अगर भारत को एक वैश्विक शक्ति बनना है, तो उसे दुनिया के समुद्र पर अपना प्रभुत्व बढ़ाना ही होगा। अर्थव्यवस्था एवं राष्ट्रीय सुरक्षा को और मजबूत करने के लिए भारत का एक शक्तिशाली नेवल पावर बनना आवश्यक है। शायद यही कारण है कि इस वर्ष के भारत-चीन के लद्दाख विवाद के बाद भारतीय नेवी ने अपना आक्रामक रुख दिखाया है और अब उसका ध्यान सिर्फ हिन्द महासागर पर ही नहीं, बल्कि दक्षिण चीन सागर पर भी केन्द्रित हो चुका है।
वर्ष 2019 तक भी भारतीय नेवी का posture काफी हद तक सुरक्षात्मक ही था। भारत का सारा ध्यान इस बात पर रहता था कि कहीं कोई उसके इलाके में घुसपैठ ना कर ले। हालांकि, भारत-चीन के विवाद के बाद अब भारतीय नेवी अपना आक्रामक रूप दिखा रही है। सबसे ताज़ा उदाहरण में अब भारतीय नेवी 26 और 27 दिसंबर को वियतनामी नौसेना के साथ मिलकर दक्षिण चीन सागर में एक युद्धाभ्यास करने जा रही है।
बता दें कि 24 दिसंबर को भारतीय नौसेना का जहाज़ INS Kiltan वियतनाम के Ho Chi Minh स्थित Nha Rong पोर्ट पहुंचा था। यह जहाज़ अपने साथ 10 मिलियन टन की राहत सामाग्री लेकर पहुंचा था, क्योंकि अभी वियतनाम बाढ़ से जूझ रहा है। हालांकि, अब यह जहाज़ वहाँ एक युद्धाभ्यास में भी शामिल होगा। बीते सोमवार को ही भारत-वियतनाम वर्चुअल समिट के दौरान भारत ने वियतनाम को 12 high speed Guard Boats भी सौंपी थीं।
उसके बाद भारत का इस युद्धाभ्यास में शामिल होना दिखाता है कि भारत दक्षिण चीन सागर में अब आक्रामक रुख दिखा रहा है, और अब वह मात्र एक सुरक्षात्मक शक्ति नहीं है।
चीन सालों से भारत के प्रभुत्व वाले हिन्द महासागर में चोरी-छिपे घुसपैठ करता आया है और सितंबर 2019 में तो चीन का एक vessel भारत के Exclusive Economic Zone तक में घुस गया था। तब भारतीय नेवी ने उस चीनी जहाज़ को अपनी जल सीमा से बाहर निकाल फेंका था। हालांकि, उस दौरान भी भारतीय नेवी ने प्रतिउत्तर में कोई आक्रामक कार्रवाई नहीं की थी। इस वर्ष के भारत-चीन लद्दाख विवाद के बाद सब कुछ बदल गया।
अब भारतीय नेवी सिर्फ हिन्द महासागर और अरब खड़ी तक ही सीमित नहीं है। उदाहरण के लिए, लद्दाख में चीनी करतूत के कारण हुई हिंसक झड़प के तुरंत बाद भारतीय नौसेना ने हिंद महासागर के साथ-साथ दक्षिण चीन सागर में भी अपना युद्धपोत तैनात कर दिया था। यह पूरा मिशन गोपनीय तरीके से किया गया था ताकि नौसेना की गतिविधियों पर लोगों की नजर न पड़े। इस तैनाती के दौरान भारत ने अमेरिका को भी भरोसे में ले लिया था।
अब भारत धीरे-धीरे दक्षिण चीन सागर में अपने आप को सक्रिय करने लगा है, जिससे चीन को यह संदेश गया है कि भारत चीन की आक्रामकता का जवाब आक्रामकता के साथ देने में सक्षम है। दक्षिण चीन सागर को चीन अपना हिस्सा मानता है और वह क्षेत्र में किसी अन्य देश द्वारा प्रवेश करने को घुसपैठ करार देता है। ऐसे में क्षेत्र में अपना युद्धपोत भेजकर भारत ने सीधे-सीधे चीन के इस दावे को चुनौती दी है।
भारतीय विदेश मंत्रालय इस वर्ष यह पहले ही साफ कर चुका है कि दक्षिण चीन सागर किसी एक देश की सम्पदा नहीं है, बल्कि यहाँ सभी देशों को आज़ादी के साथ operation करने की पूरी छूट होनी चाहिए।
पहले का भारत किसी भी प्रकार सिर्फ हिन्द महासागर की सुरक्षा करने तक सीमित था और उसकी नीति बेहद सुरक्षात्मक थी। हालांकि, इस वर्ष भारतीय नेवी की रणनीति में बड़ा बदलाव देखने को मिला है। अब वह ना सिर्फ हिन्द महासागर को चाइना-फ्री कर चुकी है, बल्कि चीन के दावे वाले दक्षिण चीन सागर में घुसकर चीन को आँख दिखाने का काम कर रही है।
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