नेपाल में पीएम मोदी और शी जिनपिंग के बीच सीधी टक्कर, और जीत भारत के पक्ष में है


भारत के पड़ोसी देश नेपाल में इन दिनों राजनीतिक संकट देखने को मिल रहा है। हालांकि, जिस प्रकार चीन इसके कारण चिंता में डूबा हुआ है और कैसे भी करके नेपाल में कम्युनिस्ट पार्टी को बचाने की होड़ में लगा है, उससे लगता है कि यह राजनीतिक संकट काठमांडू में नहीं, बल्कि बीजिंग में आया है। पिछले दिनों प्रधानमंत्री KP शर्मा ओली ने संसद को भंग करने का प्रस्ताव राष्ट्रपति को भेजा था, जिसके बाद नेपाल में अब कम्युनिस्ट शासन समाप्त हो गया है और पार्टी दो टुकड़ों में बंटने की कगार पर पहुंच चुकी है। ऐसे में अब चीन अपनी कम्युनिस्ट पार्टी की अंतर्राष्ट्रीय विंग के सदस्यों को नेपाल भेज रहा है, ताकि कैसे भी करके कम्युनिस्ट पार्टी को टूटने से रोका जा सके। चीन नेपाल में कम्युनिस्ट पार्टी के सहारे अपनी पैठ को मजबूत बनाए रखना चाहता है, और इसके लिए अब वह किसी भी हद तक जाने को तैयार है।

रविवार को काठमांडू में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के अंतर्राष्ट्रीय विभाग के उप-मंत्री Guo Yezhou अपने डेलीगेशन के साथ पहुंचेंगे और जमीनी स्थिति का जायज़ा लेंगे। नेपाल की राजनीति में चीन द्वारा खुलेआम दख्ल देना दिखाता है कि उसके लिए नेपाल पर पकड़ बनाए रखना कितना ज़रूरी है। ऐसा इसलिए, क्योंकि कम्युनिस्ट पार्टी के कमजोर होने के साथ ही नेपाल पर चीन का प्रभाव भी कमजोर हो जाएगा। साथ ही चीन के दुश्मन भारत को यहां अपना प्रभुत्व बढ़ाने का बढ़िया मौका मिल जाएगा।

नेपाल की लड़ाई को शी जिनपिंग ने अपनी नाक का सवाल बना लिया है। ऐसा इसलिए, क्योंकि चीन एक के बाद एक भारत के पड़ोसियों को निशाना बनाता जा रहा है पर उसे हर जगह हार मिल रही है। मालदीव, श्रीलंका, बांग्लादेश में मात खाने के बाद अब अगर नेपाल में भी चीन भारत से मात खाता है, जिससे यह संदेश जाएगा कि चीन भारत के पड़ोस में भारत के खिलाफ अपनी एक चाल में भी सफ़ल नहीं हो सकता। पाकिस्तान के अलावा आज भारत का कोई ऐसा पड़ोसी नहीं है, जो खुलकर चीन के साथ अपनी दोस्ती को स्वीकार करना चाहता हो। पीएम ओली के समय चीन को नेपाल पर अपनी पकड़ बनाने का अवसर ज़रूर मिला था, लेकिन वहां भी भारत की धमाकेधार कूटनीति ने अब चीन की पकड़ को कमजोर कर डाला है।

बता दें कि पिछले कुछ महीनों में भारत सरकार ने नेपाल के साथ अपने उच्च-स्तरीय संवाद को तीव्र कर दिया था। उदाहरण के लिए 4 सितंबर, 2020 को नई दिल्ली में भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल नेपाल के राजदूत से मिले थे। इसके बाद 22 अक्टूबर, 2020 को भारतीय खूफिया एजेंसी Research and Analysis Wing के अध्यक्ष सुमंत कुमार गोयल नेपाल दौरे पर गये थे और प्रधानमंत्री KP शर्मा ओली से मिले थे। मिलने का सिलसिला जारी रहा और 4 नवंबर, 2020 को भारत के सेनाध्यक्ष जनरल MM नरवाने अपने तीन-दिवसीय दौरे पर नेपाल गये, और वहाँ नेपाल के टॉप सैन्य अफसरों के साथ-साथ Nepal के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से मिले थे। इसके बाद 26 नवंबर, 2020 को भारत के विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला नेपाल के दो दिवसीय दौरे पर गये थे और Nepal के प्रधानमंत्री से मुलाक़ात की थी।

यह दिखाता है कि नेपाल में भारत और चीन के बीच सीधी टक्कर देखने को मिल रही है, जिसमें आखिर में विजयी अब भारत की होती दिखाई दे रही है। शायद यही कारण है कि अब चीन नेपाल में एक हाई लेवल डेलीगेशन भेजकर डैमेज कंट्रोल करने की कोशिश में है।

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