भारत से सीमा और आर्थिक दोनों ही मोर्चों पर चल रहे विवाद को लेकर स्थितियों में अब कोई भी नया बदलाव नहीं हो रहा है तो चीनी प्रोपेगेंडा मशीनरी और वहां की सरकार का मुखपत्र ‘ग्लोबल टाइम्स’ अब भारतीय बुद्धिजीवियों पर ही बरस पड़ा है, क्योंकि चीन के समर्थन में एजेंडा चलाने वाले इन तथाकथित बुद्धिजीवियों ने भी चीन के पक्ष में बयानबाजी करने से दूरी बनाई है। ऐसे में भारत सरकार का उदासीन रवैया चीन को परेशान कर रहा है, साथ ही वो इसकी इस उदासीनता पर चीन का प्रोपेगैंडा चलाने वाले तथाकथित बुद्धिजीवी लोगों से भी नाराज़ हैं क्योंकि वो इस मुद्दे पर भारत सरकार से रिश्तों को बेहतर करने की पहल करने को भी नहीं कह रहे हैं। चीनी मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स का कहना है कि भारत सरकार की चीन के साथ मुद्दों को हल करने की कोई मंशा ही नहीं है। भारत एक तरफ़ बातचीत करने को तैयार है तो दूसरी ओर भारतीय मीडिया और सोशल मीडिया पर केवल चीन का विरोध ही दिख रहा है। ग्लोबल टाइम्स इस बात से भी खफा है भारतीय सरकार अभी तक चीनी फ़्लाइट्स की सुविधाएं रोककर रखे हुए है, जिससे रिश्ते कभी से सुधरने की राह पर जा ही नहीं सकते।
ग्लोबल टाइम्स ये धारणा बना कर बैठा है कि भारत चीन से संबंधों को कटु बनाकर अमेरिका को खुश करना चाहता है, और भारतीय सरकार इसी दिशा में काम भी कर रही है। इसलिए ग्लोबल टाइम्स भारत के तथाकथित बुद्धिजीवियों पर निशान साध रहा है कि ये बुद्धिजीवी भारत और चीन के रिश्तों को सुधारने के लिए भारत के विरोध और चीन के पक्ष में एजेंडा नहीं चला रहे, बल्कि अमेरिका की तरफ रुख कर चुकी मोदी सरकार को खुश करने में लगे हैं जो कि दुर्भाग्यपूर्ण हैं।
चीन का मानना है कि चीन में भारत के राजदूत रहे विजय गोखले, रक्षा समिति कै टी.राजा मोहन समेत अन्य बुद्धिजीवियों को भारतीय सरकार से रिश्तों को बेहतर करने की बात करनी चाहिए और एक नरेटिव गढ़ना चाहिए, लेकिन ये लोग ऐसा नहीं कर रहे इसलिए ये दोषी हैं। ग्लोबल टाइम्स ने फुडन यूनिवर्सिटी में इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज के एक प्रोफेसर लिन मिनवांग के हवाले से बताया, “भारत के कई बुद्धिजीवी ऐसे हैं जो राजनीतिक रूप से हमेशा सही दिखना चाहते हैं। ये लोग चीन के लोगों के साथ बैठे होने पर तो रिश्तों पर सकारात्मक रुख रखते हुए बात करते हैं लेकिन अमेरिका से बातचीत में इनके सुर बदलकर चीन के प्रति आक्रामक हो जाते हैं।”
ग्लोबल टाइम्स का ये लेख और बयान साफ बताते हैं कि असल में वो भारतीय तथाकथित बुद्धिजीवियों से परेशान हो चुका है। इसमें कोई शक नहीं है कि भारत में एक बड़ा वर्ग है जो चीन के साथ रिश्तों को बेहतर करने की सोच रखता है, चाहे सीमा पर कुछ भी हो; लेकिन इस वक्त वो अपनी कोई भी बात नहीं कह पा रहे हैं क्योंकि उनके एक बयान पर राष्ट्रवादी लोग सवालों की झड़ी लगा देते हैं जिससे इन बुद्धिजीवियों के मुंह पर टेप लग गया है और ये भारत विरोधी नहीं दिखना चाहते हैं। इसीलिए इन्होंने चुप्पी साध रखी है।
भारतीय बुद्धिजीवियों की ये चुप्पी चीन को परेशान कर रही है क्योंकि इस चुप्पी के कारण भारत में पिछले एक साल से चीन अपना एजेंडा नहीं चला पा रहा है, और इसलिए अब ग्लोबल टाइम्स अपनी खीझ इन्हीं बुद्धिजीवियों पर निकाल रहा है।
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