निकम्मे सैनिकों की जगह अब तिब्बत मूल के लोगों को भर्ती करेगी चीनी सेना, ये उसकी सबसे बड़ी गलती होगी

 


पने ही पैर पर कोई कैसे गाजे बाजे के साथ कुल्हाड़ी मारता है, ये कोई चीन से सीखे। जहां लद्दाख की कड़कड़ाती सर्दी के कारण पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के हौसले पस्त पड़े हुए हैं, तो वहीं चीन एक ऐसी गलती करने जा रहा है, जो अंत में उसी पर भारी पड़ सकती है। चीन अपने बीमार सैनिकों की कमी पूरी करने के लिए तिब्बत से सैनिकों को रिक्रूट करना चाहता है।

टाइम्स नाऊ की रिपोर्ट के अनुसार, “पीपुल्स लिबरेशन आर्मी बीमार पड़ रहे सैनिकों की भरपाई हेतु तिब्बती सैनिक को रिक्रूट करना चाहती है, परंतु इसकी कुछ शर्तें हैं। युवा होने के साथ साथ उनके परिवार के सदस्य के चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के साथ किसी न किसी प्रकार के संबंध होने ही चाहिए। उनके दलाई लामा के साथ लिंक्स नहीं होने चाहिए। उनके विदेशी संगठनों के साथ संबंध बनहीं होने चाहिए, इत्यादि”।

.यह तो वही बात हो गई कि चित भी मेरी और पट्ट भी मेरी। बता दें कि पूर्वी लद्दाख में इस समय स्थिति प्रतिकूल है, और ऊंचाई के कारण चीनी सैनिकों को काफी मुश्किलें पेश आ रही है। ऐसा इसलिए क्योंकि ऐसे क्षेत्रों में तैनाती के लिए ना तो उनके पास अनुभव है और ना ही इसके लिए उन्हें अच्छी ट्रेनिंग मिलती है। ऊंचे इलाकों, विशेषकर पूर्वी लद्दाख में पड़ने वाली कड़ाके की सर्दी को देखते हुए भारतीय सेना ने अपने सैनिकों के लिए हर प्रकार की व्यवस्था की है, ताकि वह चीन के साथ-साथ सर्दी रूपी शत्रु को भी मात दे सके।

लेकिन चीन ने जिस प्रकार से तिब्बती सैनिकों की भर्ती के लिए अपनी शर्तें रखी हैं, उससे दो बातें स्पष्ट होती है। एक तो यह कि चीन की PLA सिर्फ नाम की आर्मी है और मेनलैंड चीन के सैनिक ऐसी परिस्थितियों में जीवित रह ही नहीं सकते हैं। और दूसरी यह कि चीन संभवत तिब्बत को थाली में परोसके उसकी आजादी देना चाहता है। यदि ऐसा नहीं है, तो उन्हें इतिहास के बारे में थोड़ी जानकारी होनी चाहिए, क्योंकि ऐसी ही गलती विश्व युद्ध द्वितीय के समय अंग्रेजों ने भी भारी संख्या में भारतीय सैनिकों की भर्ती को लेकर की थी, क्योंकि उन्हे अटूट विश्वास था कि भारतीय सैनिक कभी भी उनके साम्राज्य के विरुद्ध विद्रोह कर ही नहीं सकते, और उसके बाद हुई थी वर्ष 1946 की Naval Mutiny, जिसमें खुद ब्रिटेन के ही करीब 1 लाख लोग मारे गए थे।

तो इसका चीन से क्या संबंध? दरअसल चीन भी इसी भावना से तिब्बती सैनिकों को भर्ती करना चाह रहा है, क्योंकि उसे ऐसा लगता है कि तिब्बत के निवासी चीन के विरुद्ध विद्रोह कर ही नहीं सकते। लेकिन वे ये भूल रहे हैं कि तिब्बत के निवासी अब किसी भी स्थिति में चीन से स्वतंत्र होने के लिए कमर कस रहे हैं, और इसके साथ ही भारत में तो निर्वासित तिब्बती नागरिकों से सुसज्जित एक स्पेशल फ़्रंटियर फोर्स भी हैं।

इसी स्पेशल फ़्रंटियर फोर्स के जवानों ने भारत के विशिष्ट सेना यानि पैरा एसएफ़ के जवानों के साथ मिलकर 29 अगस्त की रात न केवल चीनी सेना के आक्रमण को ध्वस्त किया था, अपितु एक कदम आगे बढ़ाते हुए LAC पार कर रेकिन घाटी, विशेषकर रणनीतिक रूप से अहम काला टॉप की चोटी को वर्षों बाद अपने नियंत्रण में लिया था।

अब ऐसे में चीन अपने ही पैर पर गाजे बाजे सहित कुल्हाड़ी मार रहा है, क्योंकि जब तिब्बती सैनिकों को बंदूक चलाने में प्रशिक्षण दिया जाएगा, तो वे ये भी भली भांति जान जाएंगे कि बंदूक को कब किस दिशा में मोड़ना है। इससे न सिर्फ तिब्बत के स्वतंत्र होने का मार्ग प्रशस्त होगा, अपितु चीन के विध्वंस का प्रारंभ भी होगा।

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