के हाथ में नहीं है।

जापान के प्रसिद्ध निक्केई एशियन रिव्यू के अनुसार हाँग-काँग पर चीन के दमनकारी नियमों के थोपे जाने के पश्चात अब वित्तीय संस्थान हाँग-काँग से स्थानांतरित होकर सिंगापुर में बस रहे हैं। उदाहरण के लिए रिपोर्ट के अंश अनुसार, “बेयरिंग्स डॉयश बैंक [Deustche Bank] के साथ मिलकर सिंगापुर में अपना वैकल्पिक बेस तैयार कर रहा है, जो 11 वर्षों में हाँग काँग से पहले अहम व्यापारिक पलायन होने जा रहा है।”

तो प्रश्न ये उठता है कि जब स्थिति अनुकूल थी, तो इन कंपनियों ने सिंगापुर के बजाए भारत के मुंबई का रुख क्यूँ नहीं किया? वजह है उद्धव ठाकरे की महा विकास अघाड़ी सरकार, जिसने न तो कंपनियों को मुंबई में निवेश करने के लिए द्वार खोले, और न ही उन्होंने ऐसा वातावरण बनाया, जिसमें वित्तीय संस्थान स्वच्छंद होकर काम कर सके। उनका प्रमुख उद्देश्य सरकार के विरुद्ध उठने वाली किसी भी आवाज को दबाना और गुंडागर्दी को बढ़ावा देने पर था, जैसे पालघर के हिंसा और समीत ठक्कर एवं अर्नब गोस्वामी की गिरफ्तारियों के माध्यम से देखने को मिला।

मुंबई पश्चिमी जगत और पूर्वी जगत के बीचोंबीच स्थित है, और उसका टाइम ज़ोन भी व्यापार के अनुसार अनुकूल है, जिससे उसे एक प्रखर वित्तीय संस्थान के रूप में उभरने में कोई कठिनाई नहीं हो सकती। इसके अलावा आईआईएम जैसे संस्थानों की कृपया से मुंबई के पास एक उत्तम ह्यूमन कैपिटल बेस भी है, जिसका दुनिया में कोई सानी नहीं है।

इसी परिप्रेक्ष्य में लाइवमिन्ट ने अपनी जुलाई की एक रिपोर्ट में लिखाथा, “मुंबई विविधता से परिपूर्ण है। पूर्व और पश्चिम के बीचोंबीच वह एक उत्तम टाइम ज़ोन क्षेत्र में स्थित है, जो उसके लिए अत्यंत लाभकारी है। ऐसे में कुछ रणनीतिक सुधार इसे हाँग काँग को हो रहे नुकसान से अपने आप को लाभान्वित करने योग्य बना सकतेहैं।” पर ऐसे काम के लिए सुधार प्रेमी प्रशासक का होना अत्यंत आवश्यक है, जो देवेन्द्र फड़नवीस के सत्ता छोड़ते ही महाराष्ट्र से उड़नछू हो गया।

उद्धव ठाकरे की सरकार ने मानो मुंबई की प्रगति पर ही ताला लगा दिया है। चाहे सांस्कृतिक सुधार हो या फिर इन्फ्रस्ट्रक्चर में सुधार, उद्धव ने फ्यूचर प्रोजेक्ट्स के साथ-साथ वर्तमान प्रोजेक्ट्स पर भी रोक लगा दी है। चाहे मुंबई मेट्रो रेल के कार शेड को आरे वन क्षेत्र से बाहर निकलवाना हो, या फिर मुंबई से अहमदाबाद जाने वाली बुलेट ट्रेन को स्थगित करना हो, या फिर भविष्य के लिए अत्यंत लाभकारी हाइपर लूप ट्रेन प्रोजेक्ट को रद्द करना हो, उद्धव ठाकरे की सरकार को मानो महाराष्ट्र के विकास से सख्त एलर्जी है।

मुंबई के लोगों की ज़िंदगी कुछ ही वर्षों में बदलने वाली थी। यदि देवेन्द्र फड़नवीस की सरकार रहती, तो 2022 या 2023 तक मुंबई को वैश्विक वित्तीय केंद्र बनने में कोई अड़चन न आती, और उसकी वर्तमान रैंक वैश्विक वित्तीय केंद्रों में 35 से तो बहुत ही ऊपर होती। परंतु उद्धव ठाकरे के सरकार के इरादे तो कुछ और ही थे।

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