नेपाल की राजनीति में आई अस्थिरता के बाद अब चीन लगातार अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए वहां की कम्युनिस्ट पार्टी के दो गुटों में बंटे नेताओं पीएम केपी शर्मा ओली और पार्टी में उनके प्रतिद्वंद्वी पुष्प कमल दहल प्रचंड के बीच सुलह कराने की कोशिश कर रहा है। ओली ने पहले ही चीन को अपना फैसला सुना दिया था उसके बाद अब प्रचंड भी चीन की बातों को नजरंदाज करते हुए भारत से इस मसले पर सहयोग की बात कर रहे हैं, जो चीन के लिए किसी तगड़े झटके से कम नहीं है।
चीन ने अपने विदेश मामलों के उपमंत्री के साथ अपना एक प्रतिनिधिमंडल भेजा था जिससे नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी का गतिरोध कम हो सके, लेकिन उनको भी नेपाल के हाथों हार ही मिली है। पीएम ओली और संसदीय दल के नेता प्रचंड दोनों ने ही चीन के प्रस्तावों को सिरे से नकार दिया है। प्रचंड अब अपने देश की स्थिति को लेकर भारत से मदद मांगने लगें हैं। उन्होंने कहा कि भारत की चुप्पी इस मुद्दे पर बिल्कुल ही आश्चर्यजनक है क्योंकि वो विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है।
प्रचंड ने भारत अमेरिका जैसे देशों से ओली के रवैए पर आपत्ति दर्ज करने और नेपाल में स्थिति सामान्य करने के लिए दखलंदाजी की बात कही है। उन्होंने कहा, “दुनिया भर में खुद को लोकतंत्र का पहरेदार बताने वाला भारत, अमेरिका और यूरोप के तमाम देशों की ख़ामोशी आश्चर्यजनक है। अगर भारत सही में लोकतंत्र का हिमायती है तो उसे नेपाल के प्रधानमंत्री के द्वारा उठाए गए इस अलोकतांत्रिक कदम का विरोध करना चाहिए।”
चीनी प्रतिनिधिमंडल के सभी प्रस्तावों को नकारने के बाद प्रचंड ने भारत की तरफ अपना रुख मोड़ा है। वो चाहते हैं कि भारत इस मुद्दे पर नेपाल में हस्तक्षेप करे। उन्होंने एक इंटरव्यू के दौरान कहा, “भारत हमेशा ही नेपाल के लोकतांत्रिक आंदोलन का समर्थन करता आया है। नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली द्वारा संसद विघटन करते हुए लोकतंत्र की हत्या किए जाने के बावजूद भारत की ख़ामोशी समझ से परे है।”
दरअसल, नेपाल को अपना अनौपचारिक उपनिवेश बनाने की मंशा रखने वाले चीन को नेपाल अब झटके पर झटके दे रहा है। चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने नेपाल के गहराते राजनीतिक संकट और उस पर कम होते प्रभाव के मद्देनजर अपना एक प्रतिनिधिमंडल नेपाल भेजा था जिसका नेतृत्व विदेश विभाग के उप मंत्री Guo Yezhou कर रहे थे। इन सभी ने चीनी राजदूत हू यांकी के साथ मिलकर ओली और प्रचंड को खूब समझाया लेकिन दोनों ने चीन को घास नहीं डाली है। नतीजा ये कि अब चीन के हाथ से नेपाल बिल्कुल ही निकल चुका है जिससे चीन के सपने-धुआं धुआं हो गए हैं।
नेपाल के रिश्ते भारत के साथ कालापनी के मुद्दे पर काफी बिगड़ गए थे जिसके बाद ओली ने चीन से दूरी बनाना शुरू किया था, क्योंकि नेपाल और भारत के बीच पूरे गतिरोध की पटकथा चीन लिख रहा था। ऐसे में भारतीय सेनाध्यक्ष का नेपाल दौरा और उस बीच अधिकारियों की कूटनीतिक बातचीत के बाद स्थितियां पुनः सकारात्मक हो गई हैं जिसके चलते प्रचंड भारत से नेपाल में लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए सीधी मदद मांग रहे हैं। वहीं, अब चीन इस बात से परेशान है कि उसने सारे हथकंडे अपनाने के बावजूद नेपाल को खो दिया है।
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