ट्रम्प के जाते ही मर्कल ने चीन-विरोधी होने का मुखौटा कूड़ेदान में फेंक दिया है, हुवावे को दिया खुला समर्थन

 


ट्रम्प अपने चुनाव प्रचार में बार-बार यह कहते थे कि अगर वे चुनाव हारे, तो चीन जीत जाएगा! अब यही होता भी दिखाई दे रहा है। ट्रम्प ने पिछले चार सालों में जिस प्रकार चीन के खिलाफ एक Tech-War छेड़ी हुई थी, उसके बाद अमेरिका के अन्य साथी देश भी चीन के खिलाफ सख्त रुख अपनाने के लिए मजबूर हो गए थे। हालांकि, अब जैसे-जैसे बाइडन की जीत लगभग तय हो गयी है, ठीक वैसे ही वे सभी देश अब दोबारा अपना चीन-प्रेम दिखाने लगे हैं। इसी का सबसे नया उदाहरण आया है जर्मनी से!

दरअसल, जर्मनी के एक अखबार Handelsblatt की एक रिपोर्ट के मुताबिक जर्मनी अब अपने 5G नेटवर्क के विस्तार के लिए Huawei को अनुमति दे सकता है। इस संबंध में अगले ही महीने मर्कल प्रशासन संसद में एक विधेयक जमा कर सकता है। अगर ऐसा होता है तो हुवावे के मुद्दे पर इसे मर्कल प्रशासन और जर्मन सरकार का U-Turn ही कहा जाएगा। ऐसा इसलिए क्योंकि सितंबर महीने में ही जर्मन सरकार हुवावे के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने की बात कर रही थी। तब Telecom उपकरण प्रदान करने वाली कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई कर जर्मन प्रशासन हुवावे को निशाना बनाने के प्रयास करता दिखाई दे रहा था।

तब एक तरफ तो जर्मनी पर ट्रम्प प्रशासन का दबाव था तो वहीं दूसरी तरफ चीन के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए उनपर घरेलू राजनीतिक दबाव भी बहुत ज़्यादा था। उन्हीं की पार्टी Christian Democrats यानि CDU के नेता उनपर हुवावे के खिलाफ एक्शन लेने का दबाव बना रहे थे। ऐसे में जर्मन चांसलर एंजेला मर्कल ने समय की संवेदनशीलता को समझते हुए हुवावे के खिलाफ एक्शन लेने का ऐलान करने में ही भलाई समझी। यह ट्रम्प का दबाव ही था कि अमेरिकी चुनावों से ठीक पहले तक जर्मनी अपने सबसे प्रिय साथी चीन के खिलाफ बयानबाज़ी करने के लिए बाध्य हो गया था।

चीन और जर्मनी के बीच आर्थिक संबंध बेहद मजबूत थे। शुरुआत में जर्मनी ने चीन के खिलाफ कोई भी कार्रवाई करने में आनाकानी की थी। हालांकि, बाद में जब ट्रम्प प्रशासन की ओर से दबाव बढ़ा तो मर्कल प्रशासन को लगा कि अब उन्हें चीन के खिलाफ सख्त रुख अपनाने का कम से कम दिखावा तो करना ही पड़ेगा! ऐसे में अमेरिकी चुनाव से पहले तक मर्कल प्रशासन चीन के खिलाफ सख्त रुख अपनाने का दिखावा करने लगा था। हालांकि, जर्मनी सरकार ने बड़ी ही चालाकी से हुवावे को पूर्णतः प्रतिबंध करने से जुड़ा एक भी फैसला नहीं लिया।

इस बात में कोई दो राय नहीं है कि बाइडन सत्ता में आने के बाद चीन के खिलाफ ट्रम्प प्रशासन के मुक़ाबले कम सख्त रुख अपनाएँगे। बाइडन राजनीतिक घमासान से बचने के लिए बेशक अपने यहाँ हुवावे को स्वीकृति नहीं देंगे, लेकिन वे हुवावे को dump करने के लिए बाकी देशों पर शायद ही कोई दबाव बनाएँ। जर्मनी की सरकार अब इसीलिए हुवावे के प्रति नर्म रुख दिखाना शुरू कर चुकी है।

मर्कल ने तब तक चीन विरोधी होने का मुखौटा पहना हुआ था, जब तक उन्हें यह पता था कि अमेरिका में ट्रम्प ही प्रशासन के नेता रहने वाले हैं। लेकिन अब जैसे-जैसे बाइडन की जीत पक्की होती जा रही है, ठीक वैसे ही जर्मन चांसलर मर्कल अपना यह मुखौटा अब कूड़ेदान में फेंकने की तैयारी कर चुकी है। ट्रम्प के जाते ही मर्कल का चीन-प्रेम फिर उफ़ाने मरने लगा है।

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