राहुल को न, प्रियंका को हां- कांग्रेस के नाराज नेताओं की राहुल से ताज छीनने की रणनीति तैयार है

 


परिवारवादी राजनीति की एक सबसे बड़ी दिक्कत अचानक परिवार के अंदर से ही एक नए प्रतिद्वंद्वी का खड़े होना है, जो कि ढोंग तो पार्टी की राजनीतिक जमीन को मजबूत करने का करता है लेकिन असल में वो अपनी ही राजनीतिक ज़मीन तैयार करने लगता है। कांग्रेस की स्थिति भी कुछ ऐसी है, जहां राहुल गांधी को अध्यक्ष बनाने के लिए बहन प्रियंका गांधी वाड्रा ने परिवार के बाहर पार्टी के सभी नाराज़ नेताओं को मना लिया है।

कांग्रेस में राहुल गांधी के अध्यक्ष पद की राह अब सुनिश्चित की जा चुकी है, जबकि राहुल की आड़ में प्रियंका ने पार्टी में अपना राजनीतिक कद एक झटके में ही मजबूत कर लिया है जो कि उनकी पार्टी में दूरदर्शिता और महत्वकांक्षा को दिखाता है क्योंकि प्रियंका जल्द ही राहुल को किनारे कर पूरी कांग्रेस पर अपना आधिपत्य जमाने की कोशिश कर रही हैं।

कांग्रेस के अध्यक्ष पद से गैर-गांधी अध्यक्ष होने की मांग करते हुए इस्तीफा देने वाले राहुल गांधी ने अपनी ही कही बात की बली चढ़ाते हुए मम्मी सोनिया और बहन प्रियंका के अनुरोध पर पुनः पार्टी के अध्यक्ष पद को संभालने की हामी भर दी है। इस पूरे खेल में सबसे अधिक भूमिका कांग्रेस महासचिव और सोनिया गांधी की बिटिया प्रियंका गांधी वाड्रा की रही हैं।

प्रियंका ने कुछ महीने पहले पार्टी से नाराज़ चल रहे 23 बगावती नेताओं से इस मुद्दे पर चर्चा की और सभी को इस बात पर राज़ी कर लिया कि राहुल को एक बार फिर पार्टी का सर्वोच्च पद दिया जाए। प्रियंका ने अपनी कूटनीति का परिचय देते हुए गुलाम नबी आजाद, कपिल सिब्बल और आनंद शर्मा जैसे नेताओं को भी मनाया है जिनके राज़ी होने की संभावनाएं काफी कम हो गईं थीं।

इस पूरे प्रकरण के बाद प्रियंका गांधी वाड्रा ने अपने कूटनीतिक और राजनीतिक जौहर का परिचय दिया है। कई मीडिया रिपोर्ट्स तो ये भी कह रही हैं कि असल में अब सोनिया के राजनीतिक सलाहकार की भूमिका में प्रियंका गांधी आ गईं हैं और वो मरहूम अहमद पटेल की भूमिका सोनिया के लिए बखूबी निभा रही हैं। उथल-पुथल के बीच पार्टी में उनके इस सलाहकार के रोल से उनका कद पार्टी में अचानक बढ़ गया है, जो कि असल में उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं का एक हिस्सा मात्र है।

प्रियंका गांधी वाड्रा को जब भी सक्रिय राजनीति में लाने पर सवाल उठे तो सोनिया गांधी ने इसे सिरे नकार दिया, लेकिन प्रियंका की महत्वकांक्षाएं तो थीं ही। इसलिए उन्होंने भाई राहुल और मम्मी सोनिया की लोकसभा सीटों पर प्रचार के जरिए लाइमलाइट में आने का सोचा। उनका राजनीतिक रुख कार्यकर्ताओं को पसंद आया, दूसरी ओर राहुल की एक के बाद एक चुनावी विफलता के कारण प्रियंका को लाने की मांग हर बार उठी। मजबूरन सोनिया गांधी को अपनी बात से पलटना पड़ा और अब राष्ट्रीय महासचिव के अलावा प्रियंका गांधी वाड्रा उत्तर प्रदेश की चुनाव प्रभारी के तौर पर सक्रिय राजनीति में हैं।

राहुल के साथ भी अब प्रियंका खेल खेलने लगी हैं, वो जानती हैं कि मम्मी सोनिया तो राहुल की जगह लेने नहीं देंगी; तो क्यों न राहुल को और अधिक लाइमलाइट में लाकर उनकी ही रही बची राजनीतिक बेइज्जती करवा दी जाए। इसमें कोई शक नहीं कि राहुल गांधी एक अपरिपक्व राजनेता हैं। वो चुनाव-दर-चुनाव अपनी हार के झंडे बुलन्द करते रहे हैं। ऐसे में कोई शक नहीं है कि कांग्रेस का भविष्य राहुल के नेतृत्व में गर्त में ही जाने वाला है।

राहुल की अपरिपक्वता के बावजूद प्रियंका राहुल को अध्यक्ष बनाकर उनकी छवि मिट्टी में मिलवा रही हैं जिससे उनकी असफलताएं पार्टी में कार्यकर्ताओं को नाराज़गी की हद तक ले जाएं। ये वही स्थिति होगी जो 2017 यूपी विधानसभा चुनाव नतीजों के बाद थी, जब कार्यकर्ता “प्रियंका लाओ कांग्रेस बचाओ” की मांग कर रहे थे। इस बार फर्क सिर्फ इतना होगा कि प्रियंका की राजनीतिक सूझ-बूझ और उनके कद से पार्टी के आला नेता भी प्रभावित होंगे और यही उनके पार्टी में अध्यक्ष पद पर पहुंचने की महत्वाकांक्षा को पूरा करेगा क्योंकि ये सभी राहुल के नेतृत्व में हारकर कुंठित हो चुके हैं।

प्रियंका अपनी कूटनीति के दम पर राहुल को मजबूत करने का ढोंग करते हुए राहुल के लिए एक ऐसा गड्ढा खोद रही हैं जो न केवल राहुल को राजनैतिक संन्यास की ओर ले जाएगा, बल्कि ये उनकी मम्मी की सबसे बड़ी शिकस्त के रूप में भी सामने आएगा, क्योंकि प्रियंका के राजनीतिक जीवन पर अवरोधक का काम मम्मी सोनिया ने ही किया है।

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