इतिहास अपने आप को दोहरा है- दुनिया का पेट पालने वाला भारत अब दोबारा कृषि सुपरपावर बनने जा रहा है

 


भारतीय कृषि व्यवस्था के मुद्दे पर कुछ अराजक तत्वों ने सवाल खड़े कर रखे हैं जबकि देश का कृषि क्षेत्र अपने स्वर्णिम काल की ओर लौटने लगा है जो पूरे विश्व की खपत की पूर्ति करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। भारतीय किसान ने पिछले कई वर्षों बाद 2019-20 में 296.65 बिलियन टन की फसलों का रिकॉर्ड उत्पादन किया है, जिसने भारत को दुनिया का सबसे बड़ा दलहन उत्पादक और तीसरा सबसे बड़ा अनाज उत्पादक बना दिया है। इस दौरान भारत ने बड़ी मात्रा में निर्यात भी किया है जो बेहत महत्वपूर्ण है क्योंकि इस दिशा में पिछली सरकारों ने ध्यान नहीं दिया। यही कारण है कि कोरोनावायरस के कारण गिरती अर्थव्यवस्था के बीच भी उसके कृषि क्षेत्र ने बेहतरीन प्रदर्शन किया है।

भारत गेंहु और चावल के उत्पादन में तो शीर्ष पर है पर निर्यात के मामले में भारत का स्थान बेहतर नहीं रहा है पर अब निर्यात के मामले में भारत सरकार सुधार करने में जुटी है। भारतीय कृषि क्षेत्र में लगातार केन्द्र सरकार परिवर्तन कर किसानों और अर्थव्यवस्था दोनों को सुधारने की कोशिशें कर रही है जिसके परिणाम अब दिखने भी लगे हैं। वाणिज्य मंत्रालय के कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण के मुताबिक भारत ने सितंबर 2020 में 71 की वृद्धि से 3.52 लाख टन के बासमती चावल का निर्यात किया था, जोकि पिछले साल के सितंबर महीने में मात्र 2.5 लाख टन का ही था। जबकि  गैर-बासमती चावल का निर्यात सितंबर 2019 के 3.69 लाख टन से बढ़कर सितंबर 2020 में 11.19 लाख टन तक पहुंच चुका है, जो कि कृषि क्षेत्र के बेहतरीन प्रदर्शन की कहनी कह रहा है।

भारतीय कृषि क्षेत्र के चावल निर्यात में तो वृद्धि देखी ही गई है, लेकिन इसके अलावा वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों बताते हैं कि मक्का के निर्यात में भी बढ़ोतरी हुई है, जो कि सितंबर 2019 में 15,649 टन से बढ़कर सितंबर 2020 में 2.47 लाख टन हो गया है। पिछले वर्ष इसी अवधि में 1.67 लाख टन मक्का निर्यात हुआ था जबकि इस वर्ष  मक्के का निर्यात 450 प्रतिशत की वृद्धि से 9.22 लाख टन तक पहुंच गया है।

भारतीय कृषि क्षेत्र लगातार अपना बेहतरीन प्रदर्शन कर रहा है लेकिन किसानों के लिए मानसून पर निर्भरता, ऋण, तकनीक में कमी संबंधी दिक्कतें, पूरे कृषि क्षेत्र के लिए भी मुसीबत बनती है। उदाहरण के लिए 2019 की सरकार की रिपोर्ट में सामने आया कि 2017 में दलहन की फसल में 24 फीसदी की बढ़ोतरी हुई लेकिन वैश्विक स्तर पर देखें तो इन उपलब्धियों के बावजूद विश्व के शीर्ष 10 देशों में नहीं आ सका, लेकिन अब इन तीन सालों की सरकार की नई नीतियां का किसानों को लाभ हुआ तो भारत दलहन के लिए 2020 में सर्वश्रेष्ठ पायदान पर पहुंच गया है।

भारत में अनाज की पैदावार की निर्भरता अधिकतर मानसून पर निर्भर करती है। पिछले काफी सालों से किसानों को इस निर्भरता से उबारने के लिए केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा प्रयास किए गए हैं, लेकिन इस वर्ष मौसम का साथ देने पर कोरोनावायरस के असर के बावजूद किसानों ने खेतों में भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए बेहतरीन काम किया है। नतीज़ा ये कि 2018-19 में जो कृषि विकास दर 2.4 फीसदी पर अटक गई थी वो एक बार फिर उबरने लगी है और कोरोना काल में भारत की जीडीपी के एक मात्र कृषि क्षेत्र ने बेहतरीन प्रदर्शन किया है जिसकी विकास दर 2.4 से बढ़कर 4 फीसदी से भी आगे जाने की राह पर अग्रसर है।

रिकॉर्ड फसल उत्पादन का ही असर निर्यात फर भी दिख रहा है। कृषि क्षेत्र की समस्याओं के कारण 1996-97  तक 20 फीसदी की दर से होने वाला निर्यात पिछले वर्ष 2018-19 में 11.9 फीसदी तक पहुंच गया है। लेकिन अभी तक की 2020-2021 की दर को ध्यान में रखें तो ये औसतन 12 फीसदी से ऊपर जा चुका है जिसमें अभी बढ़ोतरी की सकारात्मक संभावनाएं दिख रही हैं।

कृषि कानून के आने के बाद कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, कृषि और संबद्ध क्षेत्रों में पंजीकृत नई कंपनियों की संख्या पिछले साल की समान अवधि की तुलना 35 प्रतिशत बढ़ी हैं। इसके अलावा, इनमें से अधिकांश कंपनियां जून और नवंबर के बीच पंजीकृत हुई हैं। ऐसे में जिस प्रकार से कृषि सेक्टर में नए कंपनियों की ताबड़तोड़ रजिस्ट्री हुई है, उससे स्पष्ट है कि इन सुधारों के लिए कंपनियां इतने वर्षों से प्रतीक्षा कर रही थीं, परंतु वर्तमान सरकार से पहले किसी भी सरकार ने इस दिशा में व्यापक बदलाव करने का साहस नहीं किया था। इससे भविष्य में भारत के किसान भी विदेशी किसानों की भांति अपने उत्पादों से भारी कमाई कर पाएंगे।

ये सारे आंकड़े कोरोनावायरस के दौर में भी भारतीय कृषि क्षेत्र के लिए सकारात्मक रहें हैं। भारत का खाद्यान्न उत्पादन प्रत्येक वर्ष बढ़ रहा है और देश गेहूं, चावल, दालों, गन्ने और कपास जैसी फसलों के मुख्य उत्पादकों में से एक है। हाल ही में केंद्र सरकार ने 14, 654 करोड़ का कपास (Cotton) भी खरीदा है, जिससे इसकी खेती में लगे 9.63 लाख किसानों को फायदा हुआ है। यही नहीं सरकार खेती में टेक्नोलॉजी और डिजिटल ट्रांजेक्शन को बढ़ावा दे रही है ताकि कपास की खेती करने वाले किसानों को उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रेरित किया जा सके। इस साल कपास का निर्यात भी तेजी से बढ़ा है।

गौरतलब है कि पिछले 6 सालों में कृषि सुधारों का लगातार क्रियान्वयन जारी है जिसके सकारात्मक परिणाम अब 2020 कोरोना काल में ही दिखने लगे हैं। ब्रिटिश शासन ने भारतीय अर्थव्यवस्था को कमजोर किया। इसके चलते 1947 में वैश्विक जीडीपी में भारत का योगदान मात्र 4 फीसदी ही रह गया जो कि 16वीं सदी के दौरान 22 फीसदी से अधिक का था। अंग्रेजों द्वारा शुरू की गई कृषि व्यवस्था की दुर्दशा का अंजाम भारत आजादी के 72 साल बाद भी भुगत रहा है। बीते दशकों में, विनिर्माण और सेवा क्षेत्रों ने अर्थव्यवस्था के विकास में तेजी से योगदान दिया है, जबकि कृषि क्षेत्र का योगदान 1950 के दशक में जीडीपी के 50% से साल दर साल घटता गया। परंतु सरकार अब इसे बढ़ाने की दिशा में प्रयासरत है जिसका सकरात्मक परिणाम सामने आने लगा है।

ये संकेत हैं कि सरकार द्वारा हाल में किए गए कृषि सुधारों के बाद अवरोधों से इतर जब किसान स्वतन्त्र होगा तो इस कृषि क्षेत्र में और अधिक बंपर बढ़ोतरी होगी। इसके आधार पर ही विश्लेषक ये मानने लगे हैं कि कुछ वक्त के ठहराव के बाद भारत का कृषि क्षेत्र पुनः अपने स्वर्णिम काल में लौट रहा है जो कि पूरे विश्व के अनाज की खपत की पूर्ति करेगा।

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