अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव से एक बात तो साफ है – जो बाइडन की संभावित विजय से वैश्विक समीकरण पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ने वाला है। अब कुछ देशों को बाइडन की नीतियों के अनुसार चलना होगा, तो कुछ देशों को अपनी नीतियाँ को ऐसे ढालना होगा कि बाइडन प्रशासन की नीतियों का अधिक असर उनके देश पर न पड़े। ऐसा ही एक देश है इज़राएल, जो ये सुनिश्चित करने में लगा हुआ है कि अमेरिका किसी भी स्थिति में उसके दुश्मनों, जैसे ईरान के साथ अपने संबंध न मजबूत करने पाए।
हाल ही में अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रॉबर्ट ओ ब्रायन और अमेरिकी राजदूत डेविड फ़्रेडमैन से मुलाकात के बाद इज़राएली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने ट्वीट किया, “यदि अमेरिका ने पहले की भांति ईरान से अपने संबंध मजबूत किये, तो यह एक बहुत बड़ी गलती होगी। मैं डोनाल्ड ट्रम्प और उनकी टीम का आभारी हूँ, जिन्होंने इज़राएल के साथ मजबूत संबंध स्थापित किये और पश्चिमी एशिया में शांति स्थापित करने में एक अहम भूमिका निभाई”।
जिस प्रकार से बेंजामिन नेतन्याहू ने शपथ लेने से पहले जो बाइडन को याद दिलाया कि किस प्रकार से ईरान से संबंध बढ़ाना उनके लिए हानिकारक हो सकता है, उससे स्पष्ट होता है कि वे ईरान को किसी प्रकार की अनावश्यक सहूलियत न दिए जाने के प्रति कितने प्रतिबद्ध है।
पीएम नेतन्याहू के अनुसार, “ईरान का इस्लामिक गणराज्य अभी भी एक निकृष्ट गुंडे से कम नहीं है। अगर उसपर नियंत्रण नहीं रखा गया तो ईरान अपने आप को सशस्त्र कर सकता है और ICBM यानि अंतर महाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल के बल पर वह यूरोप और अमेरिका को भी निशाना बना सकता है, जो पूरी दुनिया को खतरे में डाल सकता है। ईरान के हाथ किसी भी तरह से परमाणु हथियारों तक नहीं पहुँचने चाहिए”।
अब नेतन्याहू पूरी तरह गलत भी नहीं है, क्योंकि ईरान के अनुसार अमेरिका और इज़राएल ने मिलकर उनके उच्च वैज्ञानिकों में से एक, मोहसिन फाखरीज़ादेह को मार गिराया है। इस ईरानी वैज्ञानिक की मौत से जिस तरह से ईरान प्रभावित हुआ है, उससे स्पष्ट पता चलता है कि कैसे ईरान के परमाणु प्रोग्राम को मोहसिन के मार गिराए जाने से नुकसान पहुंचा है।
अब अपने चुनावी प्रचार अभियान के दौरान जो बाइडन ने कहा था कि यदि ईरान परमाणु समझौतों का कड़ाई से पालन करे, तो अमेरिका उसके साथ अपने संबंध बहाल कर सकता है। परंतु ईरान पर इतनी आसानी से भरोसा नहीं किया जा सकता, और इसीलिए नेतन्याहू ने चेताया कि अमेरिका द्वारा ऐसे करने से ईरान और स्वच्छंद हो जाएगा, और इससे उसके आसपास के देशों, विशेषकर इज़राएल को काफी नुकसान हो सकता है।
ऐसे में बेंजामिन नेतन्याहू कतई नहीं चाहते कि बाइडन प्रशासन उदारवादी होने के चक्कर में इज़राएल के हितों के साथ किसी भी प्रकार का समझौता करे। इसीलिए उन्होंने जो बाइडन को स्पष्ट संदेश दिया है कि इज़राएल की बात माननी ही पड़ेगी, अन्यथा ईरान की गुंडई का दुष्परिणाम अकेले इज़राएल ही नहीं, बल्कि अमेरिका भी भुगतेगा।
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