कैसे विदेशी निवेशक भारतीय स्टार्टअप्स में पहले निवेश कर रहे, फिर अपने कब्जे में ले रहे हैं


कुछ महीने पहले, मोदी सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए चीनी वीडियो बनाने वाली ऐप TikTok पर प्रतिबंध लगा दिया था। इस कदम को नीति निर्धारकों द्वारा खूब सराहा गया। इसमें कोई संदेह नहीं है कि चीनी हमारी सीमाओं पर बैठे हैं, इस कारण चीनी कंपनियों को यूजर्स के संवेदनशील डेटा देने का कोई मतलब नहीं है। इसके अलावा, सरकार ने वैश्विक व्यवस्था में संरक्षणवाद के उदय से निपटने के लिए AtmaNirbhar नीति मंगाई।  हालांकि, इस सब के बीच, आप स्वयं अनुमान लगाएं कि टीकटॉक के जगह कौन सी कंपनियों को शॉर्ट वीडियो-ऐप ने स्थान लिया है?

अगर गौर किया जाए तो वीडियो बनाने वाले ऐप शैली के सभी चार प्रमुख प्लेयर विदेशी निवेशकों द्वारा समर्थित है। Josh बेंगलुरु स्थित डेलीहंट द्वारा संचालित होता है जिसमें कैलिफ़ोर्निया स्थित Sequoia Capital और न्यूयॉर्क स्थित Goldman Sachs, और चीन समर्थित Bytedance के शेयर हैं।

शॉर्ट वीडियो शैली में दूसरा सबसे लोकप्रिय ऐप Roposo, कैलिफ़ोर्निया स्थित Kleiner Perkins और टोक्यो स्थित सॉफ्टबैंक द्वारा समर्थित है। MX TakaTak और Moj जो क्रमशः तीसरे और चौथे स्थान पर काबिज है, वे भी चीन स्थित टेनसेंट होल्डिंग्स द्वारा समर्थित है।

इसलिए, टाइम्स ग्रुप और ओमिडयार नेटवर्क को छोड़कर, इन कंपनियों के लगभग सभी प्रमुख निवेशक या तो चीन आधारित हैं या अमेरिका आधारित हैं।

कुछ साल पहले, अमेरिका स्थित वॉलमार्ट ने फ्लिपकार्ट को पूरी तरह से खरीद लिया था जो भारत का सबसे पहला लोकप्रिय इंटरनेट स्टार्टअप था। आज के दौर में Zomato, Swiggy, Ola, Policybazaar, Paytm, PhonePe जैसी लगभग सभी भारतीय कंपनियों में प्रमुख निवेशक विदेशी उद्यम पूंजी फर्म हैं।

अमेरिका स्थित Tiger Global management कंपनी ने लगभग हर दूसरे या तीसरे प्रमुख स्टार्टअप में निवेश किया हुआ है। Byju और Unacademy जैसे एडटेक सेक्टर के स्टार्टअप्स में भी विदेशी कंपनियों के महत्वपूर्ण निवेश है। यही नहीं Inshorts जैसी ऑनलाइन मीडिया क्षेत्र की कई कंपनियों में भी महत्वपूर्ण विदेशी निवेश किया है।

कुछ दिनों पहले, संजीव बिकचंदानी, जो भारत के सबसे सफल इंटरनेट उद्यमियों में से एक है और Naukri.com के संस्थापक हैं, उन्होंने फोरेन वेंचर कैपिटल फ़र्म द्वारा भारतीय स्टार्टअप्स के लगातार हो रहे उपनिवेशन पर चिंता जताई थी।

बीकचंदानी ने ट्वीट कर बताया था कि, “ईस्ट इंडिया कंपनी की तरह यहां के हालात हैं- भारतीय बाजार, भारतीय ग्राहक, भारतीय डेवलपर्स, भारतीय कार्यबल। हालांकि, 100% विदेशी स्वामित्व, विदेशी निवेशक। आईपी और डेटा विदेशों में ट्रांसफर हो गए। और इस ट्रान्सफर की प्राइसिंग में झोल है।“

उन्होंने कहा, “आज जिस तरह से धन का संस्थागत हस्तांतरण भारत और भारत के कार्यबल से दूर हो रहा है वो भी कंपनी के शासन के दिनों की तरह ही है।”

लंबे ट्विटर थ्रेड में, बीकचंदानी ने यह भी बताया कि विदेशी निवेशक भारतीय स्टार्टअप के स्वामित्व को कैसे ले रहे हैं। उन्होंने लिखा कि “आप एक भारतीय स्टार्टअप लेते हैं और अपने सभी शेयरों का स्वामित्व किसी विदेशी कंपनी को हस्तांतरित कर देते हैं, जो आमतौर पर इसी उद्देश्य के लिए बनाई जाती है। बाद में एक भारतीय कंपनी किसी विदेशी कंपनी की 100% सहायक कंपनी बन जाती है।”

उन्होंने लिखा कि, “भविष्य में, इन कंपइसके नियों से होने वाला रेवेन्यू विदेशी निवेशकों के पास जाएगा। विश्वास कीजिये भविष्य में इन सभी स्टार्टअप्स से बहुत रेवेन्यू होने वाले हैं जो विदेशी निवेशकों के कब्जे हो गए हैं। मैं ये नहीं कह रहा हूँ कि फ़्लिपिंग को बैन कर दीजिये, बल्कि ऐसी स्थितियां बनाएं जिससे फ़्लिपिंग न हो।

यह देश में एक चिंताजनक स्थिति है क्योंकि भारतीय स्टार्टअप के उपनिवेशीकरण के माध्यम से, विदेशी निवेशक उपभोक्ताओं और साथ ही कंपनी के संस्थापकों को भविष्य में पूरी तरह से अपने कब्जे में कर लेंगे। संस्थापकों को कंपनी से बाहर निकाल दिया जाएगा, जैसे सचिन और बिन्नी बंसल को फ्लिपकार्ट से बाहर कर दिया गया था।

इसके अलावा, पिछले कुछ वर्षों में, यह देखा गया है कि भारतीय सहायक कंपनियों के मूल ब्रांड भारतीय कंपनियों से अधिक रॉयल्टी की मांग कर रहे हैं। उदाहरण के लिए, सुजुकी (मारुति-सुजुकी इंडिया की मूल कंपनी), हुंडई (हुंडई इंडिया की मूल कंपनी), यूनिलीवर (हिंदुस्तान यूनिलीवर की मूल कंपनी) जैसी कंपनियों ने पिछले कुछ वर्षों में अपनी रॉयल्टी में काफी वृद्धि की है।

वास्तव में, रॉयल्टी इतनी अधिक हो गई है कि इस साल अगस्त में वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने इन कंपनियों को भारत में निवेश को बढ़ावा देने के लिए रॉयल्टी में कटौती करने के लिए कहा था। भविष्य में इंटरनेट स्टार्टअप या तो मूल कंपनियों को संपूर्ण लाभ हस्तांतरित करेंगे या रॉयल्टी के रूप में इसका एक महत्वपूर्ण हिस्सा हस्तांतरित करने लगेंगे।

इसलिए, मोदी सरकार को अब जल्द से जल्द इंटरनेट स्टार्टअप्स में विदेशी निवेश को कम करने की नीतियों पर काम शुरू करना चाहिए जिससे देश का उपनिवेशिकरण होने से रुके। यही नहीं साथ ही सीड फंडिंग को भी संस्थागत बनाना चाहिए, ताकि स्टार्टअप्स को पूंजी के लिए विदेशी कंपनियों के पास जाने की जरूरत न पड़े।

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