खालिस्तानी तत्वों के कारण पंजाब के किसानों का आंदोलन अन्य भारतीय किसानों का दुश्मन बन गया है

 


देश की संसद द्वारा पारित कृषि कानूनों को लेकर दिल्ली की सीमाओं पर बैठें किसानों को आपत्ति है। 40 से ज्यादा किसान संगठनों को भ्रम है कि इसके जरिए एमएसपी खत्म हो जाएगा, इसलिए इन कानूनों को ही रद्द किया जाए। दूसरी ओर केंद्र सरकार किसानों की मांग को लेकर लिखित सहमति के साथ ही कानून में संशोधन की बात भी कर रही है लेकिन किसान अडिग हैं। पूरे देश में और कहीं भी इस तरह के कोई प्रदर्शन नहीं हो रहे हैं और देश में किसानों को अभी तक लागू हुए इस कानून के आंशिक प्रभावों से लाभ ही हुआ है। ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि पंजाब और हरियाणा के कुछ किसान इस लाभदायक कानून का विरोध करके पूरे देश के किसानों के फायदों के दुश्मन बन रहे हैं।

केन्द्रीय कृषि मंत्री ने किसानों के आंदोलन को लेकर प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया है कि वे सभी तरह के संशोधनों के लिए तैयार हैं लेकिन कानूनों को रद्द करने पर सरकार कोई विचार नहींं कर रही है। उन्होंने कहा, “हमने मुद्दों के प्रस्ताव बनाकर उनको भेजा, बैठकों में उनको संतुष्ट करने की कोशिश की। MSP की खरीद पर वो सोचते थे कि वो बंद हो जाएगी। हमने स्पष्ट किया कि MSP खत्म नहीं होगी। हम लिखित आश्वासन देने को भी तैयार थे। बिजली, प्रदूषण के मामलों में भी समाधान को तैयार थे। हमारी पहले भी कोशिश रही है और मैं फिर आग्रह कर रहा हूं कि आप प्रस्तावों पर चर्चा करें, वो जब भी चाहेंगे हम वार्ता को तैयार हैं।”

केंद्रीय कृषि मंत्री लगातार किसानों से बातचीत की टेबल पर आकर मामला सुलझाने की बात कह रहे हैं। उनका मानना है कि ये कानून गांवों को आत्मनिर्भर बनाने की ओर कदम बढ़ाने वाला है। उन्होंने कहा, “जब तक कृषि और गांव दोनों आत्मनिर्भर नहीं बनेंगे, तब तक देश को आत्मनिर्भर बनाने का जो सपना है पूरा नहीं होगा। कृषि कानूनों के माध्यम से हमने नये द्वार खोलने की कोशिश की है। इस पर जो किसानों की भ्रांति थी, उस भ्रांति को दूर करने के लिए हमने प्रस्ताव भेजा है। मैं संगठनों से पुनः आग्रह करता हूं जल्दी से वार्ता के लिए तिथि तय करें। सरकार उनसे बातचीत करने के लिए तैयार है।”

केन्द्रीय मंत्री के बयान साफ बताते हैं कि किसानों के मुद्दे पर सरकार काफी हद तक झुक गई है और सभी तरह की मांगों को लेकर संशोधन करने को तैयार है, लेकिन किसान संगठन अपनी मांगों पर टस से मस से नहीं हो रहे हैं। उन्होंने इसे आर या पार की लड़ाई बना दिया है जिसका कोई औचित्य नहीं है। इसीलिए मीडिया भी इसको लेकर ये कहने लगा है कि ये केवल एक अराजकता फैलाने की कोशिश है। हम भी आपको अपनी रिपोर्ट में बता चुके हैं किस तरह से लगातार इस आंदोलन को हाईजैक किया जा चुका है।

दूसरी ओर बिहार से लेकर हिमाचल प्रदेश तक जहां-जहां ये कानून आंशिक रूप से लागू किया जा रहा है वहां किसानों को लाभ हो रहा है। किसान खुद ये बात मान रहे हैं कि इन कृषि कानूनों से उन्हें लाभ होगा। यही कारण है कि पूरे देश में और कहीं इस तरह के किसान आंदोलन या प्रदर्शन नहीं हो रहे हैं; जो दिखाता है कि किसान इस बिल से खुश हैं। ऐसे में पंजाब के किसान इस बिल को लेकर लगातार आंदोलन कर रहे हैं और इसे रद्द करने की मांग कर रहे हैं जो कि उनकी हठधर्मिता को प्रदर्शित करता है।

इसके चलते यह कहा जाने लगा है कि पंजाब और हरियाणा के किसान अपने कुछ निजी स्वार्थों के लिए उन कृषि कानूनों का विरोध कर रहे हैं जो कि देश के अन्य सभी राज्यों के किसानों के लिए फायदेमंद है।

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