दुनिया की नज़रों से दूर रूस चीन के तीनों सबसे अहम ट्रेडिंग रूट्स ब्लॉक करने की तैयारी में है


 कोरोना के झटके के बाद चीनी अर्थव्यवस्था दोबारा पटरी पर आती दिखाई दे रही है। चीन अमेरिका और पश्चिमी देशों में तेजी से अपने एक्सपोर्ट को बढ़ा रहा है, जिसके कारण चीन-अमेरिका का व्यापार असंतुलन तो रिकॉर्ड स्तर तक पहुंच गया है। साथ ही साथ, अब चीन EU के साथ एक व्यापार समझौता कर वहाँ भी अपनी पैठ बढ़ाने को लेकर आतुर है। इतना ही नहीं, अफ़्रीका में भी चीन की ऊर्जा क्षेत्र की कंपनियाँ तेजी से निवेश कर रही हैं, ताकि चीन की भविष्य की ऊर्जा जरूरतों को पूरा किया जा सके। अपनी सप्लाई चेन को मजबूत करने के लिए चीन अपने ट्रेडिंग रूट्स का भी विकास कर रहा है। मौजूदा हिन्द महासागर के ट्रेडिंग रूट को छोड़कर चीन अभी मध्य एशिया में अपने BRI project और Arctic में Northern Sea Route के माध्यम से यूरोप, अरब देशों और अफ़्रीका तक पहुंच बनाने की कोशिश कर रहा है, ताकि मलक्का स्ट्रेट पर से उसकी निर्भरता समाप्त हो सके। हालांकि, दुनिया की नज़रों से दूर रूस मलक्का स्ट्रेट के साथ-साथ मध्य एशिया और Arctic में चीन के लिए परेशानी खड़ी करने की रणनीति पर काम कर रहा है।

उदाहरण के लिए मलक्का स्ट्रेट को ही ले लीजिये! मौजूदा समय में यह चीन के व्यापार की सबसे कमजोर नब्ज़ है। चीन के करीब 80 फीसदी एक्स्पोर्ट्स इसी रूट से होते हुए जाते हैं। हालांकि, रूस यहाँ भारत के साथ मिलकर मलक्का के मुहाने पर इसी वर्ष सितंबर में एक विशाल युद्धाभ्यास कर चुका है। भारत ने इस वर्ष SCO के तहत रूस में होने वाले कावकाज़ सैन्य अभ्यास में जाने से इंकार कर दिया था। उसके बाद भारत ने रूस को बंगाल की खाड़ी में सैन्य अभ्यास करने के लिए बुलाया था, जिसे भारत के मित्र रूस ने ठुकराया नहीं, और 4 सितंबर को यह सैन्य अभ्यास शुरू हुआ। इस युद्धाभ्यास की Timing बेहद महत्वपूर्ण थी, क्योंकि इस वर्ष मई महीने से ही भारत और चीन के बीच में भीषण तनाव देखने को मिल रहा है। रूस का यह चीन को स्पष्ट संदेश था कि भारत के साथ तनाव के बीच रूस अपने दोस्त भारत का साथ देने से पीछे नहीं हटेगा!


The Malacca Dilemma: A hindrance to Chinese Ambitions in the 21st Century – Berkeley Political Review


इसके अलावा Arctic में तो मानो रूस अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए अब super active mode में आ चुका है। अमेरिकी स्पेस कमांड के मुताबिक 15 दिसंबर को ही रूस ने स्पेस में एक और anti-satellite टेस्ट किया है। रूस ने यह टेस्ट तब किया है जब इस महीने की शुरुआत में चीन ने Arctic में trading routes के बारीकी से अध्ययन के लिए एक नई विशेष satellite लॉन्च करने का ऐलान किया था। इसके अलावा भी दिसंबर और नवंबर में रूस Arctic में एक के बाद Hypersonic और Ballistic मिसाइल्स का टेस्ट करता आया है। रूस इस क्षेत्र में चीन को एक बड़े प्रतिद्वंदी के रूप में देखता है, और ऐसे में हो सकता है कि रूस बार-बार मिसाइल परीक्षण कर चीन को एक कड़ा संदेश देना चाहता है। चीन की नज़र यहाँ Northern Sea Route पर है, और इसीलिए वह अपनी एक Arctic नीति भी जारी कर चुका है, जिसके तहत चीन अपने आप को “Near Arctic State” कहता है। वह भी तब, जब Arctic से उसका दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं है।

The Northern Sea Route: Rivalling Suez?

इसके अलावा चीन यूरोप तक पहुंच बनाने के लिए मध्य एशिया के देशों से होते हुए अपने BRI प्रोजेक्ट पर भी काम कर रहा है। चीन का BRI प्रोजेक्ट किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, अज़रबैजान, जॉर्जिया, तुर्की और पूर्वी यूरोप से होता हुआ पश्चिमी रूस तक जाता है, जिसपर अभी काम चल रहा है। दिलचस्प बात यह है कि रूस आधिकारिक तौर पर BRI का हिस्सा जरूर है, लेकिन उसके यहाँ अभी तक एक भी BRI प्रोजेक्ट को मंजूरी नहीं मिल पाई है। दूसरी ओर, मध्य एशिया को रूस अपने “sphere of influence” के रूप में देखता है। इसलिए, वह यहाँ भी BRI के प्रभुत्व को कम करने के प्रयास कर रहा है।

BRI: Six economic corridors of power | Standard Chartered

दरअसल, घरेलू कर्ज़ बेहद ज़्यादा बढ़ने के कारण चीन अपने महत्वाकांक्षी BRI प्रोजेक्ट की फंडिंग जारी रखने में अब नाकाम साबित हो रहा है। ऐसे में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने अब मौके पर चौका लगाते हुए मध्य एशिया में BRI के प्रभुत्व को चुनौती देने के लिए अपने Eurasian Economic Union (EAEU) को आगे बढ़ाने का अवसर ढूंढा है। पुतिन ने कहा है कि अगर क्षेत्र में BRI को आगे बढ़ाना है तो उसे EAEU के साथ ही जोड़ना होगा। इसके साथ ही पुतिन ने EAEU में भारत की भागीदारी पर भी ज़ोर दिया है। साफ़ है कि रूस अब EAEU के जरिये भारत के साथ मिलकर मध्य एशियाई देशों में BRI के प्रभुत्व को समाप्त करना चाहता है। इसके लिए वह पहले ही आधिकारिक तौर पर एक चीन विरोधी शोध का भी वित्तपोषण कर रहा है, जिसका मुख्य मकसद मध्य एशियाई देशों में BRI की चुनौती का सामना कर चीन के प्रभाव को कम से कम करना है।

चाहे Arctic का Northern Sea Route हो, या फिर मध्य एशिया का BRI प्रोजेक्ट, ये दोनों ही रूट्स चीन की मलक्का समस्या को काफी हद तक कम कर सकते हैं। हालांकि, रूस मलक्का के साथ-साथ इन दोनों अहम रूट्स पर चीन के हितों के खिलाफ काम कर रहा है।

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