बौद्ध धर्म की विरासत का इस्तेमाल कर पूर्वी एशियाई देशों को चीन से छीन रहा है भारत


इन दिनों कूटनीतिक हो, रक्षात्मक हो, या आर्थिक मोर्चा, भारत से चीन को हार ही मिल रही है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सोमवार को पारंपरिक बौद्ध साहित्य और शास्त्रों के लिए एक पुस्तकालय के निर्माण का प्रस्ताव रखा है, जो न सिर्फ शोध और वार्ता के लिए एक मंच होगा बल्कि इसके जरिये भारत पूर्वी एशिया के देशों के साथ अपने संबंध सांस्कृतिक रूप से मजबूत कर सकेगा।

छठे भारत-जापान संवाद सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, “आज मैं सभी पारंपरिक बौद्ध साहित्यों (Buddhist literature) व शास्त्रों के लिए एक पुस्तकालय (Library) की स्थापना करने का प्रस्ताव करता हूं। हमें भारत में ऐसी एक सुविधा का निर्माण करने में खुशी होगी और इसके लिए हम उपयुक्त संसाधन प्रदान करेंगे।” उन्होंने आगे कहा, “इस मंच ने भगवान बुद्ध के विचारों और आदर्शों को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका रही है, विशेषकर युवाओं में। ऐतिहासिक रूप से, बुद्ध ने भारत को ही अपना कर्मभूमि बनाया, जहां से उनका संदेश भारत के अलावा कई देशों में फैला। परंतु यह ज्योति स्थिर नहीं थी। जहां भी गई, ये और अधिक विकसित होती गई। इसी कारण से दुनिया के अनेकों देशों में विभिन्न प्रकार का बौद्ध साहित्य, बौद्ध दर्शन इत्यादि हमें देखने, सुनने और समझने को मिला है”।

पीएम मोदी ने बौद्ध संस्कृति को सहेजने वाले अनूठे पुस्तकालय के पीछे का प्रमुख कारण बताते हुए कहा, “ यह पुस्तकालय सिर्फ साहित्य को नहीं सहेजेगा। यह अनुसंधान और बातचीत के लिए एक उचित मंच बनेगा, ये व्यक्तियों, समाज, मानव और प्रकृति के बीच एक उत्तम ‘संवाद’ होगा, इसके शोध में हम ये जानेंगे कि कैसे बुद्ध की दीक्षा से आधुनिक संसार को विभिन्न भ्रांतियों और समस्याओं से लड़ने की शक्ति मिल सकती है”।

अब इस सांस्कृतिक पुस्तकालय के बारे में जिस प्रकार से पीएम मोदी ने जापान से हो रही द्विपक्षीय वार्ता के दौरान बताया है, उसका सांस्कृतिक और रणनीतिक महत्व बहुत अहम है। बुद्ध भले ही नेपाल में जन्मे थे, परंतु उन्होंने भारत को अपनी कर्मभूमि माना, और यहीं से उनकी दीक्षा का प्रसार हुआ, और यहीं पर उन्होंने अपनी अंतिम श्वास भी ली। दक्षिण पूर्वी एशिया में कई ऐसे देश हैं, जो बुद्ध को अब भी अपना आराध्य मानते हैं, जिनमें प्रमुख तौर से जापान शामिल है।

ऐसे में भारत, जापान और अन्य पूर्वी एशिया के देशों के साथ अपनी मित्रता इस बौद्ध पुस्तकालय के जरिए मजबूत करेगा।भारत और चीन दोनों ही चीन के प्रभाव को खत्म करने में जुटे हैं। बता दें कि पूर्वी एशिया के अधिकतर देश चीन के प्रभाव से बेहद त्रस्त है, जो दक्षिण चीन सागर और पूर्वी चीन सागर में चीन की गुंडई से स्पष्ट होता है। चीन का प्रभाव ऐसा है कि उसने वियतनाम, थाईलैण्ड, श्रीलंका और कम्बोडिया जैसे देशों की मजबूरियों का लाभ उठाकर उन्हें कर्ज जाल में फंसाया। परंतु अब स्थिति बदल चुकी है।

मोदी के नेतृत्व में भारत ने जिस प्रकार से पूर्वी एशिया के देशों के साथ अपने संबंध मजबूत किये हैं, उससे उन्होंने अभी अप्रत्यक्ष तौर पर एक तीर से दो निशाने साधे हैं। उन्होंने न केवल अपना वैश्विक कद बढ़ाया है, बल्कि इंडो पेसिफिक क्षेत्र में चीन के वर्चस्व की संभावना को भी ध्वस्त किया है, जिसमें जापान के अलावा अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया भी उसका साथ दे रहे हैं।

ऐसे में सम्पूर्ण बौद्ध साहित्य को समर्पित एक विशेष संग्रहालय की पेशकश कर पीएम मोदी ने एक ही वार में सांस्कृतिक तौर पर चीन को अलग-थलग करने की व्यवस्था की है। जिस प्रकार से वे भारत जापान संवाद के जरिए पूर्वी एशिया के देशों का हृदय जीतना चाहते हैं, उसमें उन्हें सफलता मिलना निश्चित है।

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