अब्राहम अकॉर्ड पर पाक को गच्चा देने वाला तुर्की, अब कश्मीर पर भी छोड़ेगा पाकिस्तान का साथ

 


पाकिस्तान जिसे अपना मित्र समझता है वो प्रत्येक देश पाकिस्तान के मुद्दों को किनारे करके अपने स्वार्थ की सिद्धि के लिए आगे बढ़ जाता है। एक बार फिर ऐसा ही होने वाला है। तुर्की जो कुछ वक्त पहले तक इजरायल के साथ यूएई की दोस्ती को गलत बताकर पाकिस्तान का इस विरोध में साथ दे रहा था, उसी तुर्की ने अब इजरायल में अपना नया राजदूत नियुक्त कर दिया है। तुर्की का ये फैसला पाकिस्तान को पच नहीं रहा है। तुर्की की हालत और कोरोनावायरस के कारण अर्थव्यवस्था पहले ही बिगड़ी हुई है ऐसे में तुर्की इजरायल के मुद्दे पर पाकिस्तान का हाथ छोड़कर साफ कर चुका है कि वो कश्मीर पर भी पाकिस्तान को झटका दे सकता है।

तुर्की को अपनी अर्थव्यवस्था के लिए अब अधिक फंडिंग की आवश्यकता है इसलिए वो अपने आर्थिक हितों को अधिक महत्व दे रहा है, जिसके चलते अब्राहम एकॉर्ड का विरोध करने वाले तुर्की ने अब उसकी ओर सकारात्मक रुख अपनाते हुए इजरायल में अपना राजदूत नियुक्त कर दिया है जो कि दो साल पहले वापस बुला लिया गया था। विश्लेषकों का मानना है कि संबंधों को सामान्‍य बनाने के मकसद से ही तुर्की ने इजराइल में अपने एक नए राजदूत को नियुक्त किया है। तुर्की के विदेश मंत्रालय में सेंटर फॉर स्‍ट्रेटेजिक रिसर्च के अध्‍यक्ष उफुक उलुतास को इस महत्‍वूपर्ण पद की जिम्‍मेदारी दी गई है। तुर्की के इस फ़ैसले के अलग-अलग स्तर पर विश्लेषण हो रहे हैं, लेकिन चिन्ता पाकिस्तान के लिए है।

तुर्की कल तक पाकिस्तान के लिए सकारात्मक था क्योंकि ये दोनों मिलकर यूएई और इजरायल की पीस डील की आलोचना कर रहे थे। पाकिस्तान तुर्की के प्रति अंध समर्थक बना हुआ था और उससे कुछ पैसों की उम्मीद कर रहा है, लेकिन वो तुर्की किसी को क्या देगा, जिसकी खुद की आर्थिक स्थिति नाज़ुक दौर से गुजर रही हो और उस पर प्रतिबंधों की गाज गिरी हो। ऐसे में अर्थव्यवस्था को ध्यान में रखते हुए इजरायल ने पाकिस्तान के हितों को टाटा करके इजरायल का दामन थाम लिया है।

पाकिस्तान के लिए चिंता वाली बात ये भी है कि तुर्की ने आर्थिक हितों के लिए इजराइल के साथ अपने संबंध सुधारने की तरफ कदम बढ़ा दिए हैं। इसी तरह वह पाकिस्तान को झटका देते हुए भारत के साथ भी सकारात्मक रुख अपना सकता है जिसके चलते वो कश्मीर मुद्दे पर अपने मत को बदल देगा। कश्मीर को लेकर तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगान पाकिस्तान का पक्ष रखते हुए हमेशा ही भारत के तथाकथित तानाशाही वाले झूठ को वैश्विक मंच पर उठाते रहे हैं। उनकी इस औपचारिकता से न तो पाकिस्तान को कोई लाभ हुआ है और न ही तुर्की को।

पाकिस्तान का तथाकथित दोस्त चीन पहले ही कोरोनावायरस के मुद्दे पर पूरी दुनिया से लताड़ झेल रहा है, दूसरी ओर तुर्की भी अब अपनी अर्थव्यवस्था को बचाने के मुद्दे पर पाकिस्तान के भावनात्मक मुद्दों पर उसे झटका दे सकता है। पाकिस्तान के लिए इन दोनों राष्ट्रों ने ही सबसे ज्यादा अपनी आवाज बुलंद की है और यह दोनों राष्ट्र ही अब पाकिस्तान के हितों को कचरे के डिब्बे में फेंक रहे हैं जिसमें तुर्की ने तो अचानक ही इजरायल पर अपना रुख बदला है और उसका दांव कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान को काफी डरा भी रहा है, क्योंकि अब कश्मीर मुद्दे पर भी वह पाकिस्तान का हाथ झटक देगा।

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