“हिन्दू राष्ट्र वापस लाओ”, कम्युनिस्ट सरकार के विरोध में अब सड़कों पर उतर चुके हैं नेपाली लोग

 


विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत के पड़ोसी देश नेपाल में 12 साल पुराना लोकतंत्र कमजोर पड़ने लगा है। वहां की जनता लोकतंत्र से त्रस्त हो चुकी है। सरकार की नीतियों से परेशान जनता अब लगातार अपने विरोध प्रदर्शन के जरिए बगावती आवाज उठा रही हैं। लोगों का कहना है कि नेपाल की कम्युनिस्ट सरकार के नेता देशहित कम लेकिन अपना हित ज्यादा देख रहे हैं जो कि घातक है। इसीलिए जनता ने यह मांग कर दी है कि अगर लोकतंत्र ऐसा होता है तो फिर उनका पहले वाला राजशाही शासन ज्यादा अच्छा था, जिसमें हिंदू संस्कृति का ध्यान रखते हुए देश का संचालन होता था, लोग अब दोबारा लोकतांत्रिक देश को हिंदू राष्ट्र बनाने की बात करने लगे हैं।

नवभारत टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक नेपाल की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी दो धड़ों में बंट चुकी है। एक तरफ प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली हैं तो दूसरी ओर उनके सहयोगी और पार्टी में नंबर दो पुष्प कमल दहल प्रचंड हैं। दोनों बड़े नेताओं के बीच आपसी टकराव के चलते पार्टी में फूट है जिसके चलते जनता के मसले किनारे हो गए हैं। ये लोग आपस में ही अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए नूरा कुश्ती कर रहे हैं। सरकार और पार्टी की आतंरिक लड़ाई में नुकसान देश की आम जनता का हो रहा है जिसके चलते अब पूरे देश के अलग-अलग जिलों में कम्युनिस्ट सरकार के खिलाफ प्रदर्शन शुरू हो गए हैं।

2008 में एक लोकतंत्र घोषित हुआ नेपाल माओवादियों के हत्थे लग गया। माओवादी सरकार अपने ढंग से नेपाल का शासन चला रही हैं, लेकिन कई दलों को मिलाकर बनाई गई पार्टी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ नेपाल ने सत्ता हासिल करने के बाद देश में अस्थिरता पैदा कर दी है। ओली और प्रचंड के बीच ढाई-ढाई साल तक मुख्यमंत्री पद रहने का समझौता किया था। ऐसे में सरकार एक बार गिरकर जब दोबारा बनी तो केपी शर्मा ओली को नेपाल में स्पष्ट बहुमत मिला, लेकिन महत्वाकांक्षाओं के चलते अब पार्टी टूट की कगार पर पहुंच गई है, जिससे जनहित के मुद्दे नजरंदाज होने लगे हैं।

कम्युनिस्ट पार्टी में हो रही इस लड़ाई के बीच कोरोनावायरस से लेकर बेरोजगारी, बढ़ती महंगाई, स्वास्थ्य की समस्याएं लोगों की मुसीबत का सबब बन गई हैं, जिससे हर दिन हजारों लोगों को जूझना पड़ रहा है। लोगों का कहना है कि कम्युनिस्ट पार्टी के नेता देश हित को छोड़कर अपना हित साध रहे हैं और देश को खोखला कर रहे हैं। इस मसले को लेकर नेपाल की राजधानी काठमांडू में लोग सड़कों पर उतर आए हैं। ये प्रदर्शनकारी सरकार से दोबारा इस लोकतंत्र को खत्म करके राजशाही शासन और हिन्दू राष्ट्र लागू करने की मांग करने लगे हैं।

इस मौके पर राजशाही समर्थक और हिंदुत्ववादी प्रदर्शनकारियों ने नेपाल के अलग-अलग जिलों हेटुडा, बुटवल, धनगढ़ी, नेपानगर, महेंद्रनगर, बरदिया, बिरजगंज, जनकपुर, नवापुर, पोखरा, रौतहट और बिराटनगर में इसी तरह की रैलियां आयोजित की थीं। अंत में यह लोग काठमांडू में रैली कर राजशाही शासन करने की मांग कर रहे हैं। ये सभी ऐसे संगठन है जो हिंदुत्व का पुरजोर समर्थन करते हैं। इसीलिए यह लोग चाहते हैं कि दोबारा देश में राजशाही शासन आए, जिससे देश हिंदुत्व के एजेंडे के नियमानुसार संचालित हो।

नेपाल में स्थिरता का एक बड़ा कारण चीन भी है जो लगातार भारत से निपटने के लिए नेपाल का उपयोग करने की चाल चलता रहता है। इसीलिए चीन लगातार वहां की सरकार में भी दखल देने की कोशिश करता रहता है, जिसका उदाहरण नेपाल में चीन की राजदूत वांग यी भी हैं। जब नेपाली प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली भारत के खिलाफ ऊल-जलूल बयान बाजी कर रहे थे तो पहले वांग यी ने केपी शर्मा ओली की गिरती हुई सरकार को दखल देकर बचाने में मदद की थी। इसके इतर जब केपी शर्मा ओली को भारत से विरोध रखने पर अपने ही देश में नकारा जाने लगा तो उन्होंने भारत का समर्थन शुरू कर दिया है, ऐसी स्थिति में चीन ने दूसरी चाल चलते हुए उनके साथी प्रचंड पर अपना हाथ रख दिया जिससे पार्टी में एक और बड़ी अस्थिरता आ गई है।

चीनी दखल और कम्युनिस्ट पार्टी के ढुलमुल रवैये के चलते नेपाल की जनता नेपाल के लोकतंत्र से त्रस्त हो चुकी है और इसीलिए वो दोबारा अपने हिंदुत्व के रास्ते पर चलने वाले राजशाही शासन को लाने की मांग कर रही है।

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