पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी इन दिनों UAE के आपातकालीन दौरे पर हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि सर से पैर तक कर्ज़ में डूबे पाकिस्तान से अब अरब देश अपना सारा पैसा वापस मांग रहे हैं और पाकिस्तान को चीन से उधार लेकर अरब देशों का पैसा वापस करना पड़ रहा है। उदाहरण के लिए वर्ष 2019 में सऊदी अरब ने पाकिस्तान को 3 बिलियन डॉलर का कर्ज़ दिया था, जिसे अब सऊदी अरब ने वापस मांग लिया है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक पाकिस्तान अब चीन से उधार लेकर 1 बिलियन डॉलर तो सऊदी अरब को वापस दे चुका है, जबकि बाकी के 2 बिलियन भी वह जल्द ही लौटाने वाला है। इतना ही नहीं, UAE पाकिस्तान पर वीज़ा पाबंदी भी लगा चुका है और वह अपने देश में पाकिस्तानी नागरिकों के प्रवेश पर पाबंदी लगा चुका है। अरब देशों और इज़रायल के बीच सामान्य होते रिश्तों के बीच अरब देशों का पाकिस्तान पर दबाव बनाना दिखाता है कि सऊदी अरब पाकिस्तान की इज़रायल नीति में बड़े बदलाव करना चाहता है।
अब लगता है कि पाकिस्तान अरब देशों के सामने घुटने टेकने भी लगा है। इज़रायल से जुड़े सूत्रों के मुताबिक पाकिस्तानी अधिकारियों और इज़रायल के अफसरों के बीच एक गुप्त बैठक हुई है, जिसके बाद माना जा रहा है कि पाकिस्तान जल्द ही इज़रायल को आधिकारिक तौर पर एक देश का दर्जा दे सकता है। यह गुप्त बैठक कब हुई और कहां हुई, इसकी अभी कोई जानकारी नहीं मिल पाई है। लेकिन इस बैठक का होना दिखाता है कि दुनिया के इकलौते इस्लामिक न्यूक्लियर देश पर इज़रायल के साथ संबंध सामान्य करने का किस हद तक दबाव है।
इसके संकेत पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान पहले ही दे चुके हैं। हाल ही में इमरान खान ने एक निजी टेलीविजन के साथ एक साक्षात्कार के दौरान यह खुलासा किया था कि संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) और बहरीन सहित कई अरब देशों द्वारा इज़रायल को मान्यता देने के बाद, इस्लामाबाद को भी इज़रायल को मान्यता देने के लिए कहा जा रहा है, जिसे उनकी सरकार ने अभी खारिज कर दिया है। जब उनसे उन देशों के नाम पूछे गए थे, जिन्होंने इस्लामाबाद पर इज़रायल को मान्यता देने के लिए दबाव बनाया है, तो इमरान खान ने कहा था कि वो नाम नहीं बता सकते क्योंकि उन देशों के साथ पाकिस्तान के अच्छे संबंध हैं। समझा जा सकता है कि यहां इमरान अरब देशों और अमेरिका की बात ही कर रहे होंगे।
यह माना जा रहा है कि UAE और बाकी अरब देशों के बाद अब सऊदी अरब भी इज़रायल को मान्यता प्रदान कर सकता है। इसके लिए वह तैयारी भी शुरू कर चुका है। उदाहरण के लिए एक बड़े फैसले में अब सऊदी अरब ने अपनी स्कूलों की textbooks से यहूदी-विरोधी सामाग्री को हटाने का फैसला लिया है। साथ ही textbooks से इज़रायल के खिलाफ जिहाद और शहादत जैसे मुद्दों को भी हटा दिया गया है। सऊदी प्रशासन का कहना है कि ऐसा उसने अपनी शिक्षा प्रणाली को आधुनिक करने के लिए किया है। इतना ही नहीं, अब सऊदी अरब के सरकारी चैनल MBC पर “उम हरून” नामक एक शो भी चलाया जा रहा है, जो सऊदी समाज और यहूदियों के बीच रिश्तों को दर्शाता है। इस बात से समझा जा सकता है कि सऊदी अरब अब इज़रायल के साथ कूटनीतिक संबंध स्थापित करने की पूरी तैयारी कर चुका है। हालांकि, उसे भय है कि पाकिस्तान उसके इस फैसले का विरोध कर मुस्लिम समाज में सऊदी अरब की नकारात्मक छवि पेश करने की कोशिश कर सकता है, और उसे पाकिस्तान के कट्टरपंथियों से भारी विरोध का सामना करना पड़ सकता है।
मौजूदा स्थिति का आंकलन किए जाये तो ऐसा प्रतीत होता है कि सऊदी अरब अब पहले पाकिस्तान और इज़रायल के कूटनीतिक संबंध स्थापित कराना चाहता है, ताकि बाद में उसे पाकिस्तानी कट्टरपंथियों और बाकी मुस्लिम देशों से ज़्यादा विरोध का सामना ना करना पड़े। अगर पाकिस्तान भी इज़रायल को मान्यता प्रदान कर देता है, तो फिर सऊदी अरब के लिए ऐसा करना बेहद आसान हो जाएगा।
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